सार

मां आखिर मां होती है। यह कहानी एक ऐसी मां की है, जिसका बेटा घर से 1200 किमी दूर दादा-दादी के यहां फंस गया था। वो परेशान था। ऑनलाइन आवेदन में उसे घर जाने की परमिशन तो मिल गई, लेकिन प्राइवेट टैक्सी इतना पैसा मांग रही थीं कि इस गरीब परिवार के लिए दे पाना मुश्किल था। लिहाजा, मां ने हिम्मत जुटाई और वो अपनी ट्रायसाइकिल(स्कूटर) से बच्चे को घर ले आई। मां दिव्यांग है, लेकिन उसे अपने बच्चे की फिक्र थी।

पुणे, महाराष्ट्र. मां आखिर मां होती है। यह कहानी एक ऐसी मां की है, जिसका बेटा घर से 1200 किमी दूर दादा-दादी के यहां फंस गया था। वो परेशान था। ऑनलाइन आवेदन में उसे घर जाने की परमिशन तो मिल गई, लेकिन प्राइवेट टैक्सी इतना पैसा मांग रही थी कि इस गरीब परिवार के लिए दे पाना मुश्किल था। लिहाजा,मां ने हिम्मत जुटाई और वो अपनी ट्रायसाइकिल(स्कूटर) से बच्चे को घर ले आई। 37 मां दिव्यांग है, लेकिन उसे अपने बच्चे की फिक्र थी। उसका बेटा 17 मार्च को दादा-दादी के यहां गया था, लेकिन फिर वापस नहीं आ पा रहा था।

मां की हिम्मत देखकर भावुक हो गया बेटा
महिला सोनू खंडारे ने बताया कि उसने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन उसे इस तरह यात्रा करनी पड़ेगी। सोनू ने बताया कि उसका बेटा प्रतीक 17 मार्च को अंजगनागांव सुरजी तहसील में अपने दादा-दादी के यहां गया था। वो 25 अप्रैल को बेटे का वहां से लेकर आई। इस 1200 किमी की यात्रा पूरी करने में उसे करीब 18 घंटे लगे। सोनू ने बताया कि जब लॉकडाउन बढ़ाया गया, तो उन्हें चिंता होने लगी थी। इसके बाद उन्होंने ऑनलाइन परमिशन ली। लेकिन टैक्सी वाले 8000 रुपए मांग रहे थे, जो देना उनके लिए संभव नहीं था।

रास्ते में घबराहट हुई..
सोनू ने बताया कि 24 अप्रैल को उन्हें 48 घंटे की यात्रा का पास मिला था। उन्होंने स्कूटर में पानी और कुछ खाने का सामान रखा और बेटे को लेने निकल पड़ीं। वे रास्ते में सिर्फ एक जगह रुकीं। रात में गाड़ी चलाने में दिक्कत हुई..डर भी लगा। एक जगह पेट्रोल पंप पर सीसीटीवी देखकर उन्हें तसल्ली हुई, तो वहां आराम किया। तीन बच्चों की मां ने कहा कि वो अपनी ससुराल कुछ घंटे ही रुकी और फिर वापस निकल पड़ी।