लद्दाख में सर्दियों की तैयारी में जुटी भारतीय सेना, चीन ना कर दे कोई 'गुस्ताखी'
नई दिल्ली. लद्दाख सीमा पर भले ही भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव कम हुआ हो, लेकिन अभी ये पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। चीनी सेना अभी पूरी तरह से पीछे नहीं हटी है। ऐसे में भारतीय सेना भी एल.ए.सी. पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। वो लद्दाख में मुश्किल हालात में टिके रहने के लिए अपनी तैयारियों को और पुख्ता करने में जुटी है। लद्दाख की ऊंचाई वाले माहौल में रहने के लिए सेना को खास कपड़े, शेल्टर, आर्कटिक टैंट, ईंधन और अन्य कई तरह के सामान की जरूरत होती है।
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भारतीय सेना ने अपने जवानों के लिए पर्याप्त मात्रा में राशन और अन्य सप्लाई मुहैया कराने तैयारी तेज कर दी है। चीनी सैनिक अभी तक उत्तर में पेनगॉन्ग और लद्दाख के पश्चिम में गोगरा-हॉट-स्प्रिंग्स से अभी पूरी तरह हटे नहीं है। ऐसे में किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए भारतीय सेना अपनी तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को एक वेबसाइट से बातचीत में बताया कि अगर लद्दाख में आमतौर पर सालाना 30 हजार मैट्रिक टन राशन की जरूरत होती है तो इस वक्त क्योंकि इलाके में अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई है तो उन्हें कम से कम दो गुना राशन चाहिए होगा। अधिकारी ने कहा कि चीनी सेना (पीएलए) इतनी जल्दी नहीं जा रही तो हम पूरी रणनीति के साथ लंबे वक्त के लिए तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने लॉजिटिस्क और 'अडवांस विंटर स्टॉकिंग (AWS)' की तैयारी शुरू कर दी है।
उन्होंने कहा कि उन्हें सर्दियों के दौरान भी बड़ी संख्या में अपने जवानों को अग्रिम मोर्चे पर रखना पड़ सकता है ताकि चीनी सेना मौका का नाजायज फायदा न उठा सके।
AWS अग्रिम मोर्चों पर बर्फबारी और सर्दियां शुरू होने से पहले सप्लाई मुहैया कराने के लिए योजना बनाने, उसका क्रियान्वन करने और सप्लाई के लिए ट्रांसपोर्टेशन का इंतजाम करने के लिए हर साल होने वाली एक लंबी प्रक्रिया है। बताया जा रहा है कि इस बार चुनौती अधिक है। मई की शुरुआत से चीन के साथ सीमा पर चल रही तनातनी के बीच सामान्य से तीन गुने से ज्यादा जवान इस इलाके में तैनात हैं। कई जवान बहुत ऊंचे इलाकों में हैं। इनमें से अधिकतर तो 15000 फीट की ऊंचाई पर हैं। नवंबर के बाद पहुंचना लगभग नामुमकिन होता है।
AWS में ट्रकों का कारवां उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से दो रास्तों से लद्दाख जाता है। पहला, श्रीनगर से जोजी ला पास और दूसरा, मनाली से रोहतांग पास होता हुआ जाता है, जो मई से अक्टूबर के बीच खुला होता है।
चंडीगढ़ से लेह तक के लिए हवाई मार्ग को भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन एलिट्यूड और मौसम के चलते इसकी अपनी सीमाएं हैं। हालांकि, AWS एक्सरसाइज शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सेना अन्य वैकल्पिक योजनाओं पर भी काम कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि इसमें बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन की मदद से जोजी ला पास को पूरी सर्दियां खोले रखने का भी विचार किया जा रहा है।
सेना के पास पहले AWS एक्सरसाइज पूरी करने के लिए पहले जून से सितंबर के बीच के 150 दिन का वक्त होता था। लेकिन, इस बार कोविड 19 के चलते कार्यक्षमता पर असर पड़ा है इसलिए यह वक्त और कम हो गया है और तो और, इतनी बड़ी मात्रा में डिहाइड्रेटेड राशन का इंतजाम करना भी अपने आप में एक चुनौती है।