सार
जनरल कृष्णास्वामी 'सुंदरजी' सुंदरराजन एक विवादास्पद व्यक्ति बने हुए हैं। कई लोगों द्वारा उन्हें सिर्फ इसलिए बदनाम किया गया क्योंकि वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ खड़े हुए थे।
नई दिल्ली। 1986 से 1988 तक सेना अध्यक्ष रहे जनरल कृष्णस्वामी 'सुंदरजी' सुंदरराजन का कार्यकाल शायद सबसे विवादास्पद रहा है। वह दूरदर्शी व्यक्ति थे और अपनी बात पर टिके रहते थे। इसके चलते अक्सर राजनीतिक तकरार में फंस जाते थे। कई लोगों ने उन्हें सिर्फ इसलिए बदनाम किया क्योंकि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ खड़े हुए थे।
एक ट्विटर यूजर संजय चतुर्वेदी ने हाल ही में ट्वीट थ्रेड शेयर किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे भारत ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने वाले चीनियों को सबक सिखाने का एक सुनहरा अवसर खो दिया था।
"1986 के गर्मी के दिनों में भारत में जनजीवन पहले की तरह चल रहा था। राजीव गांधी 2 साल तक प्रधानमंत्री रहे। 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सहानुभूति वोटों के बल पर कांग्रेस ने देश के पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा कायम कर लिया था।"
"लगभग 3 दशकों के ठहराव के बाद भारत की अर्थव्यवस्था 5% की दर से बढ़ने लगी थी। देश में उत्साह का माहौल था। दिल्ली के रायसीना कॉरिडोर में राजनेता अगले चुनाव की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान बोफोर्स कांड सामने आ गया। इससे राजीव गांधी सरकार की भारी बदनामी हुई।"
"2 मई 1986 की सुबह नई दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय के सैन्य संचालन निदेशालय में फोन की घंटी बजी। वह कोई साधारण फोन कॉल नहीं था। वह अलग था। खुफिया ब्यूरो (आईबी) के निदेशक ने सेना मुख्यालय को बताया कि चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। वे अपनी स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। चीन 1962 में हुई लड़ाई जैसी तैयारी कर रहा है। यह मैसेज तुरंत सेनाध्यक्ष जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी को दिया गया।"
"सुंदरजी अनकंवेंशनल आर्मी चीफ थे। वह पहली पीढ़ी के सेना अधिकारी थे। उनके पिता गणित शिक्षक थे। सुंदरजी तमिल ब्राह्मण थे। एमबीबीएस करने की जगह उन्होंने सेना में भर्ती होने का फैसला इसलिए किया था कि पिता के सामने खुद को बहादुर साबित कर सकें। सेना में उन्हें रणनीतिक विचारक और बुद्धिजीवी होने की प्रतिष्ठा प्राप्त थी।"
"आईबी से सूचना मिलने के बाद वह तुरंत एक्शन में आ गए। चीनियों ने अरुणाचल प्रदेश के थियाग ला रिज पर कब्जा कर लिया था। यहां से तवांग पर नजर रखी जा सकती है। चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश से भारतीय सेना के पीछे हटने की मांग कर रही थी। वे मांग कर रहे थे कि भारत सरकार अरुणाचल प्रदेश को चीन को सौंप दे। चीन का दावा था कि यह दक्षिण तिब्बत है।"
