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ऑनलाइन गेम बर्बाद कर रहा बपचन, युवाओं को भी समझाना हो रहा मुश्किल, ऐसे छुड़ाएं लत
टेक डेस्क । ये दौर टेक्नालॉजी का है, युवा पीढ़ी के लिए मोबाइल ऑक्सीजन जितना जरूरी हो गया है। वहीं बच्चे भी तेजी से मोबाइल का उपयोग करना सीख चुके हैं। मोबाइल पर कॉल अटेंड करना, व्हाट्सऐप और मैंसेजर पर लोगों से चैंटिंग करने के अलावा एक रोग तेजी से पैठ जमा चुका है। ऑनलाइन गेम्स ने किशोरों की आउटडोर एक्टविटी को तहन-नहस कर दिया है। युवाओं के सिर पर भी मोबाइल गेम्स का भूत सवार है, क्या है ये ऑनलाइन गेम्स, कैसे लगती है इसकी लत, कैसे छुड़ाएं इससे पीछा....
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मोबाइल, कम्प्यूटर से शिक्षा का आइडिया कोरोना संकट के दौरान आया, ये बात सौ फीसदी सच है कि मोबाइल एक बेहतरीन उपकरण है जो अनों को जोड़े रखता है। ये मनोरंजन के साथ नॉलेज और क्रिएटविटी का भी जरिया बना है। मोबाइल ने अधिकतर कामों का आसान बना दिया है। लेकिन हर वस्तु के अच्छे और बुरे दोनों तरह के इफेक्ट होते हैं।
मोबाइल पर गेमिंग की लत ने इस अच्छे खासे इंस्ट्रूमेंट को बदनाम भी किया है। दरअसल लूडो तो घरेलू महिलाएं भी खेल लेती हैं, वहीं बच्चे लगातार ऑनलाइन गेम्स में फंसते जा रहे हैं। बच्चों को आभासी दुनिया ही रियल नजर आने लगी है। कई गेम्स में नेक्सट लेवल को पार करने के लिए बच्चों ने अपनी बलि तक चढ़ा दी है। ऐसी स्थिति में मां-पिता के बास क्या उपाय है कि वो बच्चों को ऑनलाइन गेम की दुनिया से दूर रखें।
मैदानी खेल और ऑनलाइन गेम्स में अंतर समझाना जरूरी
मौजूदा दौर में स्मार्टफोन में कई गेम एप्स इंस्टाल रहते हैं ये गेमिंग की लत का बड़ा जरिया बनते हैं। कॉम्पीटिशन के इस दौर में बच्चे हर बाधा पार करना चाहते हैं, नए लेवल को पार करना चाहते हैं, बड़ा स्कोर करना चाहते हैं, माता-पिता भी बच्चों को दिन-रात यही उपदेश देते हैं। बच्चा जो काम पढ़ाई में करना चाहता है, वहीं टारगेट वो गेम में भी लेकर चलता है। वब मैदानी खेल और ऑनलाइन खेल में अंतर ना कर पााने की वजह उसे लगातार आगे की ओर ढकेलती है, ऐसे में वो समय भी आथा है जब वो अपनी जान देने को भी तैयार हो जताा है।
माता-पिता का कितना दोष
फास्ट लाइफ में माता पिता को कम टाइम में ही सब कुछ करना होता है। बच्चों को खाना खलाने के लिए मां उसकी हर वो बात मान लेती है जो नाजायज है। बच्चे घर पर होते हैं तो ज्यादा सुरक्षित होते हैं, ये भावना भी अभिभावकों में घर कर गई है। इब बच्चे बाहर खलेने नहीं जाते तो लगातार उन पर जोर भी नहीं डाला जाता, बच्चे बाहर जाकर बिगड़ जाएंगे ये भी चिंता घरवालों को सताती रहती है। वहीं दोस्त ना होने की वजह से बच्चे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं, ऐसे में वो ऑनलाइन गेम की तरफ मुड़ जाते हैं।
बढ़ता जाता है लालच
कुछ ऑनलाइन गेम्स फ्री होते हैं, कुछ में पैसा देना होता है। बच्चे अगला स्टेप पार करने के लिए अभिभावकों की जमा पूंजी से चोरी करते हैं। कई गेम्स जीतने पर रिवॉर्ड भी मिलता है, इससे लालच बढ़ता जाता है। वहीं हार जाने पर डूबा पैसा वापस लाने की जिद सवार हो जाती है। बच्चे लगातार झूठ बोलने और लोन लेने जैसी आदतें के शिकार हो जाते हैं।
दिमाग पर पड़ता है बुरा असर
मोबाइल पर लगातार गेम खेलने के कारण मानसिक परेशानी के साथ आंखों, सिर में दर्द, रात में घबराहट, नींद ना आना, चिड़चिड़ापन, खीज, भूलने की बीमारी, निराशा, टेंशन और डिप्रेशन जैसी बीमारियां घेरने लगती हैं। लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठकर गेम्स खेलने के कारण मोटापा, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज़ समेत अन्य शारीरिक समस्याएं भी बच्चों और युवाओं को घेरने लगती हैं। ऑनलाइन गेम्स के जरिए शरीर बीमारियों का घर बनने लगता है।
छुड़ाई जा सकती है लत
बच्चों-युवाओं में गेम की आदत छुड़ाने के लिए उन्हें आउटिंग राना बेहद जरूरी है। बच्चों केसाथ दोस्ताना व्यवहार रखकर भी उन्हें मोल्ड किया जा सकता है। बच्चों के साथ बच्चे बनकर भी उनका दिल जाता जा सकता है। इसके लिए उनके साथ उनका मनचहा गेम खेलें। बच्चों के सामने मोबाइल से परहेज करें। मोबाइल पर गेम ब्लॉक करने से समस्या दूर नहीं होगी, बेहतर है कि बच्चों को उदाहरण देकर समझाएं।