सार
दिल्ली में धीरे-धीरे राज्य और केन्द्र सरकार के प्रयासों से हिंसा कम होनी शुरू हो गई थी, पर मीडिया ने एक बार फिर वहीं पुरानी गलती दोहरा दी। अतीत से कुछ भी सबक ना लेते हुए कई मीडिया संस्थानों ने अफवाहें फैलानी शुरू कर दी और राज्य में दंगे फिर से भड़क गए।
नई दिल्ली. दिल्ली में धीरे-धीरे राज्य और केन्द्र सरकार के प्रयासों से हिंसा कम होनी शुरू हो गई थी, पर मीडिया ने एक बार फिर वहीं पुरानी गलती दोहरा दी। अतीत से कुछ भी सबक ना लेते हुए कई मीडिया संस्थानों ने अफवाहें फैलानी शुरू कर दी और राज्य में दंगे फिर से भड़क गए। पुलिस और प्रशासन ने दिल्ली में हालात काबू में रखने के हर संभव कोशिश की, पर मीडिया ने अपने प्रोपेगेंडा के लिए आग में घी डालने का काम किया। यह किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, पर भारत में इसकी हालत शर्मनाक है। यहां मीडिया विदेशी प्रोपेगेंडा के मुखौटे के रूप में काम करती है।
हमें ऐसे प्रोपेगेंडा के खिलाफ चिंतित और सतर्क रहना चाहिए, जो गलत जानकारी फैलाते हैं क्योंकि इनके इरादे निश्चित रूप से गलत भावनाओं से प्रेरित हैं। इस दंगे में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों ने अपनी जान गंवाई। क्षेत्र के विधायक भी इस मामले में नफरत और हिंसा फैलाते देखे गए। कुछ ने तो अपने घर में प्रेट्रोल बम और एसिड के पैकेट भी रखे थे। इसके बावजूद मीडिया ने इसे तबाही बताकर कई पक्षपातपूर्ण कहानियां दिखाई तनाव को बढ़ावा देते गए।
अब ऐसी ही कुछ खबरों की बात करते हैं, ताकि पूरे मामले को बेहतर तरीके से समझा जा सके। CNN ने राणा अय्यूब के साथ एक शो होस्ट किया और दिल्ली दंगों को मुस्लिम समुदाय के प्रति सुनियोजित दंगा बताया। जर्नलिस्ट सबा नकवी ने तो कहा कि शाहीनबाग में सार्वजनिक संपत्ति का अतिक्रमण एक महान विचार के लिए चल रही लड़ाई का हिस्सा है, लेकिन सरकार को हिंदुओं की धार्मिक यात्राएं बंद कर देनी चाहिए।
विदेशी नेताओं ने भी ऐसे लोगों का समर्थन किया। ब्रिटने के एक मुस्लिम नेता ने एक बच्चे को दफनाए जाने का वीडियो शेयर किया और इसे दिल्ली हिंसा से जोड़ने की कोशिश की। हालांकि, यह वीडियो एक पुराने हिंदी टीवी सीरियल चाणक्य का हिस्सा था। प्रोपेगेंड़ा इस कदर फैल चुका है कि लोग सही खबरों और फेक न्यूज के बीच का अंतर भूल चुके हैं। इन हालातों के लिए हम विदेशी नेताओं को कैसे दोषी ठहरा सकते हैं, जब हमारे देश के नेता ही ऐसे काम कर रहे हैं।
विपक्षी पार्टी के एक जाने माने नेता ने पुलिस की बर्बरता का एक फोटो शेयर किया, जिसमें पुलिस एक 9 साल के लड़के को पीट रही है। यह फोटो दिल दहला देने वाली जरूर है, पर यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका की है। यह फोटो तब ली गई थी जब बांग्लादेश पुलिस एक हड़ताल को रोकने के लिए ताकत का गलत इस्तेमाल कर रही थी। नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक हित के लिए फेक न्यूज, भय और हिंसा का इस्तेमाल करना वाकई शर्मनाक है।
हमेशा विवादों में बने रहने वाले पत्रकार रवीश कुमार ने फेक न्यूज फैलाई कि पुलिस के ऊपर फायरिंग करने वाला युवक मोहम्मद शाहरुख नहीं था, वह हिंदू समुदाय से था और उसका नाम अनुराग मिश्रा था। रवीश कुमार की फेक न्यूज का शिकार बने अनुग्रह मिश्रा को इसके बाद कई धमकियां भी मिली।
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार जीतने वाले रवीश कुमार अफवाह फैलाने के मामले में किसी से कम नहीं हैं। 24 फरवरी को उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस पर गोली चलाने वाला युवक मोहम्मद शाहरुख नहीं अनुराग मिश्रा है। बाद में दिल्ली पुलिस ने इस बात को गलत ठहराया। लेकिन, अब अनुराग को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। अगर अनुराग को कुछ होता है तो क्या रवीश कुमार इसकी जिम्मेदारी लेंगे या फिर ये बात भी उनके प्राइम टाइब डिबेट का हिस्सा बन जाएगी।
अब दिल्ली दंगों के ऊपर विकीपीडिया में लिखे गए एक आर्टिकल की बात करते हैं। इस आर्टिकल के अनुसार पूरे दिल्ली में सिर्फ हिंदू समुदाय के लोगों ने हिंसा की है। टैग देखकर ही आप आर्टिकल के पक्षपातपूर्ण होने का अंदाजा लगा सकते हैं। ये लोग प्रोपेगेंडा फैलाने वाले साथियों की हर बात सीधे कॉपी करते हैं और इन्होंने दिल्ली दंगों को हिंदू समुदाय के द्वारा लाई गई एक तबाही के रूप में दर्शाया। जबकि विकीपीडिया खुद को जानकारी का एक खुला माध्यम बतलाता है। यह आर्टिकल आंशिक रूप से सुरक्षित भी है। जिसका मतलब है कि सिर्फ रजिटर्ड यूजर ही इसमें बदलाव कर सकते हैं, जबकि इसमें मौजूद अधिकतर आर्टिकल कोई भी आम आदमी अपने हिसाब से लिख सकता है।
क्या इन घटनाओं से पूर्वाग्रह की बू नहीं आती है। मीडिया ने इस घटना को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। ये घटनाएं सोचने पर मजबूर करती हैं कि जब हमारा वर्तमान हकीकत से इतना दूर है तो सालों पहले लिखे गए इतिहास पर किस हद तक भरोसा किया जा सकता है? जो इतिहास हम फिलहाल पढ़ रहे हैं वही हकीकत है या यह भी लाखों अनसुनी कहानियों और लाखों गलत तथ्यों का समागम है, जिसे एक एजेंड़ा को फैलाने के लिए लिखा गया है।
पाक्षपातपूर्ण कहानियां सिर्फ हिंसा और खून खराबे को बढ़ावा देती हैं और उन बाहरी ताकतों को बढ़ावा देती हैं, जो हमारे देश टुकड़ों में बांट देना चाहती हैं। हमें इन ताकतों का शिकार नहीं बनना है। मैं अपने सभी साथियों से निवेदन करता हूं कि ऐसी भ्रामक जानकारियों से बचकर रहें और हिंसा में भागीदार ना बनें। हमें सावधानीपूर्वक हर कदम उठाने की जरूरत है। इन दंगों में किसी की भी जीत नहीं होती है। उल्टे, परिवार जरूर तबाह हो जाता है। इसीलिए हमें एक कदम पीछे हटकर शांति और सौहार्द का माहौल बनाने की जरूरत है।
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं।
मलयालम, अंग्रेजी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, बांग्ला और हिंदी भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।