सार

गुजरात का कच्छ इलाका नमक बनाने के लिए भी जाना जाता है। यहां लाखों श्रमिक नमक बनाने के काम से ही अपना जीवन यापन करते हैं। हालांकि इनके स्वास्थ्य की चिंता बहुत कम लोगों को होती है। 

अहमदाबाद. यह बात 2009 की है जब तीन कपल्स दिवाली के मौके पर गुजरात के गुडखर वन्यजीव अभयारण्य देखने पहुंचे थे। लेकिन तब उन लोगों को नहीं मालूम था कि आने वाले समय में उनकी यह यात्रा एक नई शुरूआत करने जा रही है। उनमें शामिल रहे एक कपल के अनुसार हम आराम करने और आनंद लेने के लिए यात्रा पर निकले थे। लेकिन नियति ने हमारे लिए कुछ और ही प्लान किया था। जिज्ञासावश हमने अपने गाइड से आस-पास के गांवों और रहने वाले लोगों के व्यवसाय के बारे में पूछा। उन्होंने पास के गांव में रहने वाली अगरिया जनजाति के बारे में बताया। जो भूजल प्रक्रिया के माध्यम से नमक बनाने का काम करते हैं। 

कैसे हुई शुरूआत
सभी कपल्स इस बात को लेकर उत्सुक थे कि भूजल के माध्यम से नमक कैसे बनता है। गाइड उन्हें पास के गांवों में ले गया, जहां उन्होंने इस प्रक्रिया को देखा और कुछ लोगों से भी मिले। गुजरात में कच्छ के छोटे से रण में गांव स्थित है। जहां गर्मी की वजह से रहन-सहन काफी मुश्किल है। दरअसल, भूजल से नमक बनाने की पूरी प्रक्रिया 8 महीने की होती है और यह मानसून के बाद शुरू की जाती है। वे लोग जिस हाल में रहते हैं, उसे देखकर सभी लोग परेशान हो गए। नमक बनाने कड़ी मेहनत करनी होती है। उन्होंने देखा कि जिस वातावरण में वे काम कर रहे थे, उसकी वजह से वे जल्दी बूढ़े हो रहे थे। कम आमदनी, बच्चों के लिए कोई सुविधा न होना, पौष्टिक भोजन की कमी, दूध, सब्जी न मिलना इनकी बड़ी समस्याएं थीं, जिनसे सिर्फ बीमारियां होती हैं। 

किस तरह से शुरू हुई मदद
कपल्स के अनुसार यह जगह अहमदाबाद से केवल 100 किलोमीटर की दूरी पर थी और ऐसा महसूस हुआ कि हम 18वीं शताब्दी में पहुंच गए हैं। हम घर आए और अपने परिजनों के साथ बात की। जल्द ही हमने फैसला किया कि हम उन लोगों के लिए कुछ अच्छा करेंगे। इसलिए हमने उनकी मदद करने के लिए खाने पीने और कुठ कपड़ों की व्यवस्था करने का फैसला लिया। जबकि सच यह था, उन्हें इससे ज्यादा कुछ चाहिए था। हमने मदद करने का फैसला किया और उस गाइड से फिर संपर्क किया। सौभाग्य से वह अहमदाबाद में ही था और उन्होंने मदद करने से पहले उनसे मिलने पर जोर दिया। जब वे मिले तो गाइड ने कहा कि गांव को स्वास्थ्य देखभाल की ज्यादा जरूरत है। उन्होंने अनुरोध किया कि यदि संभव हो तो उस दिशा में कुछ करें।

हेल्थ कैंप की शुरूआत हुई
उन कपल में एक विरल भाई बताते हैं कि हमारा मेडिकल क्षेत्र से कोई संबंध नहीं था। कोई भी करीबी रिश्तेदार मेडिकल क्षेत्र में नहीं था। लेकिन जैसा कि कहा गया है, जहां चाह है, वहां राह है। फिर उन्होंने डॉक्टरों से संपर्क करने का फैसला किया जिन्हें वे जानते थे और उन्हें सारी बातें बताई। तब डॉक्टर्स के मार्गदर्शन में उन्होंने खरघोड़ा गांव में चिकित्सा शिविर का आयोजन किया। उन्हें गांव में एक छोटा सा स्थान मिल गया, जहां वे मेडिकल कैंप लगा सकते थे। इस तरह 2009 में से 2014 तक मेडिकल कैंप लगाने का काम जारी रहा। हर महीन ये मेडिकल कैंप लगता जिसमें 200 से 250 मरीजों का दवा दी जाती थी।

फिर हुई सेतु की शुरुआत
कपल्स ने बताया कि यह सब बिना किसी संस्था के हो रहा था। लेकिन वह दिन भी आ गया जब नमक श्रमिकों के लिए काम करने वाले समूह को एक नाम देने का फैसला किया गया। विरल भाई बताते हैं कि हमने शुरुआती महीनों में ही 2 साल के मेडिकल कैंप के लिए फंडिंग जमा कर ली थी। इससे हमें आगे बढ़ने का भरोसा मिला। पूरी प्लानिंग में शामिल बुजुर्गों ने ट्रस्ट बनाने की सलाह दी। इसलिए 2013 में सेतु नाम से ट्रस्ट का गठन किया गया। सेतु का अर्थ है पुल। जो लोगों के आंसुओं को मुस्कान में बदलने वाला सेतु बनने का काम कर रहा है। तब गांव के बीच में ही एक खाली बंगला था। यह एक नमक व्यापारी का था जो अब वहां नहीं रहता था। उन्होंने मालिक से बातचीत की उन्होंने खुशी-खुशी उन्हें सेतु चैरिटेबल ट्रस्ट के लिए दे दिया। यही वह शुरूआत थी जिसके बाद किसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद इलाज व उपचार करना आसान हो गया। सेतु ने अब तक 1,25,000 से अधिक रोगियों का इलाज किया है और कई लोगों की जान बचाई है। ऐसी स्थितियां भी आईं जिनमें कुछ रोगी अत्यंत गंभीर थे। यदि समय पर उपचार नहीं दिया जाता तो उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता। संस्था लगातार लोगों की मदद कर रही है।

यह भी पढ़ें

India@75: कौन थे सुंदरलाल बहुगुणा जिनके नेतृत्व में महिलाओं ने पेड़ से लिपट कर की वनों की रक्षा