सार

उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों को बसों से भेजे जाने का विवाद काफी तूल पकड़ चुका है। इस विवाद में उत्तर प्रदेश की दूसरी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कहीं नजर नहीं आ रही है। 

नई दिल्ली। प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए बसों का मुद्दा कांग्रेस और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच एक बड़े विवाद में बदल गया है। इस बात को छोड़ दें कि 1000 बसों के मुद्दे को लेकर कौन सही है और कौन गलत, तो भी यह बात साफ हो गई है कि कांग्रेस प्रवासी मजदूरों के सवाल को खड़ा कर इसे एक राजनीतिक प्रचार अभियान में बदलने में कामयाब हो गई है। वहीं, राज्य के दूसरे विरोधी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी  इस पूरे विवाद से अलग हैं।

इसे कांग्रेस ने बनाया राजनीति का मुद्दा
कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से बड़े पैमाने पर मजदूरों के अपने घरों की तरफ निकल पड़ने से कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाने का बड़ा मौका मिला, जो 2019 के आम चुनाव के बाद बेजान हो गई थी। लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा और रोजगार नहीं रह जाने की वजह से वे किस परेशानी में फंस गए, इसके बारे में मीडिया रिपोर्ट्स में लगातार बताया गया। जो मजदूर बिना किसी साधन के अपने घर जाने के लिए निकल पड़े, उनमें से बहुतों को जान तक गंवानी पड़ी। इसे कांग्रेस ने एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना लिया।

प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ को लिखा पत्र
16 मई को कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर मजदूरों, किसानों और कोरोना महामारी से परेशान गरीब लोगों को राहत देने के लिए सुझाव दिए और इसमें सहयोग करने की बात भी कही। लॉकडाउन के पूरे दौर में बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तुलना में प्रियंका गांधी बहुत ज्यादा सक्रिय रहीं और उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को 4 पत्र लिखे। इन पत्रों में उन्होंने राहत कार्य में कांग्रेस के हिस्सा बंटाने की बात लिखी। लेकिन इसका क्लाइमैक्स तब आया, जब प्रियंका गांधी ने प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 1,000 बसों को कांग्रेस के खर्च पर भेजने की बात लिखी। 

राज्य सरकार ने स्वीकार किया प्रस्ताव
कोरोना महामारी के दौरान मजदूरों के लिए इस मदद के प्रस्ताव को राज्य सरकार ने स्वीकार करते हुए दूसरे दिन ही पत्र का जवाब दिया और 1000 बसों के ड्राइवरों का डिटेल सौंपने को कहा। प्रियंका गांधी के ऑफिस से सोमवार की रात जो मेल किया गया था, उसमें 1000 बसों की लिस्ट थी, लेकिन जब उनका डिटेल दिया गया तो राज्य सरकार ने पाया कि उनके रजिस्ट्रेशन नंबर ऑटो रिक्शा, बाइक, कार और ट्कों के थे, जिस आरोप को कांग्रेस ने नकार दिया। मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि जिन 1000 बसों की डिटेल प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने सौंपी है, उनमें कई कारों और टू-व्हीलर्स के रजिस्ट्रेशन नंबर वाले वाहन हैं। हालांकि, कांग्रेस ने राज्य सरकार के इस दावे को गलत बताते हुए बसों की जांच कराने की चुनौती सरकार को दी।

भाजपा के झंडे लगाओ, बसों को जाने दो
बसों के नाम पर कारों और दुपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन की सच्चाई सामने आने के बावजूद प्रियंका गांधी और कांग्रेस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। अब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि भले ही बसों पर भाजपा के झंडे लगा लो, पर इन्हें उत्तर प्रदेश की सड़कों पर मजदूरों को लेकर जाने दो। राजस्थान पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि कांग्रेस ने जिन बसों का इंतजाम राजस्थान से उत्तर प्रदेश मजदूरों को भेजने के लिए किया था, उन्हें वापस राजस्थान-उत्तर प्रदेश की सीमा पर भेज दिया गया। 

क्या कहा प्रियंका ने
प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि पहले तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस का ऑफर स्वीकार कर लिया और बसों व उनके ड्राइवरों की लिस्ट मांगी, लेकिन बाद में वे कई सवाल खड़े करने लगे। इस वजह से एक तरह का पॉलिटिकल ड्रामा शुरू हो गया और करीब 92,000 प्रवासी मजदूरों को हम उनके घरों तक नहीं पहुंचा सके। प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी उनके भाई और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के पहले दी थी। उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव 2022 में होना है। इसलिए कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी को फिर से राज्य में खड़ा करना चाहती है, जहां अब उसका कोई आधार नहीं रह गया है। 

सभी प्रवासी मजदूर भारतीय
इस बीच, कांग्रेस की पाखंड से भरी बस राजनीति पर हमला करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के लिए 300 ट्रेनें शुरू हुई हैं और कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के लिए 7 ट्रेनें। उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों की आबादी में तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन झारखंड और छत्तीसगढ़ को मिला कर देखा जाए तो प्रवासी मजदूरों की संख्या उत्तर प्रदेश से कम नहीं होगी। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। सभी प्रवासी मजदूर भारतीय हैं, यह याद रखना चाहिए।