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क्या है ब्लैक वारंट, जिसके जारी होते ही निर्भया के दरिंदों को आधे घंटे फांसी पर लटकाकर दी जाएगी मौत
नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप के दोषी अक्षय द्वारा दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जिसके बाद अब गैंगरेप के चारों दोषी मुकेश, पवन, अक्षय और विनय के फांसी की सजा का रास्ता साफ हो गया है। जिसके बाद अब सबकी नजरें दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट पर टिकी हुई है। जहां से इन दोषियों के लिए ब्लैक वारंट जारी किया जाएगा। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिरकार ब्लैक वारंट होता क्या है।
| Published : Dec 18 2019, 04:51 PM IST / Updated: Dec 18 2019, 06:34 PM IST
क्या है ब्लैक वारंट, जिसके जारी होते ही निर्भया के दरिंदों को आधे घंटे फांसी पर लटकाकर दी जाएगी मौत
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किसी भी दोषी को जारी किए जाने वाले ब्लैक वारंट पर फांसी की सजा का वक्त लिखा होता है। उसी वक्त के हिसाब से कैदी को उसके सेल से बाहर निकाला जाता है। उसके इर्द-गिर्द 12 हथियारबंद गार्ड होते हैं।
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कोर्ट द्वारा ब्लैक वारंट जारी होने के बाद निर्भया के दोषी आजाद हिंदुस्तान में फांसी पाने वाले 58 वें, 59वें, 60वें और 61वें गुनहगार होंगे। देश में पहली फांसी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे को हुई थी जबकि आखिरी यानी 57 वीं फांसी 2015 में याकूब मेमन को दी गई थी।
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तिहाड़ जेल के तीन नंबर सेल में जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी है, उसी बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल हैं. डेथ सेल यानी वो जगह जहां सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सज़ा मिली है। 24 घंटे में दोषी को सिर्फ आधे घंटे के लिए बाहर निकाला जाता है। डेथ सेल के कैदियों को बाकी और चीज तो छोड़िए पायजामे का नाड़ा तक पहनने नहीं दिया जाता। क्योंकि यह आशंका होती है कि दोषी कहीं कोई और कदम न उठा ले।
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फांसी देने के वक्त कैदी को 22 फुट के एक तख्ते पर ले जाया जाता है। इस दौरान उसे नीचे से लेकर ऊपर तक काले कपड़े पहननाए जाते हैं। फांसी देने से पहले उसके हाथ पीछे की ओर करके बांध दिए जाते हैं। साथ ही पांव बांध दिए जाते हैं और चेहरे पर भी काला कपड़ा डाल दिया जाता है। इसके बाद रस्सी का फंदा गले में डाला जाता है। इसके बाद तय वक्त पर जल्लाद फांसी के तख्ते का लीवर खींच देता है जिसके बाद कैदी के पांव के नीचे का तख्त नीचे की तरफ खुल जाता है और कैदी का शरीर लटक जाता है।
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फांसी लगने के बाद आधे घंटे तक उसके शरीर को रस्सी पर लटका रहने दिया जाता है और उसके बाद डॉक्टर ये चेक करता है कि कैदी की मौत हो गई है या नहीं। उसके बाद शव का पोस्टमार्टम किया जाता है और फिर अगर जेल सुपरिटेंडेट को ये लगे कि मरने वाले के शव और उसकी चीज़ों का गलत इस्तेमाल नहीं किया जाएगा तो वो शव उसके परिजनों को सौंप देते हैं।