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कभी जिस जगह पर लगता था सर्कस, वहां सुरंग में मिलीं हाथी की हड्डियां और और बर्तनों के अवशेष
पुणे, महाराष्ट्र. यहां मेट्रो निर्माण की खुदाई के दौरान शुक्रवार को हाथी की हड्डियां और कुछ पुराने बर्तनों के अवशेष मिलने का मामला सामने आया है। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि ये अवशेष कितने पुराने हैं। सूचना के बाद मौके पर पहुंचे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारी इन्हें जांच के लिए अपने साथ ले गए। बता दें कि पहले फेज में पिंपरी से लेकर रेंज हिल्स तक और शिवजी नगर से लेकर स्वारगेट मार्ग पर काम चल रहा है। शिवाजीनगर से स्वारगेट तक मेट्रो अंडर ग्राउंड रहेगी। इसके लिए यहां सुरंग खोदी जा रही है। तभी ये अवशेष मिले। आगे पढ़ें इसी घटना के बारे में...
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स्थानीय लोगों ने बताया कि महात्मा फुले मंडई इलाके में कई साल तक सर्कस लगता रहा। कहा जा रहा है कि सर्कस के किसी हाथी की मौत के बाद उसे यहीं दफना दिया गया होगा। फिर भी ASI इनकी जांच करेगी। आगे पढ़ें इसी घटना के बारे में...
पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण से जुड़े वैज्ञानिक मानते हैं कि बिना जांच के कुछ भी नहीं कहा जा सकता है कि हाथी की ये हड्डियां और बर्तनों के अवशेष कितने पुराने हैं। आगे पढ़ें-5000 करोड़ साल पहले कुत्ते जितने थे घोड़े और गैंडे, ये जीवाश्म खोलेंगे और भी कई राज़
देहरादून/सूरत/साहिबगंज. घोड़े और गैंडों की उत्पत्ति दुनिया में कहां हुई, इसे लेकर वैज्ञानिकों के अपने-अपने दावे रहे हैं। लेकिन वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने गुजरात में मिले 5000 करोड़ साल पुराने जीवाश्मों के आधार पर दावा किया है कि घोड़ों और गैंडों की उत्पत्ति भारत में हुई है। दावा किया जा रहा है कि घोड़ों व गैंडों के इतने पुराने जीवाश्म इससे पहले कभी नहीं मिले। इस बारे में एक जर्नल में यह रिसर्च प्रकाशित हुई है। इस रिसर्च में शामिल रहे वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी (सेवानिवृत्त) किशोर कुमार ने एक मीडिया को बताया कि ये जीवाश्म गुजरात के सूरत जिले में ताड़केश्वर स्थित लिग्नाइट की खदान में मिले। यहां पांच साल पहले खोज शुरू हुई थी। इस खोज में अमेरिका और बेल्जियम के विज्ञानी भी शामिल थे। यहां से घोड़ों व गैंडों के अलावा सूंड वाले प्राणी के जीवाश्म भी मिले थे। जीवाश्म देखकर पता चलता है कि उस समय घोड़ों और गैंडों की साइज कुत्ते जितनी थी। विकास के बाद इनकी हाइट बढ़ती गई। बता दें कि ताड़केश्वर में इससे पहले मेंढक, सांप, कछुआ व बंदर के जीवाश्म भी मिल चुके हैं। आगे पढ़ें-20 करोड़ वर्ष पुरानी इस चीज से खुलेगा डायनासोर का रहस्य, एक चौंकाने वाली खोज
साहिबगंज, झारखंड. पिछले कई सालों से भूवैज्ञानिक (Geologist) यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि 15-20 करोड़ वर्ष पहले की दुनिया कैसी रही होगी, डायनासोर का जीवन कैसा होगा? भूवैज्ञानिकों को समय-समय पर उस कालखंड के ऐसे जीवाश्म मिलते रहे हैं, जिनसे डायनासोर के बारे में थोड़ा-बहुत पता चलता है। कुछ समय पहले साहिबगंज में पुरातत्व विभाग को 15-20 करोड़ वर्ष पुरानी जीवाश्म पत्तियां (Fossil leaves) मिली हैं। साहिबगंज पीजी कॉलेज के सहायक प्रोफेसर एवं भूवैज्ञानिक रंजीत कुमार सिंह के मुताबिक, ये जीवाश्म तालझाड़ी इलाके के दुधकोल पर्वत पर मिले हैं। यह कार्य केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक परियोजना के तहत राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के सहयोग से हो रहा है। माना जा रहा है कि ऐसी पत्तियां शाकाहारी डायनासोर खाते होंगे। यहां पिछले 12 सालों से खोजबीन का काम चल रहा है, लेकिन ऐसे जीवाश्म पहली बार मिले हैं। इस इलाके में लगातार जीवाश्म मिल रहे हैं। इन पर देवी-देवताओं की आकृतियां दिखाई देने से आदिवासी उन्हें पूजने लगे हैं। इन जीवाश्म पत्तियों के मिलने के बाद संभावना है कि यहां से डायनासोर के अंडों के जीवाश्म भी मिल सकते हैं। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में...
दुधकोल गांव के लोग इन जीवाश्मों को देवी-देवताओं का अवतार मानकर पूजा-अर्चना करने लगे हैं। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में..
इन जीवाश्म की आकृतियां देवी-देवताओं के चित्रों की तरह होने से गांववाले इन्हें पुराने देवी-देवता मान रहे हैं। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में..
तालझारी प्रखंड के सीमलजोड़ी, हरिजनटोला, झरनाटोला, निर्मघुट्टू और अन्य गांवों में ऐसे जीवाश्म लगातार मिल रहे हैं। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में..
इसी जगह पर गांववालों को एक गड्डे में भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति भी मिली। आगे पढ़ें इसी खबर के बारे में..
भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. रणजीत कुमार बताते हैं कि यहां की पहाड़ियां आम लोगों के लिए तीर्थ स्थल से कम नहीं हैं। यहां पुराने जीवाश्म मिलते रहते हैं।