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Nagaland firing: मेजर को जान से मारना चाहती थी भीड़; हिंसा के विरोध में सोम बंद; सेना ने कहा-नहीं छुपाए शव
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असम में तैनात 21 पैरा टीम को खुफिया एजेंसियों ने सेना को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की सोम में मौजूदगी की सूचना दी थी। हालांकि 6 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इस घटना पर बयान दिया। राज्यसभा में शाह ने बताया कि सेना को मोन जिले के ओटिंग में उग्रवादियों के मूवमेंट की खुफिया सूचना मिली थी। इसी आधार पर 21 कमांडो ने संदिग्ध इलाके में ऑपरेशन शुरू किया था। (तस्वीर: विरोध में कैंडल मार्च और घटनास्थल)
जैसा कि कहा जा रहा है कि सेना को खबर मिली थी कि 8 उग्रवादी एक बोलेरो गाड़ी में बैठकर जा रहे हैं। इस पर पैरा कमांडोज़ ने फायरिंग की, लेकिन उसमें मजदूर सवार थे। इनके पास एक बैरल-गन थी। इसे देखकर ही कमांडोज ने उन पर फायरिंग की। (तस्वीर: हिंसा के बाद)
इस घटना के बाद वहां मौजूद भीड़ उग्र हो गई और उसने सेना की गाड़ियों को आग लगा दी। भीड़ ने कमांडोज पर भी हमला किया। एक कमांडो की गर्दन काट दी गई। उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद कमांडोज़ ने उग्र भीड़ पर फायरिंग की। इसमें 7 लोगों की मौत हो गई। (तस्वीर: सेना पर हमला करती भीड़)
हमले में मेजर घायल हैं। उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया है। वहीं, 13 अन्य कमांडो चोट लगने के कारण अस्पताल ले जाना पड़ा। इस मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी बैठा दी गई है। इस इंक्वायरी का इंचार्ज मेजर जनरल रैंक के अधिकारी को बनाया गया है। जांच अधिकारी, नॉर्थईस्ट सेक्टर में तैनात हैं।
(तस्वीर: हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन)
बता दें कि 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन नागा नेता अंगामी फिजो ने नागालैंड की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। 1952 में उन्होंने नागाओं के लिए एक स्वतंत्र भूमिगत सरकार भी स्थापित की ली। लेकिन स्थितियां बेकाबू होती गईं और फिर भारत सरकार को वहां अपनी सेना भेजनी पड़ी। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागा विद्रोहियों के साथ समझौता किया था। (तस्वीर: छात्र संगठन द्वारा बंद)