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18 पहाड़ियां, 18 सीढ़ियां और सिर पर पोटली, 'सबरीमाला' में 14 जनवरी को ऐसा क्या होगा?

केरल के पत्तनमत्तिका जिले में पेरियार टाइगर अभयारण्य में स्थित प्राचीन सबरीमाला(सबरीमला) सालना उत्सव 'मकरविलक्कू' के लिए खोल दिया गया है। बता दें कि केरल का प्रमुख धार्मिक उत्सव 'मकरविलक्कू' देश के अन्य हिस्सों में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। यानी 'मकरविलक्कू' 14 जनवरी को पड़ेगा। 19 जनवरी तक मंदिर में प्रवेश की अनुमति रहेगी। मंदिर में रोजाना 5000 श्रद्धालुओं को प्रवेश मिलेगा। सबरीमाला हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। आमतौर पर यहां 'मकरविलक्कू' पर लाखों लोग आते हैं। हर साल यहां 2 करोड़ लोग पहुंचते हैं। इस बार कोरोना के कारण संख्या कम रहेगी। सबरीमाला राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी दूर पंपा से 5 किमी दूर पवर्त श्रृंखला पर स्थित है। यह समुद्रतल से करीब 1000 मीटर ऊंचाई पर है। इस मंदिर में मासिक धर्म वाली महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश पर पाबंदी थी। हालांकि  28 सितंबर, 2018 को सुप्रीमकोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था। सबरीमाला में भगवान अयप्पा(अयप्पन) का मंदिर है। महाभागवत के अनुसार अयप्पा भगवान विष्णु और शिव के समागम से जन्मे थे। पढ़िए बाकी की कहानी...

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Asianet News Hindi
Published : Dec 31 2020, 10:04 AM IST
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सबरीमाला मंदिर घने जंगलों वाले 18 पर्वत के बीच में हैं। यहां पहुंचने के लिए पंपा से करीब 5 किमी तक पैदल जान पड़ता है। मंदिर तक पहुंचने 18 सीढ़िया हैं।

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सबरीमाला मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी के पहले का हुआ मानते हैं। हालांकि इसे और भी प्राचीन माना जाता है। कहते हैं कि परशुराम ने यहां अयप्पा भगवान की मूर्ति स्थापित की थी। कुछ लोग इसे रामायणकालीन शबरी के अवतार से भी जोड़ते हैं।

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अयप्पा भगवान को ब्रह्मचारी और तपस्वी माना जाता है। इसलिए मंदिर में मासिक धर्म के आयु वर्ग में आने वाली स्त्रियों का जाना प्रतिबंधित था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस परंपरा को विराम लगा दिया।

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मंदिर में आने से पहले 41 दिनों तक व्रत रखना पड़ता है। कहते हैं कि जो कोई तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, सिर पर नैवेद्य(प्रसाद) की पोटली रखकर मंदिर पहुंचता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। यहां माला पहनने वाला भक्त स्वामी कहलाता है।

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कहते हैं कि यहां होने वाली महाआरती की दिव्यज्योति के दर्शन मात्र से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। पुराने बुरे कर्मों से भी छुटकारा मिल जाता है।

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मंदिर में उत्सव के दौरान अयप्पा का घी से अभिषेक होता है। पूजा-अर्चना के बाद चावल-घी और गुड़ से बना प्रसाद बांटा जाता है। इसे अरावणा कहते हैं।

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