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Womens Day 2022: खेल के मैदान से फाइटर प्लेन तक, यूं झंडे गाड़ रहीं भारत की बेटियां, पढ़िए जज्बे की कहानियां
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एक हाथ में हेलमैट थामे और दूसरे हाथ से सैल्यूट करने वाली यह बहादुर बेटी देश की पहली महिला राफेल जेट पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह (Flight Lieutenant Shivangi Singh)। शिवांगी सिंह बनारस कीर रहने वाली हैं। वह आईएएफ में 2017 में शामिल हुईं, हैं। वो राफेल उड़ाने से पहले मिग-21 बाइसन (MiG-21 Bison) विमान उड़ा चुकी हैं।
मुंबई में जन्मी स्मृति मंधाना (Smriti Mandhana) इंडियन वूमेन क्रिकेट टीम की सबसे पॉपुलर और स्टार खिलाड़ियों में से एक हैं। उन्हें लेडी सहवाग भी कहा जाता है। बाएं हाथ की सलामी बल्लेबाज मंधाना विस्फोटक अंदाज में बल्लेबाजी करने के अलावा अपनी खूबसूरती के लिए भी जानी जाती हैं। जूनियर क्रिकेट में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली स्मृति अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं। स्मृति मंधाना को ICC ने 2021 की बेस्ट वूमेन क्रिकेटर चुना है। 2013 में 150 गेंदों पर 224 रन बनाकर स्मृति वनडे में दोहरा शतक लगाने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गईं थीं।
गनीमत सेखो (Ganemat Sekhon) शूटिंग विश्व कप में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला हैं। 20 साल की सेखों ने ISSF विश्व कप में स्कीट स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। 2018 में जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय स्कीट निशानेबाज बनी थीं। गनीमत के पिता अमरिंदर सिंह ने उन्हें निशानेबाजी में अपना करियर शुरू करने के लिए जोर दिया और फिर उन्होंने सीनियर नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में रजत पदकों की अपनी हैट्रिक का आयोजन किया। शूटिंग पिछली दो पीढ़ियों से उनके परिवार में है।
शेफाली वर्मा (Shafali Verma) का जन्म 28 जनवरी, 2004 को हरियाणा के रोहतक में हुआ था। शेफाली ने इंटरनेशनल महिला क्रिकेट में सबसे कम महज 15 साल की उम्र में साल 2019 में डेब्यू किया था। वे मैदान पर सहवाग की तरह ही लंबे-लंबे छक्के मारना पसंद करती हैं। शेफाली वर्मा ने 9 साल की उम्र नवंबर 2013 में अपने पिता के साथ दिल्ली के पास रोहतक के स्टेडियम में सचिन तेंदुलकर का आखिरी रणजी ट्रॉफी मैच देखा था। शेफाली के मुताबिक सचिन को मुम्बई को जीत दिलाते देख वो क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हुईं। शेफाली टी-20 टीम की सबसे कम उम्र की क्रिकेटर हैं। उन्होंने सचिन तेंदुलकर के 30 साल पुराने 16 साल की उम्र में पहला अंतरराष्ट्रीय अर्धशतक लगाने के रिकॉर्ड को भी तोड़ा है। टी-20 वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन हैं।
उत्तराखंड (Uttarakhand) के रोशनाबाद गांव में पली-बढ़ीं वंदना कटारिया (Vandana Katariya) आज हॉकी की दुनिया में जाना पहचाना नाम है। भारतीय हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया ने 31 जुलाई 2021 को टोक्यो ओलिंपिक में इतिहास रचा। उन्होंने अफ्रीका के खिलाफ मैच में हैट्रिक लगाई। वे ओलिंपिक के 125 साल के इतिहास में हैट्रिक लगाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। उनके लिए हॉकी खिलाड़ी बनने के अपने सपने को पूरा करना इतना आसान नहीं था। पड़ोसी नहीं चाहते थे कि वह अपने सपनों को पूरा करें। यहां तक कि उनकी दादी भी चाहती थी कि वह घर के कामों में हाथ बटाए। लेकिन, पहलवान पिता नाहर सिंह कटारिया ने आगे आकर बेटी को सपोर्ट किया मंजिल तक का सफर तय करवाया।
बेंगलुरु से ताल्लुक रखने वाली इंदु मल्होत्रा (Indu Malhotra ) पिछले साल मार्च में ही रिटायर हुई हैं। वह पहली ऐसी महिला अधिवक्ता थीं जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनीं। पंजाब में पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सुरक्षा में कथित चूक मामले की जांच इंदु मल्होत्रा की देख-रेख में ही हो रही। जस्टिस इंदु कई अहम मामलों में फैसला सुना चुकी हैं। इनमें केरल का सबरीमाला सबसे चर्चित रहा। इस केस में उन्होंने चार पुरुष जजों से अलग राय जाहिर की थी।
मंजुला प्रदीप के बारें में बहुत से कम लोग ही जानते होंगे। मंजुला प्रदीप लगभग 30 साल से औरतों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। इसी साल उन्होंने 'नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेन लीडर्स' की स्थापना की है। वंचित तबकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली मंजुला वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे गुजरात के दलित परिवार से आती हैं। देश में दलित अधिकारों के सबसे बड़े संगठन नवसर्जन ट्रस्ट की वो एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रही हैं। 1992 में वे इस संगठन से जुड़ने वाली पहली महिला थीं। हाल ही में बीबीसी ने 2021 की दुनिया की सबसे प्रेरक और प्रभावशाली 100 महिलाओं सूची जारी की है। जिसमें मंजुला प्रदीप का नाम शामिल है।
पद्मश्री से सम्मानित प्रभाबेन शाह ने गरीबों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1984 में भोपाल गैस त्रासदी से लेकर हाल ही में केरल में आई बाढ़ जैसी आपदा तक उन्होंने कई मौकों पर जरूरतमंदों के लिए क्लोथ बैंक चलाए। जब महात्मा गांधी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, तब प्रभाबेन 12 साल की थीं और इस अभियान से जुड़ गई थीं। वे बारदोली की स्वराज आश्रम से भी जुड़ी रहीं।