सार

 'जहां चाह वहां राह'...यह कहावत कहती है कि अगर कोई हकीकत में कुछ हासिल करना चाहता है, तो वह इसे प्राप्त करने के तरीके खोजता ही रहेगा और अंत में सफल होकर ही रहेगा। चाहे फिर बात किसी के करियर के बारे में हो या फिर जिंदगी के जंग लड़ने के बारे में..वह सभी मुश्किल घड़ी को पार कर आखिर में सफल हो ही जाएगा। जोश और जज्बे की ऐसी ही कहानी है राजधानी भोपाल से करीब 120 किलोमीटर दूर रहने वाले एक ऐसे शख्स की है, जिसने कैंसर के साथ-साथ कोरोना जैसी खतरनाक बीमारी दर्द झेला और उन्हें मात दी। क्योंकि उसमें जीने की चाह और संक्रमण से लड़ने के मजबूत इरादे जो थे।

भोपाल (मध्य प्रदेश). देश ने भर अभी-अभी कोरोना जैसी खतरनाक महामारी के प्रकोप को देखा, अब हालात कुछ हद तक काबू में होने लगे हैं। 'कौन कहता है के आसमान में सुराग नहीं होता, जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों'...कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां कोरोना महामारी की दूसरी लहर में एक 84 साल के मरीज पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। जो 5 साल से कैंसर पीड़ित लेकिन जब कोरोना लहर में तबीयत बिगड़ी तो ना तो कोरोना से डरे और ना ही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से। उन्होंने दोनों ही बीमारियो से जमकर लोहा लिया और अपने हौसले की दम पर जिंदगी को अपने नाम कर लिया। वह घबराए नहीं और दोनों महामारी से लड़कर धीरे-धीरे सामान्य जिंदगी की तरफ लौट रहे हैं।

Asianet Hindi के अरविंद रघुवंशी ने  कैंसर और कोरोना जैसी घातक बीमारियों पर जीत हासिल करने वाले एमपी के रायसेन जिले के  84 साल के गोपीलाल पटेल और उनके परिजनों से बात की। उनके पोते और पेशे से पत्रकार हितेश कुशवाहा ने बताया कि आखिर कैसे उनके दादा जी ने इस महामारी का दर्द झेला और इतनी उम्र होने के बाद भी घर में रहकर यह जंग जीती...

हर घर में कोरोना का मरीज..मौतों की खबरें सुनकर हर कोई डरा-सहमा सा था
कोरोना की जंग जीत चुके बुजुर्ग के पोतो ने बताया कि  15 अप्रैल के आसपास कोरोना रायसेन की बरेली के साथ-साथ गांवों में दस्तक दे चुका था। हमारे गांव जनकपुर और बरेली नगर परिषद से सटे गांवों में कोरोना मरीज मिलने लगे, आए दिन मौतों की खबरें सुनकर हर कोई डरा-सहमा सा था। हमारे गांव में भी करीब हर घर में लोग बुखार, बदन दर्द, सर्दी-जुकाम और खांसी से पीड़ित थे। 17 अप्रैल के आसपास परिवार में चचेरे भाइयों को बुखार सर्दी-जुकाम की शिकायत हुई। हालांकि, उन्होंने कोई जांच नहीं कराई और सरकारी निर्देशों के मुताबिक, मेडिकल से दवाएं लेकर खाईं व गर्म पानी पीने के साथ नियमित गरारे भी किए। दोनों नई उम्र के है, इसीलिए जल्दी ठीक हो गए।

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12 दिन अन्न का एक दाना भी नहीं खाया
दो दिन बाद यानी 19 अप्रैल को  दादाजी में महामारी के लक्षण दिखाई दिए। डॉक्टरों को दिखाया तो कहने लगे उनको कोरोना है। किसी तरह हमने उन्हें भी मेडिकल किट की दवाएं खिलाईं। तीन से चार दिन में बुखार तो ठीक हो गया, लेकिन कमजोरी बढ़ती गई। गले में इंफेक्शन और जकड़न के कारण दादाजी ने खाना छोड़ दिया। तबीयत इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि वह 12 दिन बिना अन्न ग्रहण किए रहे। लेकिन उनका जोश और जज्बा फिर भी देखने लायक था। वह परिजनों से यह कहते थे कि जब कैंसर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका तो ये कोरोना उनका क्या उखाड़ लेगा।

