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Twin Tower demolition: 9 साल की लंबी लड़ाई का परिणाम 9 सेकेंड में...Photos में देखिए वाटरफॉल टेक्निक का कमाल

नई दिल्ली। देश का सबसे बड़ा डिमोलिशन रविवार को नोएडा में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया। भ्रष्टाचार के केंद्र में रहे नोएडा का ट्विन टॉवर भारी सुरक्षा बंदोबस्त और एहतियातों के बीच कुछ ही सेकेंड में मलबे में तब्दील हो गया। इस टॉवर को गिराने का आदेश 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था लेकिन बिल्डर्स ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट का रूख कर लिया था। हालांकि, बीते साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए तीन महीने के भीतर इसको गिराने का आदेश दिया था। लेकिन इस टॉवर को गिराने के लिए सुरक्षित व्यवस्था करने में एक साल का वक्त लग गया। रविवार को इस टॉवर का गिरना पूरे देश के लिए कौतुहल का विषय था। टीवी चैनल्स, सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर इसका लाइव प्रसारण हो रहा था। आईए फोटोज के माध्यम से देखते हैं कैसे 9 सेकेंड में यह गगनचुंबी इमारत मलबे और धुएं के गुबार में तब्दील हो गया...
 

Dheerendra Gopal | Published : Aug 28 2022, 04:27 PM IST

Twin Tower demolition: 9 साल की लंबी लड़ाई का परिणाम 9 सेकेंड में...Photos में देखिए वाटरफॉल टेक्निक का कमाल
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नोएडा के सेक्टर 93ए में यह दोनों टॉवर एपेक्स व सिएन थे। दरअसल, दोनों टॉवर जिस जमीन पर बने हैं वह बगीचे के लिए अलॉट थी। लेकिन मुनाफा कमाने के चक्कर में डेवलपर ने इस पर टॉवर बनाने का फैसला नियमों को दरकिनार करके लिया था। दोनों टॉवर्स पर बिल्डर ने 40 फ्लोर बनाने की योजना बनाई थी। हालांकि, कोर्ट-कचहरी के चक्कर में तमाम फ्लोर इन टॉवर्स के नहीं बन पाए। ट्विन टॉवर के एपेक्स टॉवर की 32 मंजिलें तैयार थीं जबकि सियेन की 29 मंजिलें। एपेक्स की ऊंचाई 109 मीटर तो सियेन 97 मीटर था। बिल्डर ने इन दोनों टॉवर्स के अधिकतर फ्लैट बेच भी दिए थे। 

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2012 में आसपास की सोसाइटी के लोगों ने अपनी सुरक्षा को देखते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। दरअसल, यहां बने उस विवादित टॉवर्स को उस जमीन पर बनाया जा रहा था जहां बगीचा प्रस्तावित था। लेकिन संशोधित योजना के तहत यहां दो टॉवर्स को खड़ा करने की अनुमति संबंधित अधिकारियों ने गैर कानूनी तरीके से दे दी थी। इसके खिलाफ 2012 में सुपरटेक एमराल्ड सोसाइटी के लोगों ने कानून का दरवाजा खटखटाया था। 9 साल तक चली कानूनी लड़ाई के बाद ट्विन टावरों को तोड़ा जा सका।
 

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2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन दोनों टॉवर्स को गिराने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद कई अधिकारियों पर कार्रवाई भी की गई थी। हालांकि, डेवलपर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। लंबी कानूनी लड़ाई चली। लेकिन यहां के आसपास के लोगों ने हार नहीं मानी। करीब नौ साल की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी तीन महीने के भीतर ट्विन टॉवर को गिराने का आदेश दिया। हालांकि, अगस्त 2021 में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अगस्त 2022 में पालन हो सका। यह इसलिए क्योंकि इतने ऊंचे टॉवर्स को गिराने के लिए आसपास की सुरक्षा का भी ख्याल रखा जाना था।
 

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ट्विन टॉवर में 900 से अधिक फ्लैट थे जिसमें अधिकतर को बिल्डर ने बुक कर दिया था। दो-तिहाई फ्लैट बुक थे या बेचे जा चुके थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ब्याज सहित सभी के पैसे लौटाने का भी आदेश डेवलपर या बिल्डर को दिए हैं।
 

