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कोरोना के बाद अब चीन से अमेरिका पहुंची ये खतरनाक बीमारी, मौत बनकर टूट सकता है इसका कहर
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दरअसल, 10 दिन पहले चीन के आंतरिक मंगोलिया में ब्यूबोनिक प्लेग के संक्रमण का केस मिला था। इसलिए इन खबरों को भी बल मिल रहा है कि कहीं ये चीन से ही तो अमेरिका में नहीं पहुंचा।
अमेरिका के कोलोराडो के मॉरिसन में 11 जुलाई को गिलहरी प्लेग से संक्रमित मिली है। प्रशासन ने लोगों से अलर्ट रहने को कहा है। साथ ही चूहों, गिलहरियों और नेवलों से लोगों को दूर रहने के लिए कहा गया है।
ब्यूबोनिक की मार दुनिया तीन बार झेल चुकी है। पहली बार इस बीमारी ने 5 करोड़ लोगों की जान ली थी। दूसरी बार यूरोप की एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आई थी। इस बीमारी की तीसरी लहर में 80 हजार लोगों की जान गई थी।
यह बीमारी जंगली चूहों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से फैलती है। चूहों में यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम पाया जाता है। यह बैक्टीरिया शरीर के लिंफ नोड्स, खून और फेफड़ों पर हमला करता है। इसमें उंगलियां काली पड़कर सड़ने लगती हैं। नाक में भी ऐसे ही लक्षण दिखने लगते हैं।
इसे गिल्टीवाला प्लेग भी कहते हैं। इसमें शरीर असहनीय दर्द , तेज बुखार, नाड़ी तेज चलने लगती है। इतना ही नहीं शरीर में गिल्टियां भी निकलने लगती हैं।
यह बीमारी सबसे पहले जंगली चूहों को होती है। चूहों के मरने के बाद यह बैक्टीरिया पिस्सुओं के जरिए मानव शरीर में फैल जाता है। इसके बाद मनुष्य में प्लेग फैलने लगता है।
दुनियाभर में ब्यूबोनिक प्लेग के 2010 से 2015 तक 3248 मामले सामने आए हैं। इससे करीब 584 लोगों की मौत हुई है। कॉन्गो, मौडगास्कर और पेरू में इसके अधिकतर मामले मिले हैं।
1970 से 80 तक यह बीमारी चीन, भारत , रूस, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका में भी फैली है।
ब्यूबोनिक प्लेग को 6वीं और 8वीं शताब्दी में प्लेग ऑफ जस्टिनियन नाम दिया गया ता। इस बीमारी से उस समय दुनियाभर में 2.5-5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
ब्यूबोनिक प्लेग का कहर दूसरी बार 1347 में आया था। उस वक्त इसे ब्लैक डेथ नाम दिया गया था। इससे यूरोप की लगभग एक तिहाई आबादी खत्म हो गई थी।
ब्यूबोनिक प्लेग तीसरी बार 1894 के बाद सामने आया। उस वक्त हॉन्गकॉन्ग के आस पास इसका खतरा बढ़ा था। इससे करीब 80 हजार लोगों की मौत हुई थी।
भारत में 1994 में ब्यूबोनिक के करीब 700 मामले सामने आए थे। इनमें से 52 लोगों की मौत हुई थी।