दवाओं को पीस-पीसकर पानी के साथ खिलाना शुरू
बजुर्ग के परिजन पूरी तरह से डरे हुए थे, वह उनका चेहरा देखते और मायूस हो जाते। क्योंकि बीमारी ने बुरी तरह से उन्हें जकड़ रखा था। खाना तो दूर यहां तक की दवाएं तक उनके गले से नहीं उतरती थीं। अब एक ही रास्ता था, हमने सारी दवाओं को पीस-पीसकर पानी के साथ खिलाना शुरू किया।  एलोपैथिक मेडिसिन के साथ भोपाल से होम्योपैथिक डॉक्टर अनिलेश तिवारी से फोन पर कंसल्ट किया। लॉकडाउन के बीच भोपाल से दवाएं मंगवाई और करीब 10 से 12 दिन तक होम्योपैथी मेडिसिन भी खिलाते रहे। थोड़ा आराम मिलता और फिर कमजोरी आ जाती।

डॉक्टरों ने अस्पताल में भर्ती करने से कर दिया था मना
परिजन किसी तरह बरेली के सरकारी अस्पताल में मरीज को भर्ती कराने के इरादे से पहुंचे तो डॉक्टरों ने उनकी बढ़ती उम्र के चलते अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया। क्योंकि उस दौरान अस्पताल में कोई बेड खाली नहीं था। कहने लगे कि वह पहले से ही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और फिर कोरोना हो गया। अब तो भगवान ही कुछ चमत्कार कर सकते हैं। इसलिए आप लोग जितना हो सके घर पर ही उनकी सेवा कीजिए। परिवार मायूस होकर घर आ गया और डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक, घर पर ही इलाज शुरू कर दिया। 

सभी अस्पताल फुल थे, तो घर जुटा लिए सारे मेडिकल किट
हमने डॉक्टरों की बताई मेडिसिन समय पर दादाजी को खिलाईं। ऑक्सीजन लेवल जांचने के लिए मेडिकल से ऑक्सीमीटर भी लेकर आए। नियमित तौर पर ऑक्सीजन जांच, गर्म पानी पिलाना भी जारी रखा। इसके साथ-साथ गर्म पानी में घोलकर ग्लूकोस भी दिया, ताकि शरीर को कुछ एनर्जी मिलती रहे। बीच में एक दो दिन ज्यादा तबीयत बिगड़ी तो आसपास के डॉक्टरों को जांच के लिए बुलाया, लेकिन उन्होंने इलाज से इनकार कर दिया और कहा कि अब दादाजी की उम्र हो गई है। ऐसे में कोरोना के बचना उनके लिए मुश्किल है। लेकिन हमने हार नहीं मानी और कोरोना प्रोटोकॉल के तहत सावधानियां बरतते हुए दादाजी का ख्याल रखा। एलोपैथिक और  होम्योपैथिक मेडिसिन के साथ कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां भी खिलाईं। आखिरकार सभी के प्रयास और ईश्वर की कृपा से दादाजी स्वस्थ्य हो गए। अब धीरे-धीरे उनकी कमजोरी भी दूर होती जा रही है। कैंसर सरवाइवर होने के कारण मरजी को रिकवरी में वक्त लगा।

84 साल की उम्र में बिल पावर देख हैरान था परिवार
उनका हौंसला देखकर पूरा परिवार हैरान था, वह यही कहते थे कि उनको कुछ नहीं होगा, जल्द ही ठी हो जाएंगे..उनकी बिल पावर भी गजब की है। जब कोरोना को मात दी और थोड़ ठीक हुए तो बिस्तर से उठकर खेत पर काम करने के लिए जाने लगे। परिवार रोकने लगा तो कहते, ये कोरोना कुछ नहीं है बस आप कमजोर हुए तो वह आप पर हमला कर देता है। इससे डरने की बजाए इससे संभलकर रहो, हिम्मत नहीं हारो आपका ये कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।

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5 साल पहले कैंसर ने घेरा, लेकिन ठीक हो गए
गोपीलाल पटेल बताते हैं कि मुझे 2016 में एक दिन अचानक बेहोशी आ गई। इलाज के लिए बेटे भोपाल ले गए, करीब 12 दिन हमीदिया अस्पताल में भर्ती रहा और कई तरह की जांच हुईं, लेकिन बीमारी पकड़ में नहीं आई। फिर कैंसर की जांच कराने पर प्रोस्टेट कैंसर का पता चला। हमने बिना डरे और समय गंवाए भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल में इलाज शुरू कराया। इसके बाद धीरे-धीरे बीमारी कंट्रोल हो गई। अभी दो से तीन महीने में जांच और कीमो के लिए अस्पताल जाना पड़ता है। 

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