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इतिहास में 8 फरवरी: जब जामा मस्जिद से किया गया भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति का ऐलान
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जाकिर हुसैन जब 29 साल के थे, तब इन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया विवि का वाइस चांसलर बना दिया गया था। जब राष्ट्रपति पद के लिए इनका नाम चला, तो विपक्षियों ने कहा कि ये मुस्लिम हैं, इसलिए जनता इन्हें स्वीकार नहीं करेगी। लेकिन जयप्रकाश नारायण ने नाराजगी जताई। कहा कि अगर जाकिर साहब राष्ट्रपति नहीं बने, तो देश की कौमी एकता के लिए ठीक नहीं होगा। देश दो टुकड़ों में बंट जाएगा। आखिरकार जाकिर की जीत हुई।
(इंदिरा गांधी के साथ जाकिर हुसैन)
जब कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया, तब कम्युनिस्ट पार्टी और जनसंघ के अलावा बाकी दूसरे विपक्षी दल उनके खिलाफ थे। अंदरुनी तौर पर कांग्रेसी भी इनके खिलाफ थे। लेकिन सबको डर था कि अगर जाकिर हुसैन हार गए, तो इंदिरा गांधी की सरकार गिर जाएगी। लिहाजा मजबूरी में कोई क्रॉस वोटिंग नहीं कर सका।
6 मई, 1967 की शाम ऑल इंडिया रेडियो के जरिये जाकिर हुसैन की जीत के बारे में सूचना दी गई। उन्हें 838170 में से 471244 वोट मिले थे। जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी के सुब्बाराम को 363971 वोट मिले थे। जाकिर हुसैन को बधाई देने सबसे पहले इंदिरा गांधी पहुंची थीं।
आपको बात दें कि जाकिर हुसैन की जीत का जामा मस्जिद से भी ऐलान किया गया था। जब जाकिर हुसैन 10 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था। 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। जाकिर हुसैन आखिरी समय में काफी बीमार रहे। शुगर चरम पर थी। ग्लूकोमा से आंखों की रोशनी कम पड़ती जा रही थी। दिल के दौरे ने उनकी जान ले ली।
(1962 में राधाकृष्णन के बाद जाकिर हुसैन को उप राष्ट्रपति बनाया गया, यह तस्वीर तभी की है)
जाकिर हुसैन के भाई मुहम्मद हुसैन बंटवारे के समय मोहम्मद अली जिन्ना के समर्थक थे। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए और वहां शिक्षा मंत्री बने। उन्हें कश्मीर मामलों का मंत्री भी बनाया गया था। यहां, कांग्रेस नेता खुर्शीद आलम जाकिर हुसैन के दामाद हैं। ये मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री रह चुके हैं।