सार

प्रज्ञा को यह सफर तय करने में करीब 7 घंटे का वक्त लगा। जबकि बालाघाट से नागपुर के बीच का जंगली इलाका नक्सली प्रभावित है। जहां पुरुषों को अकेले जाने में भी डर लगता है। लेकिन उसकी सेवा भावना और दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते उसके हौसले को कोई डिगा नहीं सका। 

बालाघाट (मध्य प्रदेश). कोरोना के खौफ में पूरा देश डरा-सहमा है, कोई भी बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। वहीं एक डॉक्टर बेटी की सलाम कर देने वाली कहानी सामने आई है। जो अपनी जान दांवपर लगाकर मरीजों की जिंदगी बचा रही है। वह 180 किलोमीटर स्कूटी अकेले घने जंगलों में चलाकर नक्सल इलाकों में इलाज करने पहुंची। आइए जानते ही इस डॉक्टर बेटी की कहानी...

फर्ज की खातिर किसी की नहीं सुनी
इस होनहार बेटी का नाम प्रज्ञा घरड़े है जो नागपुर के निजी अस्पताल के एक कोविड केयर सेंटर में ड्यूटी दे रही है। वह कुछ दिन पहले अपने घर बालाघाट छु्ट्टी पर आई थी। इसी दौरान अचानक कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने लगे तो वह अपने फर्ज की खातिर घर से नागपुर जाने आना चाहती थी। लेकिन  महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन की वजह से बसों और ट्रेनों में जगह ही नहीं मिली।

मरीजों के लिए अपनी जान लगाई दांप पर
परिवार वालों के मना करने के बाद डॉक्टर प्रज्ञा घरड़े ने नागपुर जाने की जिद नहीं छोड़ी। कहने लगी कि अगर ऐसे समय वर घर में बैठी रहेगी तो मरीजों का इलाज कौन करेगा। इसिलए उसने जज्बा और जुनून दिखाते हुए अपनी स्कूटी से नागपुर तक का सफर करना तय किया। वह भी अकेले, जिसे परिवार के लोग मना कर रहे थे। 

अकेले 7 घंटे में स्कूटी से तय किया सफर
प्रज्ञा को यह सफर तय करने में करीब 7 घंटे का वक्त लगा। जबकि बालाघाट से नागपुर के बीच का जंगली इलाका नक्सली प्रभावित है। जहां पुरुषों को अकेले जाने में भी डर लगता है। लेकिन उसकी सेवा भावना और दृढ़ इच्छाशक्ति के चलते उसके हौसले को कोई डिगा नहीं सका। डॉक्टर प्रज्ञा घरड़े का कहना है कि इस सफर के दौरान उसे थीड़ी असुविधा जरूर हुई। क्योंकि रास्ते में कोई खाने-पीने की दुकान नहीं खुली थी। साथ ही पूरा रास्ता सुनसान था, धूप भी बहुत तेज थी। लेकिन मरीजों को सही करने की जिद में नागपुर सही सलामत आ गई।