सार

झारखंड राज्य द्वारा आयोजित स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के रूल्स में संसोधन के खिलाफ 5 घंटे चली हाई कोर्ट में बहस, सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित। कोर्ट ने राज्य सरकार को सुनाई खरी खोटी। कहां नीति अराजक होने पर हस्तक्षेप होगा।

रांची (झारखंड). झारखंड स्टॉफ सेलेक्शन कमीशन के नियमों में बदलाव को लेकर डाली गई याचिका पर बुधवार को पांच घंटे सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में बहस के दौरान सभी पक्षों की दलीलें सुनी गई। इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। बता दें कि सुनवाई के बाद हाईकोर्ट को जाे भी फैसला आएगा उससे राज्य की नियुक्तियों में शामिल होने वाले युवाओं पर सीधा असर पड़ेगा। राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार ने पक्ष रखा। प्रार्थियों की ओर से झारखंड हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज, अधिवक्ता कुमार हर्ष और कुमारी सुगंधा ने अदालत में बहस की। वहीं जेएसएससी की ओर से अधिवक्ता संजोय पिपरवाल ने बहस की। बुधवार को कोर्ट में पांच घंटे तक बहस हुई। 

कोर्ट ने कहा- भाषा के पेपर में हिंदी को हटाने के पीछे क्या वजह है
बता दें कि सरकार की नई नियुक्ति नियामावली के अनुसार, जेएसएससी द्वारा ली जाने वाली परिक्षाओं में हिंदी एवं अंग्रेजी के पेपर को हटा दिया गया है। इसके खिलाफ प्रार्थी रमेश हांसदा एवं अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसमें राज्य सरकार द्वारा JSSC नियमावली में किये गए संशोधन को गलत बताया गया है। साथ ही इसे निरस्त करने की मांग अदालत से की गई है। याचिका में कहा गया है कि झारखंड सरकार ने नियमावली में संशोधन किया है, जिसके तहत राज्य के संस्थान से ही दसवीं और 12वीं की परीक्षा पास करने वाले छात्र ही नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे। यह नियम सिर्फ सामान्य श्रेणी के छात्रों पर ही लागू होगी, जबकि आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों के मामले में यह आदेश लागू नहीं होगा। वहीं भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को भी हटा दिया गया है. जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया भाषा को शामिल किया गया है। इन शर्तों के कारण JSSC के द्वारा नियुक्तियों के लिए जारी विज्ञापन में कई अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।  इसलिए इस नियमावली को रद्द किया जाना चाहिए। 

जब नीति अराजक होगी, हस्तक्षेप करेंगे : कोर्ट
इससे पहले सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि हिंदी को हटाया नहीं गया है, बल्कि क्वालिफाइंग पेपर (पेपर वन) में रखा गया है। भाषा के पेपर (पेपर दो) से हिंदी या अंग्रेजी को हटाने के पीछे स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करना है। यहां की संस्कृति, रीति-रिवाज और क्षेत्रीय भाषा को संरक्षित करने के लिए ऐसा किया गया है। इस पर अदालत ने पूछा कि हिंदी और अंग्रेजी को पेपर वन में रखने का क्या औचित्य है, जबकि पेपर दो में शामिल भाषा का अंक कुल प्राप्तांक में जोड़ा जाना है। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषा में उर्दू को कैसे शामिल किया जा सकता है। सरकार ने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए ऐसा किया गया है। इस दौरान कहा गया कि राज्य सरकार को स्थानीय लोगों के कल्याण के लिए किसी प्रकार की नीति बनाने का अधिकार है। ऐसे में इस नीति से संबंधित फाइल को कोर्ट नहीं देख सकता है। इस पर अदालत ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि नीति कल्याण के लिए होनी चाहिए, लेकिन जब नीति अराजकता के लिए बनाई जाएगी तो कोर्ट उसमें हस्तक्षेप करेगा।

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