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ट्विन टॉवर इसलिए भी गिराना आवश्यक था क्योंकि किसी भी मल्टीस्टोरी टॉवर के लिए करीब 16 मीटर की दूरी का होना आवश्यक है। यह इसलिए ताकि किसी प्राकृतिक आपदा यथा भूकंप या आगलगी के दौरान आसपास के टॉवर्स सुरक्षित रहे। लेकिन ट्विन टॉवर में इसका पालन नहीं किया गया था। किसी प्राकृतिक आपदा के दौरान इस टॉवर को अगर नुकसान पहुंचता तो आसपास बने तमाम टॉवर्स व बिल्डिंग ट्विन टॉवर के नीचे आकर नेस्तनाबूद हो जाते। 
 

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नोएडा में सुपरटेक ट्विन टॉवर रविवार को नौ सेकेंड में इतिहास बन गया। अब यहां सिर्फ मलबे का ढेर ही बचा है। एक भीषण विस्फोट कर इसे गिरा दिया गया है। विस्फोट से कुछ घंटे पहले इलाके को खाली करा लिया गया था। ट्रैफिक को डायवर्ट कर दिया गया था। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अस्पताल में तैयारी थी, एंबुलेंस तैयार रखे गए थे। 

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दोनों टावरों को गिराने के लिए 3,700 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था। गिराए जाने वाले टॉवर्स में करीब सात हजार से अधिक छेद कर एक्सप्लोसिव डाले गए थे। यह सुनिश्चित किया गया था कि दोनों टॉवर वाटरफॉल टेक्निक से ही गिरे। यानी मलबा अगल-बगल न गिरकर अपनी नींव के पास ही गिरे। 
 

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टॉवर गिराने के पहले आसपास रहने वाले सात हजार से अधिक लोगों को बाहर सुरक्षित जगहों पर निकाला गया। पूरे क्षेत्र को वैकेट कराया गया। यहां की आवश्यक सुविधाएं बाधित कर दी गई। यानी गैस व बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई थी। शाम को बिजली आपूर्ति बहाल की जाएगी। लोग जब अपने घरों में लौटेंगे तो मास्क पहनकर ही कुछ देर तक रहना होगा। टॉवर गिराने के पहले ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे पर सुबह ही ट्रैफिक रोक दिया गया था। आसपास के क्षेत्र को नो-फ्लाई जोन में भी बदल दिया गया था।

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ट्विन टॉवर को गिराने के लिए देश की सबसे बड़ी भवन गिराने वाली कंपनी के अलावा दुनिया की एक माहिर कंपनी जो दक्षिण अफ्रीका की है, से करार किया गया था। एडिफिस इंजीनियरिंग मुंबई को इन टॉवर्स को गिराने का जिम्मा सौंपा गया था। कई महीनों से यह लोग इस काम के लिए तैयारी कर रहे थे। धूल के गुबार से आसपास के क्षेत्रों को अधिक नुकसान से बचाने के लिए आसपास के टॉवर्स या बिल्डिंग को एक स्पेशल प्रकार के कपड़े से ढका गया था। टॉवर को गिराने के पहले किसी प्रकार के नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए 100 करोड़ रुपये का बीमा कराया गया था। बीमा या विध्वंस आदि के जो भी खर्चे हैं, उसे सुपरटेक को ही वहन करना है।

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अब जब ट्विन टॉवर गिर चुका है तो अगली चुनौती यहां के मलबे को हटाना होगा। हालांकि, नोएडा प्राधिकरण ने करीब 5-6 हेक्टेयर जमीन चिंहित किया है। यहां मलबे का निस्तारण किया जाएगा। नौ सेकेंड में जो ट्विन टॉवर मलबा में तब्दील हुआ, उस मलबे को हटाने में महीनों या साल लग सकते हैं। इसमें 55 हजार टन मलबा निकला है। हजारों टन स्टील व आयरन इसके मलबे में है। फिलहाल, नौ साल की लंबी लड़ाई में आम आदमी की जीत हुई है और भ्रष्टाचार का टॉवर नेस्तनाबूद हो चुका है। 

 
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