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- अगर ये जिंदगी है, तो 'मरना' क्या है..न खाने को रोटी और न रहने को ठिकाना, घर से निकलो, तो पुलिस मारती है डंडे
अगर ये जिंदगी है, तो 'मरना' क्या है..न खाने को रोटी और न रहने को ठिकाना, घर से निकलो, तो पुलिस मारती है डंडे
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गुजरात के अहमदाबाद के अलावा राजकोट आदि जगहों पर भी प्रवासी मजदूरों का गुस्सा फूटने लगा है। मजदूरों और पुलिस के बीच कई जगहों पर झड़प की खबरें मिली हैं।
पुलिस पर पथराव करने वाले मजदूरों पर पुलिस ने लाठियां चलाईं। कई मजदूरों को गिरफ्तार किया गया।
गुजरात सरकार ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं। लेकिन इसमें सफर कर रहे मजदूरों और उनकी फैमिली को खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि अकेले सूरत से अब तक 172 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल चुकी हैं।
ह तस्वीर नई दिल्ली की है। एक रिक्शे पर सिमटी पूरी फैमिली। जिस रिक्शे से जिंदगी चलती थी, आज वो घर-गृहस्थी समेटने के काम आ रहा है।
यह तस्वीर अजमेर की है। एक कंधे पर घर-गृहस्थी का बोझ और दूसरे पर बच्चा। मजदूरों के लिए यह समय सबसे विकट है।
यह तस्वीर नई दिल्ली से अपने घरों को लौटते प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को दिखाती है। जरा-सी गाड़ी में चढ़ने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
यह तस्वीर अमृतसर की है। मां के कंधे पर यूं लटका देश का भविष्य।
यह तस्वीर गाजियाबाद की है। बच्चों को बोझ उठाकर चलना पड़ रहा है।
घर वापसी के बीच थककर अपनी डॉल के ऊपर सो गया बच्चा।
यह तस्वीर पटना की है। ठीक ऐसे मंजर बंटवारे के दौरान 1947 में देखने को मिले थे।