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ना हिंदू मरा, ना मुस्लिम; इन दंगों में सिर्फ मानवता की हुई मौत, ये तस्वीरें दे रहीं गवाही
नई दिल्ली. दिल्ली में हिंसा को रुके करीब 2 दिन हो चुके हैं। लेकिन अभी भी मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है। मलबे और नालों से लाशें निकल रही हैं। वहीं, अस्पताल में 300 से ज्यादा लोग भर्ती हैं। अभी 1984 के सिख विरोधी दंगों का दुख कम भी नहीं हुआ था कि दिल्ली का यह दंगा एक बार फिर ऐसे जख्म दे गया, जिन्हें सालों तक भुलाया नहीं जा सकेगा। दो गुटों में झड़प से शुरू ये दंगा हजारों लोगों को जीवन भर का दुख दे गया। इस हिंसा में किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपना पिता। रोते हुए आंखों से गिरते हुए आंसू इस बात के गवाह हैं कि इन दंगों में ना हिंदू मरा है, ना मुस्लिम। इन दंगों में हमने एक बार फिर मानवता को मरते हुए देखा है।
| Published : Feb 28 2020, 12:25 PM IST / Updated: Feb 28 2020, 01:32 PM IST
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पिता का शव देख रोता बेटा। मुदस्सिर ने दिल्ली हिंसा में अपनी जान गंवा दी। वे कदमपुरी में अपने घर के सामने खड़े थे। उसी वक्त भीड़ ने उनपर हमला कर दिया।
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अंतिम संस्कार के वक्त रोते मुदस्सिर के पिता।
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मौत की खबर सुन रोती आईबी अफसर अंकित शर्मा की मां और भाई। अंकित शर्मा का शव एक नाले में मिला था। उन पर प्रदर्शनकारियों ने चाकू से कई बार हमला किया। अंकित के परिजनों के मुताबिक, प्रदर्शनकारी अंकित को घर से खींच ले गए। उन्होंने आप पार्षद ताहिर हुसैन पर हत्या का आरोप लगाया है।
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अपने बेटे की मौत की खबर सुन बेसुध मां।
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दिल्ली हिंसा में पुलिस कॉन्स्टेबल रतनलाल ने अपनी जान गंवा दी। वे हिंसा के वक्त गोकुलपुरी में तैनात थे। उन पर प्रदर्शनकारियों ने गोलियां बरसाईं थीं।
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रतन लाल की मौत के रोते परिजन। पत्नी रोत हुए बेसुध हो गईं। रतनलाल के तीन बच्चे हैं।
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हिंसा में जान गंवा चुके पुलिस कॉन्स्टेबल रतन लाल और अंकित शर्मा को श्रद्धांजलि देने हजारों लोग पुहंचे।
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बेटे की मौत की खबर सुनकर फूट फूट कर रोते एक पिता।
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इस हिंसा में मुशर्रफ भी मारे गए। वे 33 साल के थे। पत्नी अस्पताल में उनकी मौत की खबर सुन रो पड़ीं। मुशर्रफ के तीन बच्चे हैं। पत्नी मल्लिका ने बताया कि उन पर प्रदर्शनकारियों ने घर में घुसकर हमला कर दिया।
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हिंसा में स्कूल को जला हुआ देख टीचर अपने आंसू नहीं रोक पाई।
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चांदबाग के रहने वाले मोहम्मद जुबैर की यह तस्वीर काफी वायरल हुई। इसे देखकर हर किसी की आंख में आंसू गए। मोहम्मद जुबैर कभी प्रदर्शनों में शामिल नहीं हुए। उनपर अचानक भीड़ ने हमला कर दिया था।
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जीटीबी अस्पताल के बाहर जब मोहसिन खान के बेटों को पिता की मौत की खबर मिली तो दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगे।
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अपनी जली हुई सब्जी की दुकान को देखता दुकानदार।
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हिंसा को रुके 36 घंटे से ज्यादा वक्त हो गया। लेकिन नालों से अभी भी लाशे मिल रही हैं। एक शव को रस्सी से बांधकर निकालती पुलिस।
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ब्रिजपुरी में जलाए गए इस स्कूल में सिर्फ एक कुर्सी ही बची रह गई।