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यहां सालों से सड़ रहे हजारों शव, ना लाशों को दफनाया जाता है, ना जलाया; ऐसे होता है अंतिम संस्कार
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बाली में ट्रून्यानीस के लोग ओपन एयर में अंतिम संस्कार किया जाता है। यहां शवों को बांस की झोपड़ी में सालों तक के लिए रख दिया जाता है। यह परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है। यहां शवों को तब तक झोपड़ी में रखा जाता है, जब तक वे कंकाल में ना बदल जाएं। (तस्वीरें परेशान कर सकती हैं।)
बाली के बंगली में बटूर लेक के पास एक गांव में लोगों ने शवों को इस तरह से बांस की झोपड़ियों में रखा जाता है। कोरोना काल में भी इन लोगों को किसी तरह का कोई डर नहीं है।
जहां पूरी दुनिया में लोगों का अंतिम संस्कार पीपीई किट पहनकर तमाम सुरक्षात्मक कदम उठाते हुए अंतिम संस्कार किया जा रहा है, वहीं, बाली की इस जगह पर शवों को अभी भी ऐसे ही खुले में सड़ने दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं पूरे इंडोनेशिया में अंतिम संस्कार करने वालों को पीपीई किट पहने का आदेश दिया गया है। इसके अलावा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए तुरंत शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
कोरोना वायरस जिससे अब तक 4.6 लाख लोगों की मौत हो चुकी है, 80 लाख से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं। वहीं, बाली प्रशासन का कहना है कि ग्रामीण इलाकों तक कोरोना नहीं पहुंचा है।
गांव के प्रधान वयान अर्जन ने बताया कि अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अभी भी पहले जैसी है, लेकिन कोरोना को देखते हुए शामिल लोगों को मास्क पहनने की सलाह दी गई है।
कोरोना के डर से गांव में बाहर से आने वाले लोगों के आने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। लेकिन यहां अभी भी लोग खुले में अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
बाली के ट्रून्यानीस लोग हिंदू हैं। उनकी अंतिम संस्कार को लेकर अलग ही मान्यता है। वे मृतकों को दफनाते या दाह संस्कार नहीं करते। बल्कि इसके बजाय वे प्रकृति को अपना काम करने देते हैं। लोगों का मानना है कि लाशें खुले में सड़ती हैं, इसे मृतक के साथ संबंध रखने का तरीका माना जाता है।
अर्जुन ने बताया, "इससे हमें अपने प्रियजनों से जुड़ाव महसूस होता है।" उन्होंने कहा, "जब मेरी दादी की मृत्यु हुई, तो मुझे लगा कि वह करीब हैं।"
अंतिम संस्कार गांव से दूर किया जाता है। इसके लिए ये लोग बोट से उस स्थान तक जाते हैं। यहां एक हिंदू मंदिर भी है। जहां पूजा अर्चना के बाद अंतिम संस्कार होता है। यहां शवों को रखने के लिए 11 गुफाएं हैं, इनमें ही शवों को रख दिया जाता है।
अगर गुफा भर जाती है तो पुराने कंकाल को बाहर निकाल लिया जाता है। इससे नए शवों को रखा जा सके। जब शरीर पर कोई मांस नहीं रह जाता है, तब तक मृतकों की खोपड़ी को एक पत्थर की वेदी पर रखा जाता है जब तक कि वे भी प्रकृति में वापस गिर न जाएं।
इन गुफाओं के पास एक बड़ा पेड़ भी है। इससे आने वाली खूशबू से गांव तक शवों के सड़ने की बदबू नहीं आती।
बाली के लोग जो गांवों में रहते हैं, वे बाली के असली वंशज बताते हैं। यहां ट्रून्यान गांव में मंदिर 10वीं शताब्दी का है।