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कौन है वो रिटार्यड जज और पूर्व डीजीपी, जिसके हाथ में सौंपी गई है विकास दुबे की जांच की कमान
नई दिल्ली. कानपुर के 8 पुलिसकर्मी की बेहरमी से हत्या करने वाले गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक जांच समिति का गठन करने का आदेश दिया है। यह समिति सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता में गठित की गई है। इस समिति के दूसरे सदस्य यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक के.एल. गुप्ता होंगे। कोर्ट की ओर से समिति को आदेश दिया गया है कि वो हर पहलू से इस मामले की जांच करे।
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जस्टिस बी.एस. चौहान यानी न्यायमूर्ति डॉ. बलबीर सिंह चौहान भारतीय विधि आयोग के 21वें अध्यक्ष रहे हैं। उनकी आयु 71 साल है। केंद्र सरकार ने 10 मार्च, 2016 को उन्हें भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था। इससे पहले जस्टिस चौहान कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण के अध्यक्ष थे।
सुप्रीम कोर्ट में उनका कार्यकाल करीब 5 साल का रहा। वो मई 2009 से जुलाई 2014 तक देश की सबसे बड़ी अदालत यानी उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रह चुके हैं। इससे पहले जस्टिस बी.एस. चौहान 16 जुलाई 2008 से 10 मई 2009 तक उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। उनका गृह क्षेत्र पश्चिम उत्तर प्रदेश है। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक के.एल. गुप्ता की गिनती तेजतर्रार पुलिस अफसरों में होती थी। वो यूपी कॉडर के अच्छे आईपीएस अफसरों में गिने जाते थे। वह प्रतिनियुक्ति पर अर्धसैनिक बल बीएसएफ में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) के पद पर भी रहे। यूपी में वे कई जिलों और मंडलों में पुलिस विभाग के उच्च पदों पर रहे।
उन्होंने एसपी के पद से लेकर प्रदेश के पुलिस मुखिया के पद पर भी सेवाएं दी। पूर्व आईपीएस के.एल. गुप्ता 2 अप्रैल 1998 से 23 दिसंबर 1999 तक उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक पद पर रहे थे। आज भी उन्हें उनके काम के लिए याद किया जाता है। वो उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले हैं। वर्तमान में वह अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहते हैं।
जस्टिस बी.एस. चौहान और पूर्व पुलिस महानिदेशक के.एल. गुप्ता का नाम विकास दुबे एनकाउंटर की जांच के लिए खुद उत्तर प्रदेश सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा था, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। यूपी सरकार की तरफ से देश की सबसे बड़ी अदालत को बताया गया कि जस्टिस चौहान ने इस जांच समिति में शामिल होने के लिए सहमति दे दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति को एक सप्ताह के अंदर जांच शुरू करने की हिदायत दी है। साथ ही इस मामले की हर पहलू से जांच पड़ताल कर 2 महीने में रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल करने का फरमान भी सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस काम के लिए सचिव स्तर का अधिकारी नियुक्त करने या फिर समिति के अध्यक्ष के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा है।