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आतंकियों को जेल में बिरयानी खिला रहे हैं, निर्भया के दोषियों को फांसी देने की जल्दी क्यों...वकील का सवाल

नई दिल्ली. निर्भया के दोषियों को फांसी देने की नई तारीख 3 मार्च की सुबह 6 बजे तय की गई है। डेथ वॉरंट जारी करने के बाद ही दोषियों के वकील एपी  सिंह बौखला गए। उन्होंने यहां तक कह डाला कि क्या एक हत्या के बदले पांच लोगों की मौत ठीक है। पांच लोगों की ही मौत नहीं होती है। पचास परिवार तबाह होते हैं। बता दें कि निर्भया के दोषियों के लिए तीसरी बार डेथ वॉरंट जारी हुआ। इससे पहले पहला डेथ वॉरंट 22 जनवरी फिर दूसरा 1 फरवरी को जारी हुआ था।

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Asianet News Hindi
Published : Feb 17 2020, 07:05 PM IST| Updated : Feb 18 2020, 09:43 AM IST
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निर्भया के चारों दोषियों के लिए यह तीसरी बार डेथ वॉरंट जारी किया गया है। इससे पहले 22 जनवरी को चारों दोषियों को फांसी दी जानी थी, लेकिन दोषियों की याचिका की वजह से उसे रद्द करना पड़ा। अगला डेथ वॉरंट जारी हुआ। फांसी की तारीख 1 फरवरी की सुबह 6 बजे तय की गई। लेकिन दोषियों की याचिका के बाद इसे भी रद्द कर दिया गया।
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उन्होंने कहा, एक हत्या के बदले पांच को फांसी दोगे आप। पांच लोग नहीं मरेंगे। पांच के बदले पचास परिवार दबाव होंगे। भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाएंगे तो मैं उसके लिए लड़ता रहूंगा।
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वकील ने बताया, आप को बताना पड़ेगा। आप जल्दबाजी में फांसी दे दीजिए। लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा, जब कटघरे में खड़े होंगे। देश की जेलों में कई आतंकी पड़े हुए हैं। उनकी दया याचिका सहित सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके हैं, उन्हें फांसी क्यों नहीं देते हैं। आप उनके डेथ वॉरंट जारी नहीं कर रहे हैं।
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उन्होंने कहा, यहां विनय का सिर फाड़ दिया गया। विनय पागल हो गया। उसकी मां उससे मिल कर आई है। सिर में पट्टियां बंधी हैं। खाना नहीं खा पा रहा है। मां को नहीं पहचान पा रहा है।
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उन्होंने कहा, चार लोगों का जीवन लेने की बात है। आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते हैं। उनका डेथ वॉरंट क्यों नहीं जारी करते हैं।
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वकील एपी सिंह से पूछा गया कि अब नया पैतरा क्या होगा, तब उन्होंने कहा, कोई नया पैतरा नहीं। कानूनी तरीके से ही सब किया जाएगा। उन्होंने कहा कि डेथ वॉरंट जारी करके सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाया जा रहा है। ऐसी क्या जल्दी है। ऐसी क्या समस्या है।
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2012 दिल्ली गैंगरेप दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा, अभी बहुत विकल्प बाकि है। ये आप लोगों के द्वारा क्रिएट किया राजनीतिक दबाव है। मानवाधिकार के बहुत से लोग फांसी का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि फांसी की सजा संविधान, आर्टिकल 21, महात्मा गांधी के सिद्धांतों और प्राकृतिक अधिकारों के खिलाफ है।

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