सार
करीब 3 साल के इंतजार के बाद आज भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी जल आयोग की बैठक होनी है। इसके लिए पाकिस्तान के आठ अधिकारी भारत पहुंचे हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच सिंधु घाटी जल बंटवारे को लेकर बाद होगी।
नई दिल्ली. करीब 3 साल के इंतजार के बाद आज भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी जल आयोग की बैठक होनी है। इसके लिए पाकिस्तान के आठ अधिकारी भारत पहुंचे हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच सिंधु घाटी जल बंटवारे को लेकर बाद होगी।
दरअसल, 2019 में पुलवामा हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते निचले स्तर पर थे। तमाम मुद्दों पर बातचीत बंद थी। इसी तरह सिंधु जल आयोग की बैठक भी नहीं हुई थी। हालांकि, अब दोनों देशों की सरकारें एक बार फिर रिश्ते सामान्य करने की दिशा में कदम उठा रही हैं।
क्या है सिंधु जल समझौता?
1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत, पूर्वी हिस्से की तीनों नदियों रावी, ब्यास और सतलज पर भारत का अधिकार है। इसके बदले भारत श्चिमी हिस्से के तीनों नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम के जल को पाकिस्तान तक बहने देगा। समझौते के मुताबिक, भारत भी पश्चिमी नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु के जल का इस्तेमाल कर सकता है। दोनों देशों को बिजली निर्माण या कृषि के क्षेत्र में नदियों के जल के इस्तेमाल का अधिकार है।
क्या है सिंधु घाटी जल आयोग?
इस समझौते में किसी भी समस्या या बाधा के समाधान के लिए एक स्थायी सिंधु आयोग के गठन का प्रस्ताव था। इसमें दोनों देशों के कमिश्नर समय-समय पर एक दूसरे से मिलेंगे और समस्याओं पर बात करेंगे। यह व्यवस्था बनाई गई कि अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाते हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी।
क्या है विवाद ?
इस समझौते के तहत भारत को पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों के जल का इस्तेमाल सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन में करने की अनुमति है। भारत इस समझौते के मुताबिक, सिंधु नदी के पानी का केवल 20% ही इस्तेमाल करता है। सिंधु जल समझौता भारत को इन नदियों के पानी से 14 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करने का अधिकार देता है। भारत फिलहाल सिंधु, झेलम और चिनाब नदी से 3000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करता है।
भारत ने 1987 में पाकिस्तान के विरोध के बाद झेलम नदी पर तुलबुल परियोजना का काम रोक दिया था। इसे लेकर पाकिस्तान कई बार बाधाएं अटका चुका है। यह विवाद अंतरराष्ट्रीय पंचाट में विश्व बैंक के पास जा चुका है। हालांकि, भारत के ऐतराज के बाद विश्व बैंक ने कदम पीछे खींच लिए थे।