सार

निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को फांसी पर लटकाए जाने की अटकलें तेज है। इन सब के बीच चारों को एक साथ फांसी पर लटकाए जाने की चर्चा जोरों पर हैं। हालांकि इससे पहले देश के यरवदा जेल में 4 लोगों को एक साथ फांसी दी जा चुकी है। 

नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने का पूरा देश इंतजार कर रहा है। इसके साथ ही दोषियों को जल्द फांसी पर लटकाए जाने की चर्चा जोरों पर हैं। चार दोषियों में से एक गुनहगार पवन की संदिग्ध गतिविधियों के चलते मंगलवार को उसे तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया है। पवन के अलावा उसके साथी तीनों दोषी मुकेश, अक्षय और विनय पहले से ही तिहाड़ में हीं रखे गए हैं। इन सब के बीच चारों को एक साथ फांसी दिए जाने की चर्चा जोरों पर है। ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या इन्हें एक साथ फांसी दी जाएगी, अगर ऐसा होता है तो यह पहली बार नहीं होगा कि भारत के इतिहास में एक साथ चार दोषियों को फांसी पर लटकाया गया है। 

यरवदा जेल में एक साथ 4 लोगों को दी गई फांसी 

यदि निर्भया के दरिंदों को एक साथ फांसी की पर लटकाया जाता है। तो यह दूसरा ऐसा मौका होगी कि एक साथ चार लोगों को फांसी दी गई है। लेकिन इससे पहले पुणे की यरवदा जेल में एक साथ चार लोगों को फांसी दी गई थी। 27 नवंबर 1983 को जोशी अभयंकर केस में दस लोगों का कत्ल करने वाले चार लोगों को एक साथ फांसी दी गई थी।

अक्षय ने दाखिल की याचिका 

फांसी पर चढ़ाए जाने के तेज होती हलचलों के बीच निर्भया गैंगरेप के दोषी अक्षय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है जिसे कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया है। अभी तय नहीं है कि इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कब सुनवाई करेगा। अक्षय को ट्रायल कोर्ट द्वारा इस दरिंदगी के लिए फांसी की सजा सुनवाई जा चुकी है। जिसके विरूद्ध दोषियों ने दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई थी। जिस पर दोनों कोर्टों ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था। 

तिहाड़ में एक साथ दो को दी गई है फांसी 

निर्भया केस के दरिंदों को तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले एक साथ सिर्फ दो लोगों को ही फांसी दी गई है। तिहाड़ की फांसी कोठी में पहली और आखिरी बार एक साथ दो लोगों को फांसी 37 साल पहले 31 जनवरी 1982 को दी गई थी। जिसके बाद किसी को एक साथ फांसी नहीं दी गई है। 1982 में दोषी रंगा-बिल्ला को सूली पर एक साथ चढ़ाया गया था। 

जेल नंबर तीन में है फांसी कोठी 

तिहाड़ जेल अंग्रेजी शासनकाल में 1945 में बनना शुरू हुआ था और 13 साल बाद 1958 में बनकर तैयार हो गया। ब्रिटिशराज में ही तिहाड़ के नक्शे में फांसी घर की भी रूपरेखा तैयार कर ली गई थी। उसी नक्शे के हिसाब से फांसी घर का निर्माण कराया गया है। जिसे अब फांसी कोठी कहते हैं। यह फांसी कोठी तिहाड़ के जेल नंबर तीन में कैदियों की बैरक से बहुत दूर बिल्कुल अलग-थलग सुनसान जगह पर है। 

डेथ सेल में रखे जाते हैं आरोपी 

तिहाड़ के जेल नंबर तीन में जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी है, उसी बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल बनाए गए हैं। डेथ सेल में सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सजा मिली होती है। डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है। डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु की स्पेशल पुलिस करती है। 

10 लोगों की हुई थी हत्या 

जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच पुणे में राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कान्होजी जगताप और मुनव्वर हारुन शाह ने जोशी-अभयंकर केस में दस लोगों की हत्याएं की थीं। ये सभी हत्यारे अभिनव कला महाविद्यालय, तिलक रोड में व्यवसायिक कला के छात्र थे, और सभी को 27 नवंबर 1983 को उनके आपराधिक कृत्य के लिए एक साथ यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। 

निर्भया के दरिंदों से नहीं लिया जा रहा काम

तिहाड़ जेल में बंद निर्भया कांड के दरिंदों से पिछले पांच दिनों से कोई काम नहीं लिया जा रहा है। जेल सूत्रों के मुताबिक 4 आरोपियों का लागातार मेडिकल टेस्ट कराया जा रहा है। जिसके बाद से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि चारों दोषियों को जल्द ही फांसी की सजा सकती है।