"सुंदरजी ने तुरंत मेजर जनरल जेएम सिंह के नेतृत्व में 17वें माउंटेन डिवीजन को अरुणाचल प्रदेश भेजा। इसके साथ ही 33 कोर को अरुणाचल प्रदेश जाने के आदेश दिए। चार महीने तक चीन और भारत के सैनिक आमने-सामने रहे। उस वक्त भारत सरकार नर्वस हो गई थी। चीनीयों को इस बात का पूरा भरोसा था कि भारत अपने जवानों को एक साल तक सीमा पर तैनात नहीं रख पाएगा। क्योंकि उसके पास सैनिकों तक रसद और साजो-सामान पहुंचाने के लिए सड़कें नहीं हैं। सर्दी का मौसम आया तो नई दिल्ली में नेता घबरा गए।"
"उस वक्त सड़कें नहीं होने के चलते भारतीय सेना सीमा तक सामान पहुंचाने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल करती थी। मेजर जनरल जेएम सिंह के अनुसार लंबे समय तक खच्चरों से सीमा तक सामानों की सप्लाई नहीं हो सकती थी। दूसरी ओर चीनियों के पास सभी मौसम में काम आने वाली बेहतर सड़कें थीं। अरुणाचल प्रदेश में बुनियादी ढांचे को लंबे समय से उपेक्षित किया गया था। सर्दी खत्म हो चुकी थी और चीन भारत को एक और सबक सिखाने की तैयारी कर रहा थे।"
"सुंदरजी ने उस वक्त पूरी तरह चुप्पी साध रखी थी। वे कोई इंटरव्यू नहीं दे रहे थे। छह महीने उन्होंने सैनिकों को तेजी से मोर्चे पर भेजने और चीन को सबक सिखाने के प्लान पर काम किया। 1987 के वसंत तक गतिरोध जारी रहा। माहौल तनावपूर्ण था तभी सुंदरजी ने पहली चाल चली। Mi-8s और Mi-17 हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कर उन्होंने रातों-रात 3 ब्रिगेड (10,000 सैनिकों) को एयरलिफ्ट किया और चीनियों को पीछे छोड़ दिया।"
"भारतीय सैनिक पहाड़ की चोटी पर पहुंच गए थे। वे लाउडस्पीकर पर मंदारिन भाषा में चीनियों को अपमानित करते थे। भारत ने चीनी सेना की रसद और आपूर्ति लाइनें काट दिए थे। इससे चीनी सैनिकों की स्थिति इतनी खराब हो गई कि वे आत्महत्या करने लगे थे। चीन इसपर भड़क गया था। बीजिंग में भारतीय राजदूत को बुलाया गया था और चीनी विदेश मंत्री ने असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया। इससे पहले कि चीनी प्रतिक्रिया कर पाते सुंदरजी ने दक्षिण भारत में स्थित एक अन्य इन्फैंट्री डिवीजन को अरुणाचल प्रदेश भेजा और नमका चू घाटी पर कब्जा कर लिया।"
"1962 में भारतीय सेना को वहां चीनी सैनिकों ने हराया गया था और नमका चू घाटी पर कब्जा कर लिया था। सुंदरजी ने न केवल नमका चू घाटी को फिर से जीत लिया गया था, बल्कि क्षेत्र में एमआई-35 अटैक हेलीकॉप्टरों और बोफोर्स तोपों को तैनात कर दिया था। इससे चीनी डर गए थे। यह सब राजीव गांधी को भनक लगे बिना हुआ था।"
"राजीव गांधी को जब स्थिति की जटिलता के बारे में पता चला तो वे अपना आपा खो बैठे। जनरल सुंदरजी को पीएमओ बुलाया गया और उनसे चीनियों से निपटने की योजना के बारे में पूछा गया। उन्होंने जवाब दिया कि सेना आक्रामक होने के लिए तैयार है। तिब्बत रिज लाइन में लगभग 10,000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया है। पीएलए को 1962 से पहले की स्थिति में पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया गया है। यह सुनते ही राजीव गांधी हक्का-बक्का रह गए थे।"
“पीएम ने सुंदरजी को फटकार लगाई और उन्हें जवानों को वापस लाने का आदेश दिया। पीएम के आदेश पर सुंदरजी ने न चाहते हुए भी ऐसा किया। उन्होंने पीएम और रक्षा मंत्री से कहा कि भारत एक सुनहरा मौका खो रहा है। देश इसके लिए भुगतान करेगा। भविष्य विडंबना यह 2017 में यह बात सच निकली।”