सार
नागरिक संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ शाहीन बाग में शुरू हुआ प्रोटेस्ट चर्चा का विषय बना हुआ है शाहीन बाग की तर्ज पर देश के कुछ और हिस्सों में बच्चे और बूढ़ी महिलाएं सीएए-एनआरसी के खिलाफ धरने पर बैठी हैं
नई दिल्ली। नागरिक संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ शाहीन बाग में शुरू हुआ प्रोटेस्ट चर्चा का विषय बना हुआ है। शाहीन बाग की तर्ज पर देश के कुछ और हिस्सों में बच्चे और बूढ़ी महिलाएं सीएए-एनआरसी के खिलाफ धरने पर बैठी हैं।
दिल्ली के शाहीन बाग की सड़क पर सीएए-एनआरसी के खिलाफ महिलाओं को धरने पर बैठे हुए 38 दिन हो गए हैं। महिलाएं किसी भी सूरत में अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं है। आखिर शाहीन बाग में आंदोलन की शुरुआत कैसे और कब हुई इसकी जानकारी तमाम लोगों को नहीं है।
सीएए संसद के दोनों सदनों से पास हो चुका था और राष्ट्रपति ने भी इसे मंजूरी दे दी थी। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्विद्यालय के छात्र इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। कानून आने के बाद पहला शुक्रवार 15 दिसंबर 2019 को पड़ा था। शुक्रवार की नमाज खत्म होने के बाद जामिया नगर के लोगों ने सीएए के खिलाफ सड़क पर उतर आए थे। जामिया नगर में ओखला और बटला हाउस के लोग जामिया मिल्लिया के छात्रों के साथ प्रोटेस्ट में शामिल हो गए तो दूसरे अबु फजल और शाहीन बाग के लोग नोएडा से कालिंदी मार्ग की तरफ बढ़ गए।
ऐसे शुरू हुआ शाहीन बाग का आंदोलन
शाहीन बाग के प्रोटेस्ट में आप के विधायक अमानतुल्ला खान से लेकर पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान सहित इलाके के कई नेता भी शामिल थे। जामिया मिल्लिया के छात्रों का आंदोलन मथुरा रोड की तरफ बढ़ ही रहा था कि अचानक प्रदर्शन ने हिसंक रूप अख्तियार कर लिया। इस दौरान दिल्ली में बसों में तोड़फोड़ आगजनी की घटनाएं भी हुईं। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच पथराव शुरू हो गया, जिसके बाद प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और आसू गैस के गोले छोड़े गए। जामिया की लाईब्रेरी में घुसकर पुलिस ने छात्रों पर लाठी चार्ज भी किया।
जामिया प्रोटेस्ट के हिंसक होने के बाद प्रशासन ने इलाके को चारों तरफ से बंद कर दिया था। नोएडा-कालिंदी कुंज मार्ग को भी बंद कर दिया गया ताकि प्रदर्शनकारी सड़क पर न उतार पाए। मगर शाम को 8 बजे जामिया के कुछ छात्रों और शाहीन बाग की तमाम महिलाएं अपने घरों से निकलकर सड़क पर आकर बैठ गईं।
इसके बाद आसपास के लोग भी यहां जुटने लगें। कुछ ही घंटों में प्रदर्शनाकरियों की संख्या 100 से ज्यादा हो गई। जेएनयू और दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र छात्राएं और अकादमिक लोग भी आंदोलन में शामिल होने लगे। प्रोटेस्ट की कमान पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में है। दूसरे तमाम लोग वॉलिटिंयर के रूप में काम कर रहे हैं।
बोलने के लिए महिलाओं से लेनी पड़ती है इजाजत
यहां महिलाओं के अलावा देशभर के तमाम इलाकों से भी लोग पहुंच रहे हैं। जादोपुर विश्वविद्याय औऱ जामिया के फाइन आर्ट के छात्र पेंटिंग और पोस्टर के जरिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रोटेस्ट को विपक्ष के तमाम नेताओं ने समर्थन दिया है। कई नेता धरना स्थल तक भी पहुंच चुके हैं। बीजेपी ने आरोप भी लगाया कि प्रोटेस्ट के पीछे सरकार को बदनाम करने की विपक्षी साजिश है। कहा जा रहा है कि 15 दिंसबर को शुरु हुए इस आंदोलन में अब मंच पर बोलने के लिए महिलाओं से इजाजत लेनी पड़ रही है।