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पिता चाहते थे कि बेटी डॉक्टर-इंजीनियर बने, लेकिन उसने खड़ी कर दी 180 देशों में फैली अपनी खुद की कंपनी
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गीता की फैमिली मध्यमवर्गीय है। लाजिमी है कि ऐसे में माता-पिता अकसर अपने बच्चों को छोटी-मोटी सरकारी नौकरी में लगाना चाहते हैं। अधिक हुआ, तो डॉक्टर या इंजीनियर लेकिन गीता सिंह की राह तो अलग थी। गीता सिंह 4 भाई-बहन हैं। गीता सिंह सरकारी नौकरी में बंधकर रहना नहीं चाहती थीं। गीता सिंह बताती हैं कि कोई भी काम सरल नहीं होता। मास कम्युनिकेशन का डिप्लोमा लेने के बाद करीब 4 साल तक वे दूसरी कंपनियों में नौकरी करती रहीं। इसमें पीआर मैनेजमेंट से लेकर कंटेंट क्रिएशन तक सीखा। यहीं से उन्हें अपनी पीआर कंपनी की नींव रखने की सोच मिली।
गीता की पीआर कंपनी में 50 कर्मचारी हैं, तो 300 से ज्यादा फ्रीलांसर। गीता की कंपनी की शुरुआत 2011-12 में हुई। वे बताती हैं कि किसी ने फेसबुक पर पोस्ट की थी कि उसे कंटेंट राइटर की जरूरत है। यह काम उन्होंने ले लिया। तब वे खुद भी जॉब कर रही थीं। काम ज्यादा मिलने से वे अकेले करने में सक्षम नहीं थीं। इसलिए उन्होंने अपने दोस्तों की टीम बनाई। तब उन्होंने एक महीने में 70-80 हजार रुपए अकेले कमाए थे।
जब गीता सिंह ने अपनी जॉब छोड़ी, तो परिजनों को हैरानी हुई। सबने समझाया कि अगर प्राइवेट जॉब नहीं करना, तो सरकारी नौकरी की तैयारी करो। लेकिन गीता हंसकर टालती रहीं। गीता ने जब अपनी कंपनी खोली, तब सिर्फ एक स्टाफ था। पैसे बचाने वे खुद साफ-सफाई करती थीं। यानी सबकुछ वे ही देखती थीं।
गीता सिंह की कंपनी की पहले महीने की कमाई 60-70 हजार रुपए हुई थी। इससे उन्होंने आफिस के लिए कम्यूटर और बाकी सामान खरीद लिया। जैसे-जैसे क्लाइंट बढ़ते गए, तो आफिस दूसरी जगह शिफ्ट कर लिया। गीता सिंह की पीआर कंपनी का आज 180 देशों में नेटवर्क है। यूरोप में खुली पहली विदेशी ब्रांच की जिम्मेदारी उसकी छोटी बहन संभालती हैं।
गीता बताती हैं कि अगर लॉकडाउन नहीं लगा होता, तो मुंबई में भी उनका एक आफिस खुल चुका होता। लॉकडाउन में कामकाज पर काफी असर पड़ा, लेकिन गीता सिंह मानती हैं कि हिम्मत से सब संभाला जा सकता है।
गीता सिंह की कंपनी से पतंजलि, आईआईटी दिल्ली, पायोनियर इंडिया जैसे ब्रांच जुड़े हुए हैं।