सार
सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 22वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 22वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
बेटा ही आपकी नहीं सुनता, जनता कैसे ध्यान देगी मंत्री जी!
राजस्थान सरकार में कांग्रेस के एक दिग्गज कैबिनेट मंत्री इन दिनों चर्चा में हैं। सरकार में मंत्री जी की धाक रहती है, लेकिन घर में उनकी एक भी नहीं चलती। विधानसभा क्षेत्र में भी पिता और बेटे के रिलेशन की चर्चा रहती है। पिता जो काम करने से मना करते हैं, बेटे को उसी काम को करने में मजा आता है। पिता के सम्मान की बैंड बजाने के लिए बेटा मौके ढूंढ़ता रहता है। हाल ही में ऐसा ही हुआ। राजस्थान के भरतपुर में मूर्ति लगाने को लेकर हुए विवाद के बाद पिता ने मामला शांत कराना चाहा। प्रेस ब्रीफिंग के माध्यम से मंत्री ने कहा- मूर्ति दूसरी जगह लगवा लेंगे, झगड़ा खत्म करो। पिता की यह बात बेटे को नागवार लगी और उसने क्लियर कट कह डाला- अब मूर्ति तो यहीं लगेगी। शांत हो रहे मामले में उसने अपने बयानों का पेट्रोल डाल दिया। पुलिस टेंशन में आ गई और एक बार फिर जनता ने मंत्री जी को घेर लिया। जनता का कहना है- मंत्री जी, अब बेटा ही आपकी नहीं सुन रहा तो जनता कैसे भरोसा करे? जनता के तानों से परेशान पिता जी ने अब बेटे के खिलाफ एफआईआर करवा दी है। नतीजा- विवाद शांत होने की जगह अब बढ़ता दिख रहा है।
विपक्ष की दुविधा...
स्वागत करना है या नहीं। ताली बजाना है या नहीं। विरोध करना है या नहीं…केरल में बीजेपी को छोड़ सभी पॉलिटिकल पार्टियां उस वक्त एक बड़ी दुविधा में नजर आईं, जब 'वंदे भारत' के कोच ट्रायल के लिए केरल पहुंचे। केरल के सभी विपक्षी दल क्रिकेट में 'दूसरा' का सामना करने वाले किसी बल्लेबाज की तरह कन्फ्यूज खड़े नजर आ रहे हैं। केंद्र सरकार का वंदे भारत शुरू करने का फैसला सभी के लिए हैरान करने वाला है। लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया और सभी प्रमुख स्टेशनों पर ट्रेन के रुकने का अभिवादन किया। उन्होंने 'विशु दिवस' के दिन कैसिया की सुनहरी पत्तियों की वर्षा कर ट्रेन का स्वागत किया। हालांकि, दूसरी पार्टियों के लोग इसलिए भी वंदे भारत का विरोध नहीं कर पा रहे, क्योंकि दक्षिण और उत्तर केरल को जोड़ने के लिए एक सेमी हाईस्पीड ट्रेन की जरूरत पहले से ही महसूस की जा रही थी। हालांकि, विपक्षी पार्टियों के लोग न ही ट्रेन का स्वागत कर सकते थे और ना ही विरोध, क्योंकि अगर वो इसका समर्थन करते तो संदेश ये जाता कि वो पीएम मोदी द्वारा उस केरल को दिए गिफ्ट का समर्थन कर रहे हैं, जहां बीजेपी कुछ सीटें जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। सीपीएम और कांग्रेस के नेता तो स्वाभाविक रूप से चुप ही रहे। लेकिन एक भगवाधारी कॉमरेड की फेसबुक पोस्ट हैरान करने वाली थी। स्वामीजी ने तर्क देते हुए कहा कि 'वंदे भारत' वामपंथी सरकार के प्रस्तावित सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट की तुलना में एक महंगा सौदा है। हालांकि, स्वामीजी ने भूमि अधिग्रहण और अन्य विकास कार्यों के लिए खर्च की जाने वाली 1 लाख करोड़ रुपए की भारी-भरकम लागत का उल्लेख भी आसानी से अनदेखा कर दिया। वाकई, वंदे भारत ने कई राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पटरी से उतार दिया है।
From The India Gate: कहीं समर्थन जुटाने के लिए मंच का इस्तेमाल, तो कहीं नेताजी की सादगी ने जीता दिल
नेताजी के कमबैक की खबर सुन टेंशन में विपक्ष..
