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बगीचे में गुलाब की चोरी करने पर जब माली से पिटे शास्त्रीजी, एक चांटे ने बदल दी लाइफ
'जय जवान, जय किसान' जैसा कालजयी नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 11 जनवरी को पुण्यतिथि है। उनका 1966 में उज्बेकिस्तान के ताशकंद में निधन हो गया था। शास्त्रीजी से जुड़े कई किस्से प्रसिद्ध हैं। एक किस्सा उनके बचपन से जुड़ा है। शास्त्रीजी जब 5-6 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी मां को अपने मायके आना पड़ा। यहीं, एक गांव में के स्कूल में उनका एडमिशन करा दिया गया। स्कूल के रास्ते में एक बगीचा पड़ता था। बच्चे तो आखिरी शरारती होते ही हैं। शास्त्रीजी और उनके दोस्त अकसर बगीच में चुपके से घुसते और फल तोड़कर खाते। एक बार की बात है कि सब बच्चे बगीचे में मस्ती कर रहे थे, तभी माली वहां आ पहुंचा। यह देखकर बाकी बच्चे भाग निकले, लेकिन शास्त्रीजी को माली ने पकड़ लिया। माली ने देखा कि शास्त्रीजी के हाथ में बगीचे से तोड़ा गया एक गुलाब का फूल था। माली ने गुस्से में शास्त्रीजी को एक चांटा दे मारा। शास्त्रीजी रोने लगे और बोले-तुमको पता नहीं कि मेरा बाप मर गया है, फिर भी हमको मार रहे हो, तुमको दया नहीं आती? माली ने यह सुनकर उन्हें अच्छे चाल-चलन और ईमानदारी का पाठ पढ़ाया। कहते हैं कि इस घटना के बाद शास्त्रीजी पूरी तरह बदल गए। आगे पढ़ें शास्त्रीजी से जुड़ीं कुछ बातें...
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पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को शास्त्री प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि वे 18 महीने ही प्रधानमंत्री रह पाए। उनके ही कार्यकाल में भारत ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को हराया था। शास्त्रीजी युद्ध समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर करने ताशकंद गए थे। यहां पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के साथ हस्ताक्षर होने थे। इसी दौरान रहस्यमयी तरीके से उनकी मौत हो गई।
लालबहादुर शास्त्रीजी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय में हुआ था। शास्त्रीजी ने काशी विद्यापीठ से ग्रेजुएशन किया था। शास्त्रीजी के पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। बाद में वे राजस्व विभाग में क्लर्क हो गए। शास्त्रीजी की मां का नाम रामदुलारी था। शास्त्रीजी अपने परिवार में सबसे छोटे थे, इसलिए उन्हें नन्हें कहकर बुलाया जाता था।
(जवाहरलाल नेहरू के साथ एक मीटिंग में शास्त्रीजी)
काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने अपने नाम से श्रीवास्तव हटा दिया था। इनकी शादी 1928 को मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की बेटी ललिता से हुई।
(विमान यात्रा के दौरान पत्नी ललिता के साथ शास्त्रीजी)
शास्त्रीजी जब 16 साल के थे, तब पढ़ाई छोड़ कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। द्वितीय विश्व युद्ध में इंग्लैंड को फंसा देखकर उन्होंने ही आजाद हिंद फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया था।
(आजादी के आंदोलन के दौरान चरखा चलाते शास्त्रीजी)
यह बात आजादी के आंदोलन की है। शास्त्रीजी जेल में थे। उनकी पत्नी ललिता उनसे मिलने गईं, तो छुपाकर दो आम ले गईं। यह देखकर शास्त्रीजी नाराज हुए और पत्नी के खिलाफ धरने पर बैठ गए। उनके हिसाब से यह नैतिकता के खिलाफ था।
(नेहरू से हाथ मिलाते शास्त्रीजी)
शास्त्रीजी की मौत को लेकर अकसर कयास लगते रहे हैं। यह माना जाता है कि उनकी मौत हार्ट अटैक से नहीं, जहर देने से हुई थी। 1978 में प्रकाशित एक किताब 'ललिता के आंसू' में ललिता ने अपने पति की मृत्यु की कहानी मार्मिक तरीके से पेश की थी।
(1965 की जंग के दौरान आर्मी के साथ शास्त्रीजी)
शास्त्रीजी के समाधिस्थल को विजय घाट कहते हैं। उन्हें मरणोपरांत 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
(एक मीटिंग में बोलते शास्त्रीजी)
निधन के कुछ समय पहले तक शास्त्रीजी कर्ज में दबे हुए थे। यह पैसा उन्होंने गाड़ी खरीदने के लिए बैंक से लिया था। यह ताज्जुब की बात है कि शास्त्रीजी ने कभी भी अपना बीमा नहीं कराया था।
(शास्त्रीजी की कार)
आपको बता दें कि आज आंदोलनकारियों या उपद्रवियों पर जो वाटर कैनन का इस्तेमाल होता है, उसकी शुरुआत लाल बहादुर शास्त्रीजी ने ही कराई थी।
(एक सभा में बोलते शास्त्रीजी)
शास्त्रीजी ने अपनी शादी में एक खादी का कपड़ा और चरखा लिया था। जब वे परिवहन मंत्री बने, तो पहली बार देश में महिला ड्राइवरों और कंडक्टरों की नियुक्ति की गई थी। इसका विरोध भी हुआ था।
(पत्नी ललिता के साथ शास्त्रीजी)
लाल बहादुर शास्त्रीजी को महीने में जो भी वेतन मिलता था, उसमें से 250 रुपए हर महीने जनसेवकों को मदद के तौर पर दे देते थे।
(बच्चों के बीच शास्त्रीजी)