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1 जनवरी नहीं, कभी 1 मार्च को मनाया जाता था न्यू ईयर, इस राजा की वजह से बदल गई सेलिब्रेशन की तारीख
हटके डेस्क: दुनियाभर में नए साल का जश्न शुरू हो चुका है। लोग सेलिब्रेशन मोड ऑन कर चुके हैं। ज्यादातर जगहों में 1 जनवरी को नया साल मनाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में 1 जनवरी को ही नए साल की शुरुआत के तौर पर क्यों चुना गया है? इसके पीछे ख़ास वजह है। 1 जनवरी को न्यू ईयर मनाना ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। हमारे घर में जो कैलेंडर है, वो इसी ग्रेगोरियन पर आधारित होता है। भारत में हिंदू धर्म के मुताबिक, नए साल की शुरुआत चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को होता है। लेकिन आज से कई साल पहले न्यू ईयर 1 मार्च को मनाया जाता था। फिर एक राजा की वजह से ये तारीख 1 जनवरी को शिफ्ट हो गई। आइये आपको बताते हैं आखिर 1 मार्च से जनवरी में कैसे शिफ्ट हो गई सेलिब्रेशन की तारीख...
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पौराणिक कहानियों के मुताबिक, नए साल का सेलिब्रेशन आज से 4 हजार साल पहले बेबीलीन नाम की जगह पर हुआ था। 1 जनवरी को मनाया जाने वाला सेलिब्रेशन ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित होता है।
ये ग्रेगोरियन कैलेंडर रोमन कैलेंडर पर आधारित होता है। रोमन कैलेंडर में न्यू ईयर की शुरुआत 1 मार्च को होती है। लेकिन रोमन कैलेंडर में रोम के फेमस सम्राट जूलियस सीजर ने इसमें बदलाव करवा दिया।
जूलियस सीजर ने कैलेंडर में 46 ईसा वर्ष पूर्व परिवर्तन किया। इसमें उन्होंने और अपने भतीजे अगस्त के नाम से महीना जोड़ दिया। जब कैलेंडर में दो नए महीने जुड़े तब ये सेलिब्रेशन 1 जनवरी को शिफ्ट हो गया।
बात अगर हिंदू धर्म में न्यूईयर सेलिब्रेशन की करें, तो कहा जाता है कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा की करें तो कहा जाता है कि इस दिन ही भगवान ब्रम्हा ने दुनिया की रचना शुरू की थी। इसलिए इसे हिंदू धर्म में न्यू ईयर माना जाता है।
वैसे बात करें अगर इंडिया के न्यूईयर सेलिब्रेशन की तो भारत में कई जगहों पर अलग-अलग न्यू ईयर मनाया जाता है। इसमें ज्यादातर मार्च से अप्रैल के बीच पड़ती है।
भारत के पंजाब में नया साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है। वैशाखी अप्रैल में मनाया जाता है। इसे ही न्यू ईयर के तौर पर अप्रैल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
धर्म के हिसाब से भी अलग-अलग तारीख को न्यूईयर मनाया जाता है। सिख धर्म में इसे नानकशाही कैलेंडर के हिसाब से होली के दूसरे दिन मनाया जाता है। वहीं जैन धर्म में इसे दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है।