Parle G के कवर पर छपी बच्ची कौन है? हैरान करने वाली है Photo की हकीकत
- FB
- TW
- Linkdin
5 रुपए में मिलने वाला पारले-जी बिस्कुट का पैकेट प्रवासियों मजदूरों के बीच खूब बांटा गया। किसी ने खुद खरीद के खाया तो किसी को दूसरों ने मदद के तौर पर बिस्कुट बांटे। बहुत से लोगों ने पारले-जी बिस्कुट का स्टॉक जमा कर के रख लिया।
लॉकडाउन में जहां कंपनियां औंधे मुंह गिरती रहीं वहीं पारले के शेयर पांच प्रतिशत तक बढ़े हैं। कंपनी ने बिस्कुट के सेल्स आंकड़े तो नहीं बताए हैं मगर कहा कि मार्च, अप्रैल और मई (लॉकडाउन) पिछले 8 दशकों में सबसे अच्छे महीने रहे हैं। पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने "ईटी" के हवाले से बताया कि कंपनी का कुल मार्केट शेयर (लॉक डाउन के दौरान) करीब 5 प्रतिशत बढ़ा है और इसमें से 90 प्रतिशत तक की ग्रोथ पारले-जी की बिक्री से हुई है।
पारले प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित पारले-जी या पारले ग्लूकोज बिस्कुट भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय है। कंपनी का नारा है, जी का मतलब जीनियस (प्रतिभाशाली)। "पारले-जी" नाम को उपनगरीय रेलवे स्टेशन विले पार्ले से लिया गया है जो पार्ले नामक पुराने गांव पर आधारित है।
भारत के ग्लूकोज बिस्किट श्रेणी के 70% बाजार पर इसका कब्जा है, इसके बाद नंबर आता है ब्रिटानिया के टाइगर (17-18%) और आईटीसी के सनफीस्ट (8-9%) का। मुंबई के विले पारले में रहने वाले एक चौहान परिवार ने 1029 में पारले नाम की कंपनी की शुरूआत की। शुरू में तो केक, पेस्ट्री और कुकीज ही बनाया जाता था, लेकिन मार्केट की डिमांड पर बिस्कुट भी बनाना शुरू कर दिया।
साल 1939 से पारले ने इंडिया में ही बिस्कुट बनाकर बेचना शुरू कर दिया। 1980 तक यह पारले ग्लूको बिस्कुट के नाम से आता था, लेकिन बाद में नाम बदलकर पारले-जी रख दिया गया।
जी का मतलब था ग्लुकोज। अब उसे बदलकर जीनियस कर दिया गया।
जी के मतलब के साथ कवर फोटो भी बदल दी गई। पहले कवर पर गाएं और ग्वालन बना था, लेकिन बाद के दशक में उस ग्वालन को प्यारी सी बच्ची ने रिप्लेस कर दिया।
पारले कंपनी के प्रोडक्ट मैनेजर मयंक जैन का कहना है कि ये किसी असल इंसान की तस्वीर नहीं बल्कि महज इलस्ट्रेशन (सिर्फ एक चित्रण) भर है। 60 के दशक में मगनलाल दहिया नाम के एक आर्टिस्ट ने इसे बनाया था।