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पिता चाहते थे कि बेटी डॉक्टर-इंजीनियर बने, लेकिन उसने खड़ी कर दी 180 देशों में फैली अपनी खुद की कंपनी
दिल्ली. अगर कुछ बड़ा करना है, तो बड़े ख्वाब देखने होंगे। जो मन में है, उसे पूरा करने की कोशिशें जारी रखें। क्योंकि कोशिशें कभी बेकार नहीं जातीं। अब 33 साल की गीता सिंह से ही मिलिए। ये मूलत: यूपी के मेरठ की रहने वाली हैं। इनके पिता सरकारी नौकरी करते थे। उनकी तमन्ना थी कि बेटी डॉक्टर या इंजीनियर बने। लेकिन बेटी का ड्रीम कुछ और था। 12वीं तक मेरठ में पढ़ीं गीता जब कॉलेज जाती थीं, तो रास्ते में इंडियन ऑयल कंपनी की बिल्डिंग देखकर वे सोचती थीं कि एक दिन ऐसी ही शानदार बिल्डिंग में उनका भी दफ्तर होगा। हायर एजुकेशन करने वे दिल्ली आ गईं। दिल्ली यूनिवर्सिटी से गीता सिंह ने पॉलिटिकल साइंस (Political Science) से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट से मास कम्युनिकेशन (Mass Communication ) में डिप्लोमा। फिर शुरू हुआ अपने ख्वाबों को पंख लगाकर उड़ना। गीता सिंह द यलो क्वाइन कम्युनिकेशन(The Yellow Coin Communication ) नामक पब्लिक रिलेशन (पीआर) कंपनी चलाती हैं। आज इनकी कंपनी में 50 से ज्यादा लोग काम करते हैं। 200 से ज्यादा इनके क्लाइंट हैं। कंपनी का सालाना टर्न ओवर करीब 7 करोड़ रुपए है। कुछ समय पहले इनकी देश से बाहर एस्टोनिया(यूरोप) में भी ब्रांच खुल गई है। पढ़िए एक सफलता की कहानी...
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गीता की फैमिली मध्यमवर्गीय है। लाजिमी है कि ऐसे में माता-पिता अकसर अपने बच्चों को छोटी-मोटी सरकारी नौकरी में लगाना चाहते हैं। अधिक हुआ, तो डॉक्टर या इंजीनियर लेकिन गीता सिंह की राह तो अलग थी। गीता सिंह 4 भाई-बहन हैं। गीता सिंह सरकारी नौकरी में बंधकर रहना नहीं चाहती थीं। गीता सिंह बताती हैं कि कोई भी काम सरल नहीं होता। मास कम्युनिकेशन का डिप्लोमा लेने के बाद करीब 4 साल तक वे दूसरी कंपनियों में नौकरी करती रहीं। इसमें पीआर मैनेजमेंट से लेकर कंटेंट क्रिएशन तक सीखा। यहीं से उन्हें अपनी पीआर कंपनी की नींव रखने की सोच मिली।
गीता की पीआर कंपनी में 50 कर्मचारी हैं, तो 300 से ज्यादा फ्रीलांसर। गीता की कंपनी की शुरुआत 2011-12 में हुई। वे बताती हैं कि किसी ने फेसबुक पर पोस्ट की थी कि उसे कंटेंट राइटर की जरूरत है। यह काम उन्होंने ले लिया। तब वे खुद भी जॉब कर रही थीं। काम ज्यादा मिलने से वे अकेले करने में सक्षम नहीं थीं। इसलिए उन्होंने अपने दोस्तों की टीम बनाई। तब उन्होंने एक महीने में 70-80 हजार रुपए अकेले कमाए थे।
जब गीता सिंह ने अपनी जॉब छोड़ी, तो परिजनों को हैरानी हुई। सबने समझाया कि अगर प्राइवेट जॉब नहीं करना, तो सरकारी नौकरी की तैयारी करो। लेकिन गीता हंसकर टालती रहीं। गीता ने जब अपनी कंपनी खोली, तब सिर्फ एक स्टाफ था। पैसे बचाने वे खुद साफ-सफाई करती थीं। यानी सबकुछ वे ही देखती थीं।
गीता सिंह की कंपनी की पहले महीने की कमाई 60-70 हजार रुपए हुई थी। इससे उन्होंने आफिस के लिए कम्यूटर और बाकी सामान खरीद लिया। जैसे-जैसे क्लाइंट बढ़ते गए, तो आफिस दूसरी जगह शिफ्ट कर लिया। गीता सिंह की पीआर कंपनी का आज 180 देशों में नेटवर्क है। यूरोप में खुली पहली विदेशी ब्रांच की जिम्मेदारी उसकी छोटी बहन संभालती हैं।
गीता बताती हैं कि अगर लॉकडाउन नहीं लगा होता, तो मुंबई में भी उनका एक आफिस खुल चुका होता। लॉकडाउन में कामकाज पर काफी असर पड़ा, लेकिन गीता सिंह मानती हैं कि हिम्मत से सब संभाला जा सकता है।
गीता सिंह की कंपनी से पतंजलि, आईआईटी दिल्ली, पायोनियर इंडिया जैसे ब्रांच जुड़े हुए हैं।