भाजपा के एक बड़े नेता दिल्ली से राजस्थान वापस आ रहे हैं। नेता जी का कमबैक देखकर कांग्रेस खेमे में हलचल बढ़ गई है। कहा जाता है- नेताजी का जलवा इतना जबरदस्त है कि आईपीएस-आईएएस अफसर उनकी हां में हां मिलाते हैं। ये नेता कभी किसी को गाली देते हैं-कभी किसी अफसर को धक्का मारते हैं। बता दें, वो पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और इलाज करवाने दिल्ली गए थे। अब वो अगले सप्ताह वापस राजस्थान आ रहे हैं। इस बार उनके पास 3 बड़े मामले हैं। नेताजी इन्हीं 3 मामलों से सरकार के पसीने छुड़ाने को तैयार हैं। पहले भी जब-जब उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, 80 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में उनकी ही जीत हुई। उनके बीमार होने से सरकार के नेता और अफसर खुश थे, लेकिन उनकी वापसी की खबर सुनकर बेचारों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लग गई हैं।
अपने मुंह मियां मिट्ठू..
स्टील की छड़ को तोड़ना या मोड़ना वैसे तो बिल्कुल भी आसान काम नहीं है। लेकिन गली-मुहल्लों में जादू दिखाने वाले कभी-कभी चंद सिक्कों की खातिर ऐसा कारनामा कर दिखाते हैं। हालांकि, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बेटे केटी रामाराव की कुछ इसी तरह की कोशिशों ने उनके और भारत राष्ट्र समिति (BRS) के राजनीतिक अहंकार को खत्म कर दिया है। केटीआर ने दावा किया कि वाइजाग स्टील प्लांट के विनिवेश को रोकने के लिए उन्होंने ही केंद्र सरकार को 'मजबूर' किया। केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की उस टिप्पणी के बाद कि केंद्र वाइजाग स्टील प्लांट के लिए अपनी प्रस्तावित योजना को रोक सकता है, केटीआर ने दावा किया कि यह फैसला केसीआर द्वारा दिए गए एक अल्टीमेटम की वजह से हुआ है। केसीआर ने कहा कि उनकी सरकार राज्य के स्वामित्व वाली सिंगरेनी कॉलरीज कंपनी के माध्यम से नीलामी प्रक्रिया में भाग लेगी। केसीआर का ये भाषण फग्गन सिंह कुलस्ते के उस बयान से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने कहा कि केंद्र विनिवेश प्रक्रिया पर अस्थायी रूप से रोक लगा सकता है। हालांकि, बाप-बेटे की जोड़ी का सीना ठोकना और अपनी वाहवाही करना बस कुछ ही वक्त के लिए था, क्योंकि केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि वो विनिवेश प्रक्रिया के साथ ही आगे बढ़ेगी। इसीलिए कहा जाता है कि लाइमलाइट चुराने में कभी जल्दबाजी न करें।
वोटर्स को लुभाने की जुगाड़..
बल्लारी में पैसा तुंगभद्रा के पानी की तरह बहेगा, ये कहावत चुनाव के दौरान काफी चर्चा में रहती है। इस चुनावी मौसम में अनुमान लगाया जा रहा है कि गणीनाडु (खनन भूमि) में तीनों दलों द्वारा मैदान में उतारे गए सुपर रिच उम्मीदवारों द्वारा लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। ये तीनों ही उम्मीदवार 'धन कुबेर' हैं, जिन्हें चुनाव के दौरान जेबें ढीली करने के लिए जाना जाता है। शुरुआत में ही प्रेशर कुकर और दूसरे गिफ्ट वोटर्स तक पहुंच चुके हैं। अब इंतजार है इस ड्रामा के फाइनल एक्ट का, जब नोट के बदले वोट वाला सीन दिखाया जाएगा। चर्चा तो ये भी है कि फिनाले के दौरान हर वोटर को करीब 6000 रुपए दिए जाएंगे।
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