भगवान कृष्ण के जीवन से सीखने लायक हैं ये 10 बातें, अपनाए तो कभी नहीं होंगे निराश
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्म शुरू से संघर्षों से भरा रहा है। उनका जन्म कारागृह में हुआ। पैदा होने के बााद यमुना पार गोकुल ले जाया गया। इसके बाद कोई न कोई जान का दुश्मन बना रहा। यहां तक कि देह त्यागने तक वे संघर्षों में जिए, मगर हर परिस्थिति को जीते और जीतते रहे।
बचपन से माखन और मिश्री के शौकीन रहे। अब भी उन्हें यही भोग लगता है। आहार अच्छा होना चाहिए। शुद्ध होना चाहिए और बल तथा बुद्धि देने वाला होना चाहिए। तभी खुद को, परिवार को और समाज को सही दिशा दी जा सकती है।
भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा उज्जैन में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में हुई। वैदिक ज्ञान के अलावा विभिन्न कलाएं सीखे और 64 दिन में 64 कला के ज्ञाता हुए। यानी शिक्षा सिर्फ किताबी न हो, रचनात्मक भी हो।
रिश्ते यदि निभाना सीखना हो, तो कृष्ण जी से सीखें। जीवनभर कभी उन लोगों का साथ नहीं छोड़ा, जिन्हें अपना मान लिया। अर्जुन, सुदामा या उद्धव सभी का साथ उन्होंने जीवनभर निभाया। रिश्तों की अहमियत उन्हें बखूबी पता थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने हमेशा नारी का सम्मान किया और बेहतर समाज के लिए वे इसे जरूरी मानते थे। राक्षस नरकासुर, जिसने अपने महल में 16 हजार 100 महिलाओं को कैद कर रखा था और सबसे बारी-बारी बलात्कार करता था। उसे मारकर कृष्ण जी ने महिलाओं को मुक्त कराया। इसके अलावा उन्हें अपनाया और पत्नी का दर्जा दिया।
बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस दुर्योधन की मौत भगवान कृष्ण की वजह से हुई, असल में दोनों समधी थे। कृष्ण जी के पुत्र सांब का विवाह दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से हुआ। दोनों के मतभेद इस पीढ़ी के रिश्ते पर कभी नहीं पड़ने दिया।
भगवान कृष्ण ने हमेशा चाहा कि कौरव शांति का मार्ग अपना लें, क्योंकि यही विकास का रास्ता है। वैसे तो कौरव और पांडव दोनों चाहते थे कि युद्ध से ही नतीजा निकले, मगर कृष्ण ने हमेशा चाहा कि मामला शांति से निपट जाए। मगर दोनों ने नहीं माना और भयानक युद्ध हुआ, जिसमें बहुत से लोगों को जान गंवानी पड़ी।
कृष्ण जी दूरदृष्टा थे। वे हमेशा भविष्य की ओर देखते रहते थे और इसकी तैयारी भी करते रहते थे। जुए में हारने के बाद पांडवों को जब वनवास हुआ, तब कृष्ण ने पांडवों को समझाया कि इस समय को सोच कर दुखी न हो और भविष्य की ओर देखो, सोचों और योजना निर्धारित करो।
पांडव राजसूय यज्ञ कर रहे थे। मगर दुष्ट लोग इसे पूरा नहीं होने देना चाहते थे। शिशुपाल भी इनमें से एक था, जो कृष्ण जी का छोटा भाई था। वह अपशब्द बोलता रहा। दुर्योधन जब तब कृष्ण जी का अपमान करता रहा था, मगर कृष्ण जी हमेशा शांत रहे।
कृष्ण जी ने अपनी बुद्धिमानी से दुनियाभर के राजाओं पर जीत हासिल की। मगर कभी उन्होंने खुद शासन नहीं किया। बुरे राजाओं को हराकर उसकी जगह सिंहासन पर अच्छे चरित्र के लोगों को बिठाते थे। वे लीडर की तरह रहते थे, मगर श्रेय लेने कभी आगे नहीं आते।