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मणियों से बने मणिपर्वत पर झूले 'युगल सरकार' और अयोध्या का प्रसिद्ध सावन मेला हुआ शुरू, जानिए इसका रहस्य
अनुराग शुक्ला
अयोध्या: झूला पड़ा कदम की डारी झूले अवध बिहारी.. राम नगरी का प्रसिद्ध सावन झूला मेला रविवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आरंभ हो गया। मंदिरों से गाजे- बाजे के साथ बड़े-बड़े रथ पर भगवान के विग्रह की पालकी यात्रा निकाली गई। मणि पर्वत जाकर मंदिरों के चल विग्रह को पेड़ों की डालों पर पड़े झूले पर प्रतीक रूप में झुलाया गया। इसी के साथ अयोध्या के हजारों मंदिरों में एक साथ झूले पड़ गए। इसे अनादिकाल से परंपरागत रूप मनाया जाता है। भगवान श्रीराम माता जानकी द्वारा सावन मास में की गई आनंद विहार की लीलाओं को आधार मानकर यह उत्सव मंदिरों में होता है। इसी के साथ अयोध्या के मंदिरों में झूलनोत्सव शुरुवात हो गई। यह उत्सव रक्षाबंधन तक यानी सावन पूर्णिमा तक चलेगा।
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पखवारे भर होता है आयोजन मंदिरों में होती है सांस्कृतिक आयोजनों की धूम
लगभग पखवारे भर मंदिरों में झूलनोत्सव का आयोजन होता है । जिसमे सांस्कृतिक आयोजनों की धूम होती है मंदिरों में संत -महंत और श्रद्धालु भावविभोर हो नृत्य करते हैं। श्रावणी तीज पर्व के साथ आरंभ होने वाले इस ऐतिहासिक मेले में धार्मिक परंपरा के अनुसार कार्यक्रमों का आयोजन होता है जो देर रात तक चलता है। प्रमुख मंदिर कनक भवन ,श्री राम वल्लभा कुंज अशर्फी भवन,राम कचहरी चारों धाम, बड़ास्थान, सियाराम किला, जानकी घाट बड़ा स्थान ,लव-कुश मंदिर आदि की पालकी यात्राएं मनमोहक होती है।
राजा जनक की मणियों से बना है मणि पर्वत
प्रसिद्ध कथा वाचक प्रभंजनानंद शरण बताते हैं ग्रंथों में वर्णित है कि सावन की अमावस्या को सायंकाल राजा दशरथ महल के ऊपर श्रावणी घटा का आनंद ले रहे थे। अचानक अलौकिक प्रकाश दिखा, तो उन्होंने सुमंत को बुलाकर कुलदेवता के स्वागत व पूजन की तैयारी करने को कहा। सुमंत ने कहा कि वह कुलदेवता नहीं विदेह राज जनक द्वारा भेजी गई असंख्य मणियों का प्रकाश है। श्रावण शुक्ल तृतीया को युवराज वीरध्वज ने प्रातः काल महल में उपस्थित होकर निवेदन किया कि पिताजी ने मणियां भेजी हैं।
दशरथ ने सुमंत को उन्हें अशोक वन में रखवाने को कहा दोपहर तक उन मणियों को एकत्र रखने पर बड़ा स्तूप तैयार हो गया। जिसे लोग मणि पर्वत कहने लगे। उसी दिन किशोरी जी (सीता) का हिंडोला (झूला) अशोक उपवन की लोमस वन वाटिका के एक पेड़ पर पड़ा। तभी से प्रतिवर्ष बरसात भर माता जानकी वहीं पर रहने लगी, जिसका स्मारक सीता कुंड और जानकी मंदिर है।
राजा जनक को मणियों के बदले में जो भूमि मिली उसका नाम आज भी जनकौरा (जनौरा) है। आज भी श्रावण शुक्ल तृतीया को राम नगरी के प्रायः सभी मंदिरों के सीताराम जी (विराजमान भगवान) मणि पर्वत पर झूला झूलने आते हैं। सावन झूला मेला इसी तिथि से शुरू होकर सावन पूर्णिमा तक लगता है।
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