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5 लाख साल पहले उल्का पिंड टकराने से बना था यह गड्ढा, अब इसके पानी के रंग ने सबको चौंकाया
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बता दें कि लोनार झील इन दिनों अपने गुलाबी रंग के पानी के कारण चर्चाओं में है। पहले इसकी वजह लाल रंग के शैवाल बताए जा रहे थे, लेकिन फिर रिसर्च में सामने आया इसके पीछे हालोआर्चिया नामक जीवाणु हैं।
रिसर्च में सामने आया कि बारिश नहीं होने से झील का पानी अधिक वाष्पीकृत हो गया। इससे पानी का खारापन बढ़ गया। हालोआर्चिया जीवाणु खारे पानी में पनपते हैं।
बता दें कि लोनार झील एक पर्यटन स्थल है। वैज्ञानिक मानते हैं कि 5 लाख साल पहले कोई उल्का पिंड यानी धूमकेतु इस जगह से टकराया था। यह उल्का पिंड 10 लाख टन वजनी रहा होगा। इस जगह यह 22 किमी प्रति सेकंड की गति से टकराया होगा। तब इसका टेम्परेचर 1800 डिग्री रहा होगा। उल्का पिंड के टकराने से यहां 10 किमी तक धूल का गुब्बार उठा था।
बता दें कि 2006 में झील में एक अजीब सी हरकत हुई थी। झील का पूरा पानी वाष्प बनकर उड़ गया था। तब झील में सिर्फ नामक और खनिज के चमकते छोटे-बड़े क्रिस्टल ही नजर आ रहे थे।
इस झील का उल्लेख धार्मिक किताबों और किवदंतियों में भी मिलता है। इसके बारे में ऋग्वेद और स्कंद पुराण में पढ़ा जा सकता है। पद्म पुराण और आइना-ए-अकबरी में भी लोनार झील के बारे में लिखा गया है। कहा यह तक जाता है कि अकबर इसी झील के पानी से सूप बनवाता था।
नासा से लेकर सभी बड़ी एजेंसियां इस पर रिसर्च करती रहती हैं। यह झील दुनिया की नजरों में 1823 में सामने आई थी, जब ब्रिटिश अधिकारी जेई अलेक्जेंडर यहां आए थे।
70 के दशक में वैज्ञानिकों ने इस झील की एक नई थ्योरी दी थी। उनका कहना था कि यह झील ज्वालामुखी के मुख के कारण बनी हुई है। हालांकि इसे नकार दिया गया।
2010 से पहले इस झील की उत्पत्ति 52 हजार साल पहले की मानी जाती रही है। लेकिन ताजा रिसर्च में इसे 5 लाख 70 हजार साल पहले का माना गया है।
झील को लेकर कई कथाएं भी हैं। जैसे इसका निर्माण लोनासुर नामक एक राक्षस के नाम पर पड़ा। इसका वध भगवान विष्णु ने किया था।