सार
कर्नाटक सरकार ने भीख मांगकर गुजर-बसर करने वालों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने की एक अच्छी पहल की है। इन्हें एक सम्मानजनक जीवन की सुविधा दिलाने के मकसद से कर्नाटक सरकार ने पिछले 5 वर्षों के भीतर 4,900 से अधिक निराश्रित लोगों(इनमें भिखारी भी शामिल हैं) को कुशल बनाया है।
बेंगलुरु. कर्नाटक सरकार ने भीख मांगकर गुजर-बसर करने वालों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने की एक अच्छी पहल की है। इन्हें एक सम्मानजनक जीवन की सुविधा दिलाने के मकसद से कर्नाटक सरकार ने पिछले 5 वर्षों के भीतर 4,900 से अधिक निराश्रित लोगों(इनमें भिखारी भी शामिल हैं) को कुशल बनाया है। यानी उन्हें किसी न किसी काम के लिए ट्रेंड किया है। कर्नाटक सरकार के समाज कल्याण विभाग(Social Welfare Department) ने भीख मांगने की प्रथा पर अंकुश लगाने और सभी के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के अपने प्रयासों के तहत यह पहल की है। पढ़िए पूरी डिटेल्स...
14 सरकारी शेल्टर होम में रहने वालों को किया ट्रेंड
कर्नाटक राज्य समाज कल्याण विभाग द्वारा जारी हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि विभाग राज्य के कई भिखारियों और बेघर लोगों के जीवन में बदलाव लाने में सफल साबित हुआ है। विभाग ने विभिन्न कौशलों(different skills ) के जरिये जरूरतमंदों के लिए जीने का एक सम्मानजनक साधन उपलब्ध कराया है। निराश्रीथरा परिहार केंद्रों(Nirashrithara Parihara Kendras) के नाम से जाने जाने वाले 14 सरकारी शेल्टर्स में रहने वाले लगभग 4,966 लोगों को स्किल्ड बेस्ड ट्रेनिंग दी गइ। सबसे बड़ी बात, इस ट्रेनिंग पर खर्च होने वाले धन का एक बड़ा हिस्सा नागरिकों द्वारा भुगतान किए गए भिखारी उपकर(beggar's cess) से प्राप्त किया गया था।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के नागरिकों ने भिखारी उपकर के रूप में ₹400 करोड़ से अधिक की राशि का भुगतान किया है। विभाग ने यह भी बताया था कि कर्नाटक भिखारी निषेध अधिनियम(Karnataka Prohibition of Beggary Act) के तहत आने वाले उपकर का उपयोग बेघर लोगों के परिवार के सदस्यों को आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए उनका पता लगाने और उन्हें ट्रैक करने के लिए प्रभावी ढंग से किया गया है। एक आधिकारिक बयान में इन फंड डिवीजनों के बारे में बताया गया। जैसे-बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका सहित विभिन्न नगर निगमों और स्थानीय निकायों के नागरिकों ने अप्रैल 2017 और मार्च 2022 के बीच भिखारी उपकर के रूप में 404.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
10 प्रतिशत निकाय रखता है
इस उपकर को जुटाने के लिए जिम्मेदार निभाने वाले निकायों को अपने खर्च के लिए इसका दस प्रतिशत रखने की अनुमति है और शेष केंद्रीय राहत समिति (सीआरसी) को जाता है, जो निराश्रथ परिहार केंद्रों का संचालन करती है। इन उपलब्ध राशियों से, अनुमानित 1,149 लोगों को 2018-19 के बीच ट्रेनिंग दी गई। 1,274 को 2019-20 में प्रशिक्षित किया गया और बाकी 2,543 को अगले तीन वर्षों के भीतर प्रशिक्षित किया गया।
यानी 5 सालों में यूं बदल गई भिखारियों की जिंदगी
पिछले पांच वर्षों में दी गई ट्रेनिंग ने निराश्रितों को आत्मनिर्भर बना दिया है। अब केंद्र से रिहाई के बाद वे एक सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए उन्हें व्यापक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है। अप्रैल 2017 और मार्च 2022 के बीच उन्हें कृषि/बागवानी, रेडीमेड वस्त्र, बुनाई, चटाई बनाने, फ़ाइल बनाने और अन्य कार्यक्रमों में प्रशिक्षित किया गया।
पिछले पांच वर्षों में इस पहल के तहत कुल 4,966 लोगों को प्रशिक्षित किया गया, जिनमें 715 महिलाएं शामिल हैं। विभाग द्वारा प्रस्तुत एक अलग डेटा बताता है कि 9,077 महिलाओं सहित 45,039 लोगों को इसी अवधि के आसपास आश्रयों में रजिस्टर्ड किया गया था और 8,985 महिलाओं सहित 43,855 को शेल्टर से रिहा किया गया था। अधिनियम के तहत पुनर्वास के प्रयास एक वर्ष के लिए किए जाने हैं, जिसे बाद में जिम्मेदार अधिकारियों के अगले आदेश के आधार पर तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। प्रशिक्षण की लागत के अलावा, धन का एक हिस्सा छात्रावास, प्रशिक्षण केंद्र, स्वास्थ्य क्लीनिक, कनेक्टिंग रोड, सीसीटीवी कैमरे, खेल उपकरण की खरीद, मनोरंजक गतिविधियों के लिए एक मंच बनाने आदि जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी जाता है।
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