सार

नई दिल्ली: इस बार का मदर्स डे सबसे खास रहने वाला है। इस बार 10 मई को मदर्स डे है। ये मदर्स डे लॉकडाउन के वजह से खास रहने वाला है। एक लंबा वक्त इस समय लोग एक साथ बिता रहे हैं। वहीं इस महामारी के दौर मं दुनिया भर में सैकड़ों ऐसी माताएं हैं जो डॉक्टर हैं। जो हेल्थकेयर से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में जब कोरोना का संकट गहराया हुआ है तो ये माताएं अपने बच्चों से नहीं मिल पा रही है। 

नई दिल्ली: इस बार का मदर्स डे सबसे खास रहने वाला है। इस बार 10 मई को मदर्स डे है। ये मदर्स डे लॉकडाउन के वजह से खास रहने वाला है। एक लंबा वक्त इस समय लोग एक साथ बिता रहे हैं। वहीं इस महामारी के दौर मं दुनिया भर में सैकड़ों ऐसी माताएं हैं जो डॉक्टर हैं। जो हेल्थकेयर से जुड़ी हुई हैं। ऐसे में जब कोरोना का संकट गहराया हुआ है तो ये माताएं अपने बच्चों से नहीं मिल पा रही है। 
कोविड-19 के इस कहर में इन माताओं ने अपनी ममता को त्याग कर देश हित को चुना है। कई ऐसी मां हैं जिन्होंने खुद को अपने परिवारों से दूर कर लिया है। या फिर अपने घरों में खुद को एक हिस्से में कैद कर लिया है। ताकि अपने बच्चों से ना मिलें और वायरस को नहीं फैलने दें। वहीं न्यूज एजेंसी एएनआई ने कुछ ऐसे कोविड योद्धाओं से बात की है जो ऐसे पेशेवर मोर्चे पर जूझ रहे हैं। इस संघर्ष के दौर में अपने परिवार को सुरक्षित रखने की कोशिश भी कर रहे हैं।
उत्तर-पश्चिम दिल्ली की पुलिस उपायुक्त विजयंता आर्य ने एक मां के रूप में अपने अनुभव साझा किए हैं। उनके दो बेटे हैं दोनों की उम्र 10 साल से कम है। उनका कहना है कि देश के लिए अपने कर्तव्य पथ पर मैं अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक समय नहीं बिता पाती हूं। लेकिन कोरोना के चलते वे अब अपने बच्चों के साथ बहुत कम वक्त व्यतीत करतीं हैं। उन्होंने कहा कि "सैनिटाइजेशन प्रोटोकॉल और हेल्थ एडवाइज़री के बाद मैंने खुद को बच्चों से दूर किया है जो कि एक मां को भावनात्मक रूप से परेशान करता है। लेकिन साथ ही इस समय राष्ट्र की सेवा करने की जरूरत है जो इस समय सबसे ज्यादा जरूरी है। 
वहीं पुलिस अधिकारियों के अलावा स्वास्थ्य कर्मचारी भी अत्यधिक संक्रामक वायरस के खतरे का सामना कर रहे हैं। नेहा सिंह दिल्ली जल बोर्ड डिस्पेंसरी में स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। उनकी ढाई साल की एक बच्ची है। जो घर पर अपनी मां का इंतजार करती है। 
उनका कहना कि जब से मैंने कोरोना ड्यूटी की है तब से मुझे लगने लगा है कि मैं देश के लिए कुछ कर रही हूं। वे कहती हैं कि "मैं वास्तव में एक योद्धा की तरह महसूस कर रही हूं। उन्होंने कहा कि लगता है कि हम सभी लड़ रहे हैं और बंदूकों के बजाय हम स्टेथोस्कोप, पेन और अन्य चिकित्सा उपकरण पकड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि जब हम ड्यूटी पर होते हैं तो लगता है कि हमें मरीजों की सेवा करनी है। वहीं जब घर पर होती हूं तो मैं अपना मां का फर्ज निभाते हुए हर सावधानी बरतती हूं।