सार

स्थानीय लोगों का कहना है कि गर्मी के दिनों में खाना-पानी की तलाश में बंदर और लंगूर रहवासी इलाकों में आ जाते हैं। यहां वे छतों पर घूमते हैं और यहीं छांव देखकर रुक जाते हैं। ऐसे में लोटा रखा था। पानी पीते समय लोटे में मुंह फंस गया।

चंद्रपुर : महाराष्ट्र (Maharashtra) के चंद्रपुर (Chandrapur) प्यास बुझाने गया लंगूर का नन्ना बच्चा मुसीबत में फंस गया। वहां रखा एक लोटा उसके मुंह में फंस गया। इसके बाद वह तड़पने लगा। बच्चे को मुसीबत में देख मां परेशान हो उठी। उसने लोटो के निकालने की लाख कोशिश की लेकिन वह बेबस रही। थक-हारकर वह अपनी नन्नी जान को पेट पर चिपकाए सात घंटे तक इधर-उधर घूमती रही। लंगूर के समूह ने जब उसे ऐसे देखा तो उन्होंने भी लोटा निकालने का प्रयास किया लेकिन वे भी असफल रहे। भूख-प्यास से व्याकुल बेटे को तड़पता देख मां झटपटा रही थी। 

सात घंटे बाद रेस्क्यू
जब बेचारे बच्चे और बेबस मां पर लोगों की नजर पड़ी तो वे भई परेशान हो उठे। उपाय निकालने लगे कि किसी तरह बच्चे के मुंह से लोटा निकाल लिया जाए। उन्होंने तत्काल इसकी जानकारी वन विभाग की टीम को दी। विभाग के कर्मचारी थोड़ी ही देर में वहां पहुंच गए। इस दौरान वहां ढेर सारे लंगूर इकट्ठा हो गए, जिसे देख वन विभाग के कर्मचारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि किस तरह मां के हाथ से बच्चे को लिया जाए। लंगूरों के बीच यह इतना आसान काम भी नहीं था। फिर वन विभाग की टीम ने जो प्लान बनाया उससे बच्चे की जान बच गई। 

इस तरह बची जान
वन विभाग के अधिकारी सुरेश येलकेवाड़ ने पूरे रेस्क्यू की जानकारी देते हुए बताया कि लंगूर की मां से बच्चे को लेना काफी कठिन था। सबसे पहले टीम ने एक पिंजरा लाकर खाने-पीने का सामान रखा लेकिन लंगूर वहां से टस से मस नहीं हुए। फिर ताडोबा टाइगर रिजर्व और कोठरी वन विभाग से भी एक-एक टीम को वहां बुलाया गया। सात घंटे तक सूझबूझ लगाते हुए आखिरकार लंगूर का बच्चा वन विभाग के कर्मचारियों का हाथ आया। उन्होंने लोटे को काटकर उसके मुंह से बाहर निकाला। उसके सिर का इलाज किया और पानी पिलाया। इसके बाद उसका प्राथमिक इलाज कर मां के साथ छोड़ा गया। 

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