सार

कोविड-19 की दूसरी लहर थम चुकी है। यह दौर उस बुरे सपने की तरह था जिसे शायद ही कोई याद रखना चाहे लेकिन तमाम ऐसे दुःस्वप्न होते हैं जो भूले नहीं भूलते, यह भी उन यादों की तरह ही है। हालांकि, नकारात्मक पक्ष को नजरअंदाज कर इसके सकारात्मक पक्ष से सीख लें तो आगे चलकर ऐसी महामारियों से निपटने में मदद मिलेगी। कोविड-19 की जंग को जीतने वाले लोगों के संघर्ष की कहानियां भी ऐसी सकारात्मक सीख के लिए जानना चाहिए।

लखनऊ। कोविड-19 की दूसरी लहर थम चुकी है। यह दौर उस बुरे सपने की तरह था जिसे शायद ही कोई याद रखना चाहे लेकिन तमाम ऐसे दुःस्वप्न होते हैं जो भूले नहीं भूलते, यह भी उन यादों की तरह ही है। हालांकि, नकारात्मक पक्ष को नजरअंदाज कर इसके सकारात्मक पक्ष से सीख लें तो आगे चलकर ऐसी महामारियों से निपटने में मदद मिलेगी। कोविड-19 की जंग को जीतने वाले लोगों के संघर्ष की कहानियां भी ऐसी सकारात्मक सीख के लिए जानना चाहिए। महामारी से जंग लड़कर जीतने वालों की कड़ी में हम इस बार बात करेंगे लखनऊ के अंबरीश से। कोरोना महामारी के दौरान काफी लोगों की मदद करने वाला यह युवा भी एक दिन कोविड की चपेट में आ गया। आईए जानते हैं इनके संघर्ष की कहानी...

Asianet News Hindi के धीरेंद्र विक्रमादित्य गोपाल ने लखनऊ में रहे अंबरीश से बात की है। दूसरों को हौसला देने वाला यह व्यक्ति कैसे खुद को संभाला। किस तरह कोविड को मात दिया, इस पर विस्तृत चर्चा की है।  

लोगों की मदद पहुंचाते पहुंचाते खुद आ गया चपेट में

कोरोना से यूपी की राजधानी लखनऊ बेहाल थी। सड़कों पर एंबुलेंस की आवाजाही अधिक थी। हर ओर मौत की खबरें, अस्पतालों में संसाधनों के कमियों को ढकने में लगी व्यवस्था। हर दिन ऐसा लग रहा था कि आज का दिन किसी तरह गुजर जाए। स्टूडेंट हूं लेकिन सामाजिक कार्य से जुड़े होने के नाते लोगों की मदद करना भी मेरा धर्म था। जितना हो सकता था, लोगों को आॅक्सीजन से लेकर दवाइयों तक के इंतजाम कराने की कोशिश करता। हालांकि, सतर्कता तो बहुत बरती लेकिन एक दिन फीवर आया तो सामान्य दवा खाकर रिलैक्स हुआ लेकिन लगातार तीन दिनों तक यही हाल रहा तो समझ गया कि संक्रमण ने शरीर को पकड़ लिया है। 
जांच में बहुत लंबी लाइन थी। कई दिनों की मशक्कत के बाद 29 अप्रैल को कोविड-19 जांच हो सका। रिपोर्ट मंे पाॅजिटिव निकला। तत्काल खुद को आईसोलेट कर लिया। 

घर पता चला तो सभी दहशत में

घर में जब सबको पता चला तो सब दहशत में आ गए। डाॅक्टर से कंसल्ट कर कुछ दवाइयां लिखवाई। फीवर उतरने का नाम नहीं ले रहा था। एक दिन सांस लेने में थोड़ी दिक्कत महसूस हुई लेकिन कुछ ही देर में राहत भी मिलने लगा। लेकिन घरवाले परेशान हो गए। उस रात तो किसी की आंखों में नींद नहीं आई। 

सुबह आक्सीजन के इंतजाम में सब लगे लेकिन हासिल सिफर रहा

रात में दिक्कत को देखते हुए सभी ने अपने अपने तरह से आक्सीजन की व्यवस्था के लिए प्रयास किया। लेकिन कहीं से किसी को सफलता नहीं मिली। पूरे दिन का प्रयास सिफर रहा। 

घर में मिला माॅरल सपोर्ट, खानपान का रखा खूब ध्यान

घर वाले चिंतित थे, घबराए भी हुए थे लेकिन किसी ने मुझे हतोत्साहित नहीं किया। सबने माॅरल सपोर्ट दिया। मां-पिताजी लगातार मेरा हालचाल जानने को बेचैन रहते। छोटे भाइयों ने खूब ध्यान रखा। बहनों ने खानपान का पूरा ध्यान रखा। डाॅक्टर की बताई खाने की पौष्टिक चीजों के अलावा अन्य जो भी पौष्टिकता वाले खाद्य पदार्थ मिल जाए सबका इंतजाम घरवालों ने किया। आनलाइन मेडिकल कंसल्टेंसी का हेल्प भी लिया। 

एक सप्ताह में ही ठीक होने लगा

एक सप्ताह में ही ठीक होने लगा। लेकिन कमजोरी भयंकर शरीर में हो चुकी थी। नेगेटिव रिपोर्ट आने के बाद भी बिस्तर से उठने-बैठने में दिक्कतें हो रही थी। धीरे धीरे सेहत भी रिकवर होने लगा। 

खबरें डरा रही थी, मन भी बैठा जा रहा था

मैं ठीक हो रहा था लेकिन हर घंटे कोई न कोई सूचना मन को विचलित कर दे रही थी। कभी कभी मन में बेतहाशा डर समा जाता। हालांकि, घरवालों ने हौसला टूटने नहीं दिया। फोन पर दोस्त यार भी खूब बात करते, जिससे थोड़ी राहत भी महसूस होती। 

हौसला न खोए, निराशा को दूर भगाएं

कोरोना पाॅजिटिव होने के बाद मन में निराशा के भाव न आने दें। यह किसी भी बीमारी के लिए है। नकारात्मक बातें हमारे शरीर को और कमजोर ही करती हैं। जितना हो सके सकारात्मक और अच्छी बातें ही करें और ऐसी ही बातों का ख्याल मन में आने दें। अकेलापन महसूस हो तो घरवालों से बातें कीजिए, गाना सुनिए। कोई अच्छी फिल्म देखिए, किताबें पढ़िए। 


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