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चीन के नाक के नीच BRO ने 27 दिन में बनाया पुल, बॉर्डर तक आसानी से पहुंचेंगे 40 टन वजनी वाहन
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विवाद के चलते आसान नहीं था पुल बनाना
दापोरिजो के कारण पुल बनाना आसान नहीं था। यहां पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के दो विवाविद एरिया आसफिला और माजा हैं।
2 महीने का दिया गया था समय, 27 दिन में काम पूरा
बीआरओ को पुल बनाने के लिए दो महीने का समय दिया गया था लेकिन उन्होंने इसे एक महीने के अंदर खत्म कर लिया। एक अधिकारी ने बताया कि उन लोगों ने पुल बनाने के लिए 24 घंटे और सातों दिन काम किया।
दापोरिजो से गुजर सकता था सिर्फ 9 टन भार
पुल के निर्माण के दौरान बीआरओ ने काम जारी रखने के लिए कोरोना वायरस से बचने के लिए सभी प्रिकॉशन अपनाए। दापोरिजो एक पुराना पुल था जो 1992 में बना था। वह जर्जर हो गया था। इसके ऊपर से सिर्फ 9 टन का भार ही गुजर सकता था।
यह पुल पूरे अरुणाचल प्रदेश को दो मुख्य मार्गों लीकाबली-बसर-बामे-दापोरिजो और ईंटानगर-जीरो-रागा-दापोरिजो को जोड़ता था।
कई लोगों ने पुल बनाने में डाला बाधा
यहां पर दो मुख्य पुल ही थे। दापोरिजो के अलावा एक और पुल है तामीन, लेकिन इसका मार्ग बहुत कठिन है। जो पहाड़ों से होकर गुजरता है। इसके अलावा इस पुल की क्षमता मात्र 3 टन की है। अधिकारियों ने बताया कि कई ऐसे लोग हैं जो नहीं चाहते थे कि सुबनसीरि जिले का विकास हो।
17 मार्च से शुरू हुआ काम
इस पुल की डिजाइन मानक अभ्यास से अलग है। इसकी डिजाइन को लेकर कॉलेज ऑफ मिलिटरी इंजिनियरिंग पुणे के प्रोफेशनल्स से चर्चा की गई। पुल का काम 17 मार्च को शुरू किया गया और इसे 14 अप्रैल को पूरा कर दिया गया।
भारत-चीन के बीच एक रणनीतिक कड़ी
दापोरिजो पुल भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा की दिशा में एक रणनीतिक कड़ी है। सभी आपूर्तियां, राशन, निर्माण संबंधी सामग्री और दवाएं इसी पुल से गुजरती हैं। पुल के निर्माण का कार्य 23 बीआरटीएफ ने किया।
ज्यादातर काम लॉकडाउन के दौरान हुआ
इस पुल का अधिकतर निर्माण देश में कोरोनावायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन के समय में हुआ। जब पूरा देश बंद था, तब बीआरओ के जवान दिन-रात अपने काम में जुटे रहे। इस दौरान संक्रमण से बचने के लिए बीआरओ के जवानों ने जरूरी नियमों का भी पालन किया। रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को पुल के जनता के लिए खोले जाने की जानकारी दी।
पुराने पुल से बस गिरी थी, कोई नहीं बचा था
नया पुल बनने के बाद लगातार इसका परीक्षण किया जा रहा था। पुराने पुल पर कई साल पहले एक दुर्घटना भी हो चुकी है। 26 जुलाई 1992 को इससे एक बस नदी में गिर गई थी। उस दुर्घटना में कोई यात्री जिंदा नहीं बचा था।