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यूक्रेन बॉर्डर पर बेरहमी:माइनस 5 डिग्री में छात्र घुट-घुटकर जी रहे, लड़कियों साथ क्रूरता,पढ़िए दर्दभरी दास्तां
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अभिषेक सोनी यूक्रेन की चेर्निविस्ती में सेकेंड ईयर मेडिकल स्टूडेंट है। उन्होंने बताया कि वे रोमानिया एयरपोर्ट के लिए जा रहे हैं। सोमवार को बॉर्डर पार कर गए लेकिन जिस जगह रुके वो रोमानिया बॉर्डर से पास में है। इंडियन एंबेसी की तरफ से 26 फरवरी को कहा गया था कि सभी छात्र बॉर्डर तक पहुंच जाएं। अभिषेक के साथ 51 लोग हैं। इनमें तीन राजस्थान के कोटा के रहने वाले।
अभिषेक ने बताया कि बॉर्डर से पहले कई किलोमीटर तक जाम लगा हुआ है। सभी लोग बस छोड़कर सामान लेकर पैदल निकल पड़े। पांच किलोमीटर पैदल चलनेके बाद वे जहां पहुंचे वहां पहले से ही काफी भीड़ थी। 26 से लेकर 28 फरवरी तक सभी छात्र खुले आसमान के नीचे माइनस 5 डिग्री तापमान में ठहरे। रात को तो बर्फबारी भी हुई। न खाने को खाना बचा था और ना पीने को पानी। वापस लौट भी नहीं सकते थे।
तीन दिन ऐसे गुजरे जिसका दर्द बताया भी नहीं जा सका। दो दिन किसी तरह आग जलाकर गुजारा करना पड़ा। आपस में कंबल शेयर कर छात्रों ने एक-एक पलट काटा। आस पास के जो लोग यूक्रेन के थे उन्होंने मदद भी की। लेकिन बॉर्डर पर तैनात यूक्रेन सैकिन और पुलिस वालों ने भारतीय छात्रों से बेरहमी की। उन्हें मारा-पीटा, लड़कियों तक को नहीं छोड़ा।
अभिषेक ने बताया कि छात्रों ने इंडियन एंबेसी की हेल्पलाइन पर कॉल किया लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं। एक-एक कर मोबाइल स्वीच ऑफ हो रहे थे। कुछ समय के लिए मोबाइल बंद होते ही परिवार वाले दूसरे बच्चों को फोन करने लगते। इतनी बेरहमी सह छात्र चीखते-चिल्लाते लेकिन सैनिकों को रहम नहीं आ रहा था। लोकल यूक्रेन के लोगों ने बहुत मदद की। रास्ते भर खाने-पीने का सामान दिया। जैसे-तैसे हम रोमानिया पहुंचे। जहां रोमानिया लोगों ने जगह-जगह स्टॉल लगा रखे थे। शेल्टर भी बनाए हुए थे। जिसे देख राहत की सांस मिली।
जब इंडियन एंबेसी से रिस्पॉन्स नहीं मिला तो हमने चेर्निविस्ती में हॉस्टल में रह रहे हमारे इंडियन सीनियर से मदद मांगी। फिर उन लोगों ने अपने खर्चे पर वहां आकर हमारी खूब मदद की। कंबल दिया, पानी, खाना सबका इंतजाम किया। जाम की वजह से कंधे पर सामान लेकर चलना पड़ रहा था, जो बहुत कठिन था। जैसे ही बॉर्डर क्रॉस किया तो हमें इंडियन एंबेसी नाम की संस्था दिखी। जिसके बाद हम सभी को शेल्टर होम ले जाया गया।
अभिषेक ने भारतीय छात्रों का दर्द बताते हुए कहा कि इन तीन दिनों स्थिति यह थी कि रजाई-गद्दों के साथ सड़कों पर ही स्टूडेंट्स सोते रहे। यूक्रेन के लोकल लोग और इंडियन सीनियर न होते तो न जाने क्या होता। हम बच भी पाते या नहीं। क्योंकि हमारे सामने कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। एक-एक मिनट भारी पड़ा रहा था।
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