उद्धव ठाकरे के लिए संकट मोचन बने शरद पवार और गडकरी, 40 घंटे में ऐसे बची कुर्सी
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एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, शरद पवार के करीबी के मुताबिक, पवार को अपने 50 साल के राजनीतिक अनुभव से इसका अंदाजा था कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उन्हें विधानसभा परिषद के लिए नामित नहीं करेंगे। इसके पीछे कुछ वैधानिक वजह भी हैं। उन्हें यह भी पता था कि इसके लिए राज्यपाल को बाध्य नहीं किया जा सकता। पवार ने ही महाविकास अघाड़ी के मंत्रिमंडल को विधानपरिषद में नामित करने का प्रस्ताव भेजा। साथ ही राज्यभवन भेजकर गुहार ही लगाई। इसके अलावा वे उद्धव ठाकरे के साथ मिलकर नितिन गडकरी के संपर्क में भी थे।
26 अप्रैल- उद्धव ने नितिन गडकरी की तारीफ की
उद्धव ठाकरे ने सोशल मीडिया पर लाइव कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए नितिन गडकरी की सार्वजनिक तौर पर तारीफ की। उन्हें धन्यवाद कहा। इसके अलावा उन्होंने हिंदी में यह भी कहा कि महाराष्ट्र में कुछ नेता मामले को बिगाड़ना चाहते हैं। बाद में इस मामले में शरद पवार और गडकरी की बात बनी।
27 अप्रैल: : शरद पवार-उद्धव ठाकरे की बैठक
27 अप्रैल को उद्धव ठाकरे और शरद पवार की बैठक हुई। इसमें आदित्य ठाकरे और अजीत पवार भी साथ थे। इस बैठक में आगे की रणनीति तैयार हुई। ठाकरे के करीबियों के मुताबिक, नितिन गडकरी ने यह जानकारी दी कि राज्यपाल की ओर से उद्धव ठाकरे को नामित करने संभव नहीं है। ऐसे में मुख्यमंत्री पद को बचाने के लिए सिर्फ विधान परिषद की सीटों पर चुनाव कराना ही आखिरी रास्ता है। इसके काम के लिए प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह के हस्तक्षेप की जरूरत है।
28 अप्रैल- उद्धव ने लगाई पीएम से गुहार
उधर, उद्धव ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर मदद मांगी। पीएम ने उन्हें मदद का भरोसा दिलाया।
30 अप्रैल: ऐसे खुला रास्ता
दिल्ली से सहमति के बाद 30 अप्रैल को उद्धव ठाकरे भरोसेमंद मिलिंद नार्वेकर राजभवन पहुंचे। यहां उन्होंने राज्यपाल से मुलाकात की। राज्यपाल ने भी दिल्ली में संपर्क किया। इसके बाद मिलिंद और शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे चुनाव कराने के लिखित प्रस्ताव के साथ पहुंचे। राज्यपाल ने चुनाव आयोग से चुनाव कराने की अपील की।
1 मई: चुनाव तारीखों का ऐलान
1 मई को चुनाव आयोग की इमर्जेंसी बैठक बुलाई गई। इस वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा विदेश में हैं। वे भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मीटिंग में शामिल हुए और महाराष्ट्र विधान परिषद की 9 खाली पड़ी सीटों के चुनाव कराने का फैसला लिया गया।
इस तरह से यह महीनों से फंसा पेंच सिर्फ 40 मिनट में निपट गया। उद्धव ठाकरे की कुर्सी इस तरह से बच गई।