सार
राज्यसभा में कृषि बिल के पास होने के बाद विपक्ष ने सदन में हंगामा मचा दिया था। उसके अगले ही दिन सभापति वैंकेया नायडू ने सदन में हुए हंगामे की कड़ी निंदा भी की थी। इसके बाद 8 सांसदों को भी सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया था।
नई दिल्ली. राज्यसभा में कृषि बिल के पास होने के बाद विपक्ष ने सदन में हंगामा मचा दिया था। उसके अगले ही दिन सभापति वैंकेया नायडू ने सदन में हुए हंगामे की कड़ी निंदा भी की थी। इसके बाद 8 सांसदों को भी सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया गया था। संसद में पारित किए गए तीनों कृषि बिलों के विरोध में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार बहुमत के नशे में चूर है। राज्यसभा में नियमों की अनदेखी करके अफरा-तफरी में पारित किए गए किसान बिलों का विरोध करने के लिए 25 सितंबर से देशभर में किसान चक्का जाम करेंगे। भारतीय किसान यूनियन ने इसे किसान कर्फ्यू का नाम भी दिया है।
किसान यूनियन ने इन पर जताई आपत्ति
-किसान यूनियन ने राज्यसभा में बिना चर्चा के पास हुए बिल को देश की संसद के इतिहास में पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताया है। उन्होंने कहा कि अन्नदाता से जुड़े तीन कृषि विधेयकों को पारित करते समय ना तो कोई चर्चा की और ना ही इस पर किसी सांसद को सवाल करने का सवाल करने का अधिकार दिया गया। टिकैत ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र के अध्याय में काला दिन है।
-युनियन आगे कहता है कि अगर देश के सांसदों को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है तो सरकार महामारी के समय में नई संसद बनाकर जनता की कमाई का 20,000 करोड़ रूपए क्यों बर्बाद कर रही है?
-आज देश की सरकार पीछे के रास्ते से किसानों के समर्थन मूल्य का अधिकार छीनना चाहती हैं, जिससे देश का किसान बर्बाद हो जाएगा।
-मण्डी के बाहर खरीद पर कोई शुल्क ना होने से देश की मण्डी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। सरकार धीरे-धीरे फसल खरीदी से हाथ खींच लेगी।
किसान को बाजार के हवाले छोड़कर देश की खेती को मजबूत नहीं किया जा सकता। इसके परिणाम पूर्व में भी विश्व व्यापार संगठन के रूप में मिले हैं।
यूनियन बोला- 'सरकार को करना होगा समझौता'
भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि 'किसान अपने हक की लड़ाई को मजबूती के साथ लड़ेंगे। सरकार अगर हठधर्मिता पर अडिग है तो किसान भी पीछे हटने वाले नहीं हैं। 25 तारीख को पूरे देश का किसान इन बिलों के विरोध में सड़क पर उतरेगा। इसके लिए देशभर में किसानों ने जन जागृति अभियान चलाया है। उनका कहना है कि जब तक कोई समझौता नहीं होगा तब तक पूरे देश का किसान सड़कों पर रहेगा। इस सम्बन्ध में मंगलवार को एक ज्ञापन जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर को सौंपा गया है। इसमें हजारों किसान शामिल हुए थे।
ज्ञापन मेंं कही गई ये बातें
प्रधानमंत्री को संबोधित इस ज्ञापन में किसानों की ओर से कहा गया है कि-
-केन्द्र सरकार द्वारा 5 जून को लागू किए गए अध्यादेशों का देश के किसान विरोध कर रहे हैं। हालांकि, केन्द्र सरकार इन अध्यादेशों को एक देश एक बाजार के रूप में कृषि सुधार की दशा में एक बड़ा कदम बता रही है। यह अध्यादेश अब कानून की शक्ल ले चुके हैं।
-वहीं, देश के किसान कानून बन चुके इन अध्यादेशों को, यानी दोनों सदनों से पास हो चुके तीनों किसान विधेयकों को, कृषि क्षेत्र में कंपनी राज के रूप में देख रहे हैं। कुछ राज्य सरकारों ने भी इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन मानते हुए इन्हें वापस लिए जाने की मांग की है। देश के अनेक हिस्सों में इसके विरोध में किसान आवाज उठा रहे हैं।
-किसान जानते हैं कि इन तीनों नए कानूनों के कारण प्राइवेट कम्पनियां उनका जो हाल करेंगी वो बन्धुआ बना लिए जाने के बराबर ही होगा।
-कृषि में कानून नियंत्रण मुक्त, विपणन, भंडारण, आयात-निर्यात, किसान हित में नहीं है। इसका खामियाजा देश के किसान विश्व व्यापार संगठन के रूप में भी भुगत रहे हैं।
-देश में 1943-44 में बंगाल के सूखे के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अनाज भंडारण के कारण 40 लाख लोग भूख से मर गए थे।
-समर्थन मूल्य कानून बनाने जैसे कृषि सुधारों से किसान का बिचौलियों और कंपनियों द्वारा किया जा रहा अति शोषण बन्द हो सकता है और इस कदम से किसानों के आय में वृद्धि होगी।
ये है किसानों की मागें
मांग-1 : किसान बिलों से जुड़े अध्यादेशों को तुरंत वापस लिया जाए
(अ) कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020 (ब) कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश 2020 (स) आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन अध्यादेश 2020 कृषि और किसान विरोधी तीनों अध्यादेशों को तुरंत वापिस लिया जाए।
मांग-2: एमएसपी (MSP) पर कानून बने
न्यूनतम समर्थन मूल्य को सभी फसलों पर (फल और सब्जी) लागू करते हुए कानून बनाया जाए। समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल खरीदने को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए।
मांग-3: सरकारी मंडी और फसल खरीदी का कानून बने
मण्डी के विकल्प को जिन्दा रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं एवं फसल खरीद की गारंटी के लिए कानून बनाया जाए। कानून में ये स्पष्ट हो कि प्राइवेट मंडियों की अधिकता हो जाने पर भी सरकारी मंडियां बंद नहीं होंगी बल्कि प्रतिस्पर्धा की भावना से किसानों के हित में काम करती रहेंगी।