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क्या है GI टैग, बनारसी साड़ी, बीकानेरी भुजिया और ओडिशा के रसगुल्ले के बाद भारत सरकार ने इस चीज को दिया ये तमगा
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इससे पहले सरकार बीकानेरी भुजिया, ओडिशा के रसगुल्ले और बनारसी साड़ी को जीआई टैग यानी जियोग्रॉफिकल इंडिकेशन वाला टैग लेबल दे चुकी है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इसकी जानकारी हाल ही में माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर अपने अकाउंट हैंडल से दी थी।
अब बात करते हैं मखाना और मखाना उत्पादकों की। दरअसल, मखाना भारत में मिथिला से ही देश और दुनियाभर में जाता है। यह प्राकृतिक रूप से खास प्रक्रिया के तहत उगाया और तैयार किया जाता है।
हालांकि, कुछ और जगहों, जैसे बंगाल, झारखंड और और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ जगह मखाना की खेती होने लगी है, मगर दावा किया जाता है कि इनका स्वाद मिथिला के मखाने से बिल्कुल अलग है।
मखाना पानी में उगाया जाता है और इसमें करीब साढ़े ग्राम प्रोटीन तथा साढ़े 14 ग्राम फाइबर होता है। शरीर में यह कैल्शियम की कमी को भी पूरा करता है। शरीर के लिए पौष्टिक मखाने की अब खेती करना भी किसानों के लिए फायदेमंद साबित होने वाला है।
जीआई टैग के जरिए किसी भी प्रॉडक्ट के पंजीकरण और उसे संरक्षित करने को लेकर 1999 में एक एक्ट पारित हुआ था। इसके बाद ही उत्पादों पर जीआई टैग लेबल देने की शुरुआत हुई थी।
इससे अब इस उत्पाद की पहचान बरकार हो जाती है और इसकी मूल जगह और अवैध व्यापार नहीं किया जा सकेगा। यह टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में बनाई या फिर उगाई जाती है।
इस टैग को हासिल करने के लिए उत्पादकों को खुद पहल करनी होती है। उत्पादकों के एसोसिएशन सरकार के पास आवेदन करते हैं। उसकी खासियत बतानी होती है। सरकार की ओर से चयनित संस्था इनका परीक्षण करती है और सभी पैमानों पर खरा उतरने के बाद ये लेबल दे दिया जाता है।
यह लेबल डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की ओर से दिया जाता है। यह कार्यालय वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़े होते हैं।
इसमें बासमती चावल को जीआई टैग दिया गया है। यह पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका शामिल है।
इसके अलावा, भारत सरकार की ओर से बनारसी साड़ी, ओडिशा के रसगुल्ले और बीकानेर की आलू भुजिया नमकीन को जीआई टैग दिया गया है।