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चेहरा नीला हो गया था, मुंह पर थे सफेद धब्बे... मौत के बाद इन हालातों में मिले थे पूर्व PM शास्त्री जी
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मौत के बाद पूरा चेहरा हो गया था नीला, मुंह पर थे सफेद धब्बे
- सोवियत संघ के ताशकंद में 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान ने एक समझौते पर दस्तखत किए थे। उसी रात ताशकंद में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था।
- शास्त्री के निधन के बाद परिजनों ने उनकी मौत पर सवाल उठाए थे। उनके बेटे अनिल शास्त्री के मुताबिक लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद उनका पूरा चेहरा नीला हो गया था, उनके मुंह पर सफेद धब्बे पाए गए थे।
- उन्होंने कहा था कि शास्त्री के पास हमेशा एक डायरी रहती थी, लेकिन वह डायरी नहीं मिली। इसके अलावा उनके पास हरदम एक थर्मस रहता था, वो भी गायब था। इसके अलावा पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था, जिससे उनकी मौत संदेहजनक मानी जाती है।
रूसी औरत ने बताया, "यॉर प्राइम मिनिस्टर इज दाइंग।"
- शास्त्री जी की मौत के वक्त उनके होटल में ही मौजूद पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा बियॉन्ड द लाइंस और इंटरव्यू में उनकी मौत और उनसे जुड़े कुछ किस्सों के बारे में बताया था।
- कुलदीप बताते हैं उस समय भारत-पाकिस्तान समझौते की खुशी में होटल में पार्टी थी। वे बताते हैं कि उनकी नींद दरवाजे की दस्तक से खुली। सामने एक रूसी औरत खड़ी थी, जो उनसे बोली, "यॉर प्राइम मिनिस्टर इज दाइंग।"
- नैयर तेजी से कोट पहनकर नीचे आए। वहां पर रूसी प्रधानमंत्री कोसिगिन खड़े थे। एक पलंग पर शास्त्री जी का छोटा सा शरीर सिमटा हुआ था। नैयर बताते हैं वहां जनरल अयूब भी पहुंचे।
पत्नी के इस नाराजगी से शास्त्री को लगा था धक्का
- नैयर बताते हैं देर रात शास्त्री जी ने अपने घर पर फोन किया था। फोन उनकी सबसे बड़ी बेटी ने उठाया था। फोन उठते ही शास्त्री बोले, 'अम्मा को फोन दो।' शास्त्री अपनी पत्नी ललिता को अम्मा कहा करते थे।
- उनकी बड़ी बेटी ने जवाब दिया, अम्मा फोन पर नहीं आएंगीं। शास्त्री जी ने पूछा क्यों? जवाब मिला क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया है। वो बहुत नाराज हैं। शास्त्री को इस बात से बहुत धक्का लगा।
- नैयर बताते हैं इसके बाद शास्त्री जी परेशान होकर कमरे में चक्कर लगाने लगे। हालांकि कुछ देर में उन्होंने फिर अपने सचिव को फोन किया। वो भारत में नेताओं की प्रतिक्रिया जानना चाहते थे। उन्हें आलोचना भरी दो प्रतिक्रियाएं मिली थीं।
पहला ऐसा विदेशी दौरा, जब पत्नी नहीं थी साथ
- लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि लंबे वक्त तक उनकी मां कहती रहीं कि अगर वे शास्त्री जी के साथ इस दौरे पर ताशकंद गई होतीं तो शास्त्री जी जिंदा होते।
- उन्होंने बताया कि वैसे ये अकेला दौरा था, जब उनकी पत्नी उनके साथ नहीं गई थीं। ये बहुत ही कूटनीतिक दौरा था तो विदेश मंत्रालय ने उन्हें न जाने का सुझाव दिया था।
- शास्त्री जी की मौत के बाद पत्नी ललिता ने उनकी अस्थियों को काफी वक्त तक संभालकर रखा, जिसे बाद में इलाहाबाद के संगम में प्रवाहित किया गया।
- ललिता शास्त्री की इच्छा थी कि दिल्ली में शास्त्री जी की समाधि के पास ही उनकी भी समाधि बने, हालांकि उनकी ये इच्छा अधूरी ही रह गई। 1993 में ललिता जी का भी देहांत हो गया।
"अब मैं मंत्री नहीं रहा, मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं बिजली का बिल भर पाऊं।"
- शास्त्री की सादगी का एक क़िस्सा कुलदीप नैयर ने एक इंटरव्यू में सुनाया था। उन्होंने बताया था कि जब कामराज योजना के तहत लाल बहादुर शास्त्री मंत्री नहीं रहे तो मैं एक बार उनके घर गया। पूरे घर में अंधेरा था और शास्त्रीजी एक कमरे में बैठे थे।
- मैंने उनसे पूछा कि आपने घर में अंधेरा क्यों कर रखा है? उनका जवाब था, अब मैं मंत्री नहीं रहा। बिजली का बिल तो मुझे ही भरना पड़ेगा। मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं बिजली का बिल भर पाऊं।"
- नैयर ने बताया कि शास्त्री जी ने एक बात और कही कि दाल और सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। अब हम दिन के खाने में सिर्फ एक दाल और सब्जी ही खाते हैं। उस समय शास्त्री को सांसद के तौर पर 500 रुपए मिलते थे।
स्कूल जाने के लिए तैरकर पार करते थे नदी
- पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था।
- बचपन से ही शास्त्री को काफी गरीबी और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कई जगह इस बात का भी जिक्र किया गया है कि पैसे नहीं होने पर वे तैरकर नदी पार कर स्कूल जाया करते थे।
जेल में आम लाने पर किया पत्नी का विरोध
- स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री करीब 9 साल तक जेल में रहे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग न होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया।
- इसके बाद वे सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए। 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी जेल में रहे। शास्त्री जी ने करीब 9 साल जेल में बिताए।
- जब वे जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से दो आम छिपाकर ले आई थीं। इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया था। शास्त्री जी का तर्क था कैदियों को जेल के बाहर की चीज खाना कानून के खिलाफ है।
दहेज में लिए खादी के कपड़े
- शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे। तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया। शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी।
- शास्त्री जी ने अपनी शादी में दहेज लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी के कपड़े दहेज के तौर पर लिए थे।
जय जवान जय किसान का दिया था नारा
- 1964 में जब शास्त्री प्रधानमंत्री बने तब देश में खाने कई चीजें आयात करनी पड़ती थीं। 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा। तब उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की।
- उन्होंने कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया। हालांकि 1965 में भारत-पाक युद्ध विराम के बाद उन्होंने ये भी कहा था कि हमने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी, अब हमें शांति के लिए पूरी ताकत लगानी है।