सार

भारतीय वायुसेना में आज 5 राफेल विमान शामिल हो जाएंगे। ये विमान आज दोपहर तक अंबाला पुहंचेंगे। लेकिन इससे पहले एक बार फिर राफेल को लेकर राजनीति शुरू हो गई। कांग्रेस ने राफेल को लेकर एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है।

नई दिल्ली. भारतीय वायुसेना में आज 5 राफेल विमान शामिल हो जाएंगे। ये विमान आज दोपहर तक अंबाला पुहंचेंगे। लेकिन इससे पहले एक बार फिर राफेल को लेकर राजनीति शुरू हो गई। कांग्रेस ने राफेल को लेकर एक बार फिर सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राफेल की कीमत को लेकर सरकार से सवाल तमाम सवाल भी किए। इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ हमलावर रही है।

दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर कहा, एक राफेल की कीमत कांग्रेस सरकार में 743 करोड़ रुपए तय की गई थी। लेकिन 'चौकीदार' महोदय कई बार संसद में और संसद के बाहर भी मांग करने के बावजूद आज तक राफेल की कीमत बताने से बच रहे हैं। क्योंकि अगर वे कीमत बताएंगे तो चौकीदार की चोरी उजागर हो जाएगी। 

'आखिरकार भारत आ गया राफेल'
पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा, आखिर राफेल फाइटर प्लेन आ ही गया। कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने 2012 में 126 राफेल खरीदने का फैसला किया था। इनमें से 18 को छोड़कर बाकी का निर्माण भारत सरकार की कंपनी HAL में होना था। यह भारत में आत्मनिर्भर होने का प्रमाण था। एक राफेल की कीमत 743 करोड़ तय की गई थी। 

बिना कैबिनेट कमेटी की मंजूरी के हुआ करार
सरकार पर निशाना साधते हुए दिग्विजय सिंह ने लिखा, एनडीए सरकार आने के बाद मोदी ने बिना रक्षा, वित्त मंत्रालय और कैबिनेट की मंजूरी के फ्रांस से नया समझौता कर लिया। HAL का हक मारकर निजी कंपनी को देने का समझौता किया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा को अनदेखी कर 126 राफेल की जगह 36 राफेल खरीदने का निर्णय लिया गया। 

'क्या मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं किया'
उन्होंने आगे लिखा, राष्ट्रीय सुरक्षा का आंकलन कर 126 राफेल का समझौता किया गया था। लेकिन अब मोदी सरकार ने 126 की बजाय 36 राफेल खरीदने का फैसला क्यों किया। यह सवाल पूछने पर कोई जवाब नहीं। क्या मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया?
 
दिग्विजय सिंह ने कहा, हम सवालों के उत्तर मांगते हैं तो ट्रोल आर्मी और उनके कठपुतली मीडिया एंकर हमें राष्ट्रद्रोही बताते हैं। क्या प्रजातंत्रीय व्यवस्था में विपक्ष को प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं है?