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नौसेना के लिए भारत फ्रांस से खरीद सकता है Rafale-M, जानें वायुसेना के विमान से कितने अलग होते हैं नेवी के फाइटर जेट
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इन्हें भारत के दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। इससे पहले भारत ने वायुसेना के लिए फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदे थे। इसके लिए 2016 में डील फाइनल हुआ था। फ्रांस से सभी 36 राफेल भारत को मिल गए हैं। आइए जानते हैं वायुसेना के विमान से नौसेना के विमान कितने अलग होते हैं।
डिजाइन और क्षमताओं के मामले में नौसेना के लिए बने लड़ाकू विमान और उसी विमान के जमीन से ऑपरेट होने वाले वर्जन में अंतर होता है। राफेल जमीन पर मौजूद एयरवेस से ऑपरेट होने के लिए बना है। वहीं, राफेल एम को विमान वाहक पोत से उड़ान भरने और उसपर लैंड करने के लिए बनाया गया है।
नौसेना के लड़ाकू विमान को कई कठिन चुनौतियों का सामना करना होता है। लैंडिंग के वक्त विमान को अधिक झटका लगता है। एयरक्राफ्ट कैरियर का रनवे छोटा होता है। छोटे रनवे पर विमान तेजी से रुक सके इसके लिए एरेस्ट लैंडिंग (रनवे पर लैंड करते ही तारों की मदद से विमान की रफ्तार कम करना) की जाती है।
वहीं, टेकऑफ के लिए कैटापोल्ट्स (विमान को तेज रफ्तार से हवा में उछालने के लिए बना सिस्टम) या रैंप लॉन्चर की मदद ली जाती है। इससे विमान के एयरफ्रेम पर अधिक दबाव पड़ता है। इसके साथ ही विमान को लगातार खारे पानी के वातावरण में रहना पड़ता है। यह विमान के फ्रेम को कमजोड़ करता है। जमीन से ऑपरेट होने वाले लड़ाकू विमान को इस तरह की चुनौती का सामना नहीं करना होता।
एयर क्राफ्ट कैरियर पर विमानों के रखने की जगह की कमी होती है। विमान को लिफ्ट की मदद से रनवे पर लाया जाता है। ऐसे में ऐसे विमान की जरूरत होती है, जिसके पंखों का फैलाव कम हो। इस जरूरत को पूरी करने के लिए नौसेना के लिए बने कई विमानों में पंखों को फोल्ड करने की सुविधा होती है। भारतीय नौसेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे MiG-29K विमान में यह सुविधा है। अरेस्टेड लैंडिंग के लिए विमान के पिछले हिस्से में हुक दिया गया है। वहीं, वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विमानों में इनकी जरूरत नहीं होती।
नौसेना के लिए बने विमान अपने एयरफोर्स के वर्जन से आकार में छोटे और हल्के होते हैं। यह खूबी इन्हें एयरक्राफ्ट कैरियर से ऑपरेट होने में मदद करती है। नौसेना के विमान को छोटे रनवे से टेकऑफ करना होता है। इसके चलते ये अपनी पूरी क्षमता जितना वजन (हथियार या इंधन) नहीं ले जा पाते। इसके चलते इनका रेंज भी वायुसेना के वर्जन से कम होता है। हवा में इंधन भरने की क्षमता से रेंज की कमी की पूरी कर ली जाती है।
नौसेना के लड़ाकू विमान में जहाजों और पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए अलग तरह के रडार सिस्टम लगाए जाते हैं। इसके साथ ही इनका नेविगेशन सिस्टम भी अलग होता है। वहीं, वायुसेना के लिए बने लड़ाकू विमान में हवा से हवा में होने वाली लड़ाई और जमीन पर हमला करने की क्षमता पर अधिक फोकस किया जाता है।
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नौसेना के विमान को लगातार खारे पानी वाले वातावरण में रहना पड़ता है। इससे विमान को तेजी से जंग लगने का खतरा रहता है। इससे निपटने के लिए विमान पर जंग से बचने वाली कोटिंग अधिक की जाती है। एयर फोर्स से विमान को नौसेना जितनी अधिक जंगरोधी कोटिंग की जरूरत नहीं होती।