सार

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी - बंबई (IIT B),भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)और FOSSEE (फ्री ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर इन एजुकेशन) की साझेदारी में ऑनलाइन मैपाथॉन इवेंट आयोजित किया जा रहा है ।

मुंबई . अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी - बंबई (IIT B),भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)और FOSSEE (फ्री ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर इन एजुकेशन) की साझेदारी में ऑनलाइन मैपाथॉन इवेंट आयोजित किया जा रहा है । ये कार्यक्रम भारतीय उपग्रहों से प्राप्त चित्रों और देश में संसाधन मानचित्र विकसित करने के लिए भारतीय उपग्रह इमेजरी के उपयोग के प्रयोग को बढ़ावा देगा ।

इस कार्यक्रम का उद्घाटन 7 दिसंबर 2020 को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे, आईआईटी-बी के निदेशक प्रोफेसर शुभाशीष चौधरी और FOSSEE ke प्रमुख अन्वेषक प्रोफेसर कन्नन मौद्गल्या द्वारा किया गया । लोगों के बीच से आने वाले सुझाव के आधार पर मैपिंग की  पहल की गई है । इंडियन मैपाथॉन का उद्देश्य देश में रिसोर्स मैप बनाने के लिए भारतीय उपग्रह के चित्रों के प्रयोग, सैटेलाइट से प्राप्त डेटा बेस और ओपन सोर्स टूल्स को लोकप्रिय बनाना है। 

डेटा बेस की क्षमता के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाना है लक्ष्य 
भारतीय मैपाथॉन की पहल के माध्यम से एआईसीटीई और आईआईटी-बी का लक्ष्य अलग-अलग इस्तेमाल के लिए इसरो के डेटा बेस की क्षमता  के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाना है। इससे प्राकृतिक आपदा, बाढ़, अकाल, फसल न होना, मिट्टी का उर्वरता के आकलन के साथ फसलों के क्षेत्र का समय रहते पता लगाया जा सकता है।

सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों को स्थानीय तौर पर प्रोसेस करने में मिलेगी मदद 
आईआईटीबी के निदेशक प्रोफेसर सुभासिस चौधरी ने कहा, इसका समाधान खोजने के लिए, क्राउडसोर्सिंग और नागरिक विज्ञान गतिविधियां, भारतीय मैपाथॉन के माध्यम से सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों को स्थानीय तौर पर प्रोसेस करने में तेजी से मदद कर सकते है। मैपाथॉन आसानी से उपलब्ध इसरो की सैटेलाइट इमेज का ओपन सोर्स QGIS सॉफ्टवेयर की मदद से इस्तेमाल कर पूरे देश के लिए बुनियादी तौर पैर एक सामान रूप से जानकारी प्रदान करेगा।

इसरो के भारतीय डेटाबेस की लोकप्रियता बढ़ाने की जरूरत
एआईसीटीई के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा, इसरो की ओर से विकसित किए भारतीय डेटाबेस की लोकप्रियता बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे समय यह जरूरत और भी ज्यादा बढ़ गई है, जब भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि विदेशी सेटेलाइट इमेज की तुलना में भारतीयों की क्राउडसोर्सिंग से प्राप्त सेटेलाइट इमेज या रिसोर्स मैपिंग ज्यादा सटीक हो सकती है । इसका क्रेडिट भारतीयों को क्षेत्र की अच्छी जानकारी को दिया जाता है। यह उन भारतीय शोधकर्ताओं को भी हतोत्साहित करेगा, जो विदेशी डेटाबेस का प्रयोग करते हैं। भारतीय सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग करने से उनकी रिसर्च और अधिक प्रासंगिक बन जाएगी ।

निःशुल्क होगा सॉफ्टवेयर का उपयोग 
इस कार्यक्रम का समन्वय FOSSEE परियोजना द्वारा किया जा रहा है, जो कि शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है। FOSSEE प्रोजेक्ट ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक, प्रो. कन्नन मौदगल्य ने कहा, '' मैपथॉन के लिए मानचित्र निर्माण को QGIS जैसे एक ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके किया जाना है। ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का उपयोग सभी प्रतिभागियों के लिए एक स्तर का खेल क्षेत्र प्रदान करता है, क्योंकि सॉफ्टवेयर का उपयोग नि: शुल्क किया जा सकता है। QGIS एक खुला स्रोत सॉफ्टवेयर है जो व्यक्ति स्वयं सीख सकते है। उन्होंने कहा यह स्पोकन टुटोरिअल्स में अंग्रेजी के आलावा हिंदी, कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगु में भी उपलब्ध है , जो https: /spoken-tutorial.org पर पाया जा सकता है।

18 दिसंबर तक हो सकेगा रजिस्ट्रेशन 
इस इवेंट में दिलचस्पी रखने वाले लोग 7 दिसंबर से 18 दिसंबर तक https://iitb-isro-aicte-mapathon.fossee.in पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इसके लिए एंट्रीज 14 दिसंबर से 31 दिसंबर तक जमा की जाएगी। नतीजों की घोषणा 4 से 10 जनवरी 2021 तक होगी। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी भागीदारों को एआईसीटीई, आईआईटी-बी, FOSSEE और इसरो की ओर से प्रमाणपत्र भी प्रदान किये जायेंगे।