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भारत की रियल वुमेन पॉवरः जिंदगी का 'हीरो' खोने पर भी गर्व से बोलीं- 'मैं भी देश के लिए मरने को तैयार
| Published : Mar 03 2020, 04:33 PM IST / Updated: Mar 03 2020, 07:20 PM IST
भारत की रियल वुमेन पॉवरः जिंदगी का 'हीरो' खोने पर भी गर्व से बोलीं- 'मैं भी देश के लिए मरने को तैयार
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पहली तस्वीर 9 अगस्त, 2018 की है। शहीद मेजर कौस्तुभ राणे का जब अंतिम संस्कार किया जा रहा था, तब पति के पार्थिव देह से लिपटा तिरंगा ग्रहण करते वक्त उनकी पत्नी कनिका अपने आंसू नहीं रोक पा रही थीं। दूसरी तस्वीर कुछ दिन पहले की है। उधमपुर स्थित उत्तरी कमान के जीओसी-इन-सी का कार्यभार ग्रहण करने वाले करगिल युद्ध के नायक जनरल वाई के जोशी ने एक अलंकरण समारोह में 83 सैनिकों को वीरता सम्मान एवं उत्कृष्ट सेवा सम्मान और नौ ‘वीर नारी’ पुरस्कार प्रदान किए थे। इस दौरान कनिका खुद भी आर्मी ड्रेस में वीर 'नारी सम्मान' ग्रहण करने पहुंची थीं।
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यह पहली तस्वीर 2018 की है, जब पति की शहादत के बाद कनिका राणे 'सेना पदक' ग्रहण करने पहुंची थीं। इसके बाद जब खुद वीर नारी सम्मान लेने आर्मी की ड्रेस में पहुंचीं, तो नम आंखों और गर्व से बोलीं कि वो चाहते थे कि..वो चाहते थे कि मैं आर्मी ज्वाइन करूं।’
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बता दें कि शहीद मेजर कौस्तुभ राणे की वीरता के कई किस्से हैं। उन्हें दो बार सेना मेडल से नवाजा गया। पहला 2017 में दिया गया था। दूसरा 2018 में। हालांकि तब वे यह मेडल लेने के लिए खुद जीवित नहीं थे। कनिका गर्व से कहती हैं कि वे आज पति की प्रेरणा से ही आर्मी में हैं।
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आर्मी ज्वाइन करने से पहले कनिका एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर थीं। इसके बाद उनका सिलेक्शन सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) की परीक्षा में हो गया। अक्टूबर 2019 में वह 49 हफ्ते के प्रशिक्षण के लिए चेन्नई में अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) चली गईं।(तस्वीर कौस्तुभ राणे के अंतिम संस्कार के दौरान की। अपने बेटे को छाती से चिपका कनिका)
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कनिका से जब भी मीडिया ने बता की, उन्होंने हमेशा दुहराया कि अगर उन्हें मौका मिला, तो वे भी कश्मीर में ड्यूटी करना चाहेंगी। (तस्वीर कौस्तुभ राणे के अंतिम संस्कार के दौरान की)
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बता दें कि मेजर कौस्तुभ राणे ने पुणे से कंप्यूटर ऐप्लिकेशन में ग्रेजुएशन किया था। कनिका के मुताबिक, कौस्तुभ का सपना था कि वो आर्मी में जाएं। उनका सपना पूरा हुआ। अब इसी सपने को वे आगे बढ़ाएंगी।
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मेजर कौस्तुभ की प्रारंभिक शिक्षा मीरा-भाईंदर, मुंबई और पुणे में हुई थी। वे 2008 में सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हुए हुए थे। 2011 में कैप्टन और 2018 में मेजर बने थे। जब कौस्तुभ की अंतिम यात्रा निकाली गई, तब पूरे इलाके को पीले फूलों से सराबोर कर दिया था। पीले फूल उम्मीद का रंग माने जाते हैं। कनिका इसी उम्मीद को जिंदा रखना चाहती हैं।
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कनिका वरिष्ठ सेना अधिकारी के पद पर चयनित हुई थीं। कनिका कहती हैं कि वे अपने बेटे के सामने उसके पिता को ही आदर्श के तौर पर रखना चाहेंगी। इसी आस को लेकर वे भी आर्मी में आईं।
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कनिका कहती हैं कि कौस्तुभ की कमी कभी नहीं भर सकती, लेकिन जो उन्होंने चाहा..वे उसे पूरा कर रही हैं। देश सेवा के लिए उन्होंने आर्मी की वर्दी पहनी है।
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कनिका भारतीय महिलाओं की ताकत का प्रतिनिधित्व करती हैं। इमोशनल वे भी हैं, लेकिन कॉन्फिडेंट भी। कनिका ने कहा कि कौस्तुभ मुझे रोते नहीं देख सकते थे और अब वे हंसते-हंसते देश सेवा करना चाहेंगी।