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एक फोन कॉल के बाद दिल्ली के बजाय पटना को निकले दीनदयाल और फिर मिली लाश, आज भी मिस्ट्री है यह मर्डर
भारतीय जनसंघ(वर्तमान में भाजपा) के अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(RSS) की विचारधारा के राष्ट्रवादी विचारक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 11 फरवरी को पुण्यतिथि है। इसी दिन 1968 को मुगलसराय के आसपास रेल में उनकी हत्या कर दी गई थी। उनकी लाश तड़के पौने चार बजे मिली थी। आज तक इस हत्याकांड का खुलासा नहीं हो सका है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा के नगला चंद्रभान में हुआ था। वे हिंदी और अंग्रेजी के अच्छे जानकार और लेखक थे। इनके पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे। इस वजह से पिता अकसर बाहर ही रहते थे। जब दीनदयाल के भाई शिवदयाल का जन्म हुआ, तब दोनों बच्चों को लेकर मां रामप्यारी अपने माता-पिता के घर जयपुर आ गईं। दीनदयाल उपाध्याय के नाना चुन्नीलाल शुक्ल भी रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। आइए जानते हैं पंडितजी की कहानी..
/ Updated: Feb 10 2021, 11:59 PM IST
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और दिल्ली नहीं पहुंच सके..
11 फरवरी को दिल्ली में 35 सदस्यों वाले संसदीय दल की बैठक होनी थी। दीनदयाल उपाध्याय 10 फरवरी को लखनऊ में थे। वे अपनी मुंहबोली बहन लता खन्ना से मिलने आए थे। लेकिन अचानक दीनदयाल को दिल्ली के बजाय पटना के लिए निकलना पड़ा। हरीश शर्मा ने 'दीनदयाल उपाध्याय' पर इसी शीर्षक से एक किताब लिखी थी। इसमें इस बात का विस्तार से जिक्र किया गया है। बिहार जनसंघ के संगठन मंत्री अश्विनी कुमार ने फोन करके दीनदयाल जी से बिहार प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने का आग्रह किया था। लिहाजा, दीनदयाल पटना के लिए रवाना हुए। उनका पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस के फर्स्ट क्लास में रिजर्वेशन था। लेकिन बीच रास्तें में उनकी हत्या कर दी गई। दीनदयाल की हत्या दो लोगों को पकड़ा गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ना पड़ा।
दीनदयाल की हत्या को लेकर जबर्दस्त राजनीति हुई थी। बलराज माधोक ने अपनी आत्मकथा 'जिंदगी का सफर' में खुलासा किया था कि जनता पार्टी से चुने गए सुब्रमण्यम स्वामी ने मोरारजी सरकार में गृहमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह से इस मामले की जांच कराने की मांग की थी। लेकिन तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जांच रुकवा दी। माधोक ने इसे राजनीति हत्या बताते हुए नानाजी देशमुख पर इल्जाम लगाया था। माना गया कि दीनदयाल के पास कुछ गोपनीय दस्तावेज थे, जिन्हें हासिल करने उन्हें मार दिया गया।
(बीच में अटलबिहार वाजपेयी के साथ दायें माधोक)
दीनदयाल जब 3 साल के थे, तब इनके पिता का निधन हो गया था। पति की बीमारी के बाद रामप्यारी को भी बीमारी ने घेर लिया। टीबी(क्षय रोग) के चलते 8 अगस्त, 1924 को उनका भी निधन हो गया। तब दीनदयाल की उम्र सिर्फ 7 साल की थी। इसके 2 साल बाद दीनदयाल के नाना चुन्नीलाल भी नहीं रहे। 1931 में इनकी मामी का भी निधन हो गया, जिन्होंने दीनदयाल को पाला था। 1934 में दीनदयाल के भाई शिवदयाल भी गुजर गए। 1935 में इनकी नानी भी चल बसी। पूरे घर में मौत का तांडव देखने के बावजूद दीनदयाल ने खुद को कैसे संभाला होगा, यह वे ही जानते थे।
(अटलजी के साथ दीनदयाल)
दीनदयाल ने विकट हालात में भी हिम्मत नहीं हारी। राजस्थान के सीकर से उन्होंने 10वीं पास की। उन्हें बोर्ड में प्रथम स्थान मिला था। जब दीनदयाल आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज से अंग्रेजी में एमए कर रहे थे, तब उत्तरार्द्ध में उनकी बहन रामादेवी बीमार पड़ गईं और उनकी मौत हो गई। लिहाजा दीनदयाल एमए पूरा नहीं सके।
(एक सभा के दौरान दीनदयाल)
1937 में जब दीनदयाल कानपुर से बीए कर रहे थे, तब वे अपने दोस्त बालूजी महाशब्दे के जरिये आरएसएस के संपर्क में आए। वे संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से मिलने लगे। दीनदयाल ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दो साल तक संघ की ट्रेनिंग ली। फिर आजीवन प्रचारक बन गए।
(दीनदयाल को नमन करते मोदी)
21 अक्टूबर, 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। इसका पहला अधिवेशन 1952 में कानपुर में हुआ। उपाध्याय को भारतीय जनसंघ में महामंत्री बनाया गया। इस अधिवेशन में जो 15 प्रस्ताव रखे गए थे, उनमें से 7 दीनदयाल ने रखे थे। 1967 में कालीकट(अब कोझीकोड-केरल) अधिवेशन में दीनदयालजी जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। तब उनकी उम्र सिर्फ 43 साल थी।
(जनसंघ के अध्यक्ष बनने के बाद दीनदयाल)