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STF की राडार पर 200 से अधिक पुलिसवाले, किसी ने ली हत्यारे विकास से मदद तो कोई आया उसके काम
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कानपुर के आईजी मोहित अग्रवाल पहले ही कह चुके हैं कि पूरा चौबेपुर थाना संदेह के घेरे में है । अब जांच पड़ताल में धीरे-धीरे पता चल रहा है कि पुलिस महकमे के भीतर छिपे विकास दुबे के कितने मददगार हैं।
विकास दुबे से संबंध के शक में पूरे चौबेपुर थाने समेत करीब 200 पुलिसकर्मी शक के दायरे में हैं जिन्होंने समय समय पर या तो विकास की मदद की या उससे फ़ायदा लिया है। चौबेपुर, बिल्हौर, ककवन, और शिवराजपुर थाने के 200 से अधिक पुलिसकर्मी रडार पर हैं। इनमें से सभी वो शामिल हैं जो कभी न कभी चौबेपुर थाने में भी तैनात रहे हैं।
इन सभी के मोबाइल CDR भी खंगाले जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक इनमें से तमाम पुलिसकर्मी विकास दुबे के मददगार रहे थे। उसके लिए गुर्गों की तरह काम करते थे। पुलिस एसटीएफ की टीमें एक-एक बिंदुओं पर काम कर रही है।
कानपुर के बिकरू कांड में निलंबित बीट दारोगा के. के. शर्मा ने पूछताछ में बताया है कि 2 जुलाई को शाम 4 बजे विकास ने फोन पर धमकी दी थी कि थानेदार को समझा लो। अगर बात बढ़ी तो बिकरू गांव से लाश उठेंगी। बीट दारोगा ने थानेदार को सूचना देकर और बिकरू गांव की बीट हटाकर दूसरी बीट देने को कहा था। जांच के मुताबिक दारोगा के. के. शर्मा ने बताया है कि वो विकास दुबे की धमकी से सहम गया था। इसीलिये बाद में मुठभेड़ टीम में भी शामिल नहीं हुआ।
विकास दुबे का रुतबा ऐसा था कि उसके आसपास के कई गांवों में विवाद की जांच के लिए पुलिस को विकास दूबे से मदद लेनी पड़ती थी। किसी मामले मे तहरीर मिलने के बाद बीट दरोगा और सिपाही विकास दुबे को जानकारी देते थे। अधिकतर मामले विकास दुबे अपने घर पर ही बुलाकर हल करा देता था।
कानपुर कांड की मजिस्ट्रेट जांच भी शुरू कर दी गई है। एडीएम ने दस्तावेज, एफआईआर कॉपी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि मांगे हैं। मामले में बयान दर्ज किए गए हैं। मौके के परीक्षण के साथ ही जेसीबी चालक और बिजली काटे जाने के बिंदुओं की जांच होगी। जांच मजिस्ट्रेट एडीएम भू/राजश्व प्रमोद शंकर शुक्ला को बनाया